आज हम विजयी लोगों के भगवान परम पावन महान 14वें दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के रूप में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस मना रहे हैं। परम पावन का पूरा नाम जेट्सन जम्पेल न्गवांग लोबसंग येशी तेनज़िन ग्यात्सो सिसुम वांगग्यूर सुंगपा मेयपे-डे पाल-सांगपो है। परम पावन दुनिया की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों की सर्वोच्च महिमा के प्रतीक हैं, जिसमें स्वर्ग में देवता भी शामिल हैं। वे तिब्बत के संरक्षक देवता यानि कि अवलोकितेश्वर हैं, जिन्होंने मानव रूप में अवतार लिया है। वे इस जगत तीनों क्षेत्रों के आध्यात्मिक स्वामी हैं, इस धरती पर बुद्ध के संपूर्ण उपदेशों के धारक, सभी तिब्बती लोगों के संरक्षक-देवता और एक अतुलनीय नेता हैं। अत्यंत महत्व के इस दिवस पर निर्वासित तिब्बती संसद अपने सभी तिब्बती भाई-बहनों की ओर से परम पावन को खुशी, भक्ति और संतुष्टि की भावनाओं के साथ बधाई और शुभकामनाएं देना चाहती है।
06 जुलाई 1935 को पूर्वी तिब्बत के डोमी प्रांत के सोंगखा क्षेत्र के तकत्सेर गांव में पैदा हुए परम पावन के बचपन का नाम ल्हामो धोंडुप था। परम पावन दलाई लामा का जन्म उद्देश्यपूर्ण था, जिसका उद्देश्य उनके पूर्ववर्ती दलाई लामा के कार्यों को आगे बढ़ाना था। दिव्य रूप से संकेतों और लक्षणें के प्रकट होने के साथ ही तिब्बत में पवित्र ल्हामो लात्सो झील पर दिखाई देने वाले दृश्यों से हुई भविष्यवाणी के आधार पर उन्हें पूर्ववर्ती दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में मान्यता दी गई थी। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मान्यता को इस बात से बल मिला और यह सभी संदेहों से तब और परे हो गई, जब बालक को पिछले दलाई लामा के जीवन के तथ्यों और उस जन्म की सभी घटनाओं का तत्काल स्मरण हो आया। इसके कारण उन्हें तिब्बत की राजधानी ल्हासा ले जाया गया और 22 फरवरी 1940 को पोटाला पैलेस में स्वर्ण सिंहासन पर बिठाया गया।
वर्ष 1949 के अंत में कम्युनिस्ट चीन ने तिब्बत पर सशस्त्र आक्रमण शुरू कर दिया। इस घटना ने देश के शांतिप्रिय लोगों को युद्ध की विनाशकारी उथल-पुथल के तत्काल खतरे के अंदेशे से भर दिया। परिणामस्वरूप 17 नवंबर 1950 को तिब्बत के मानवीय और दैवीय दोनों क्षेत्रों के सभी प्राणियों ने तत्कालीन 16 वर्षीय महान 14वें दलाई लामा से प्रार्थना की कि वे देश का लौकिक और आध्यात्मिक सर्वोच्च नेतृत्व ग्रहण करें। उस समय तिब्बत जिस दुखद और खराब स्थिति में था, उसकी गंभीरता को देखते हुए परम पावन के पास सिंहासन पर आरूढ़ होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। फिर, 1951 में, कम्युनिस्ट चीनी सरकार ने तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों को बीजिंग में 17 सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया और ऐसा न करने पर क्रूर बल के इस्तेमाल की धमकी दी। ऐसी स्थिति में, परम पावन दलाई लामा ने एक तरफ चीन की सरकार के साथ मैत्री स्थापित करने की कोशिश की, वहीं दूसरी तरफ तिब्बत के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे के आधुनिकीकरण की पहल शुरू की। इस उद्देश्य के लिए, उन्होंने 1954 में एक सुधार कार्यालय की स्थापना की, साथ ही अन्य सुधार भी किए। विशेष रूप से, 1956 में उन्होंने पहली बार एक सार्वजनिक शिकायत जांच विभाग की स्थापना की। हालांकि, चीन की सरकार ने 17 सूत्री समझौते की पूरी तरह से अवहेलना कर दी और यहां तक कि उसे रौंद भी दिया। साथ ही उसने परम पावन दलाई लामा के जीवन को भी नुकसान पहुंचाने की साजिश रची। इन परिस्थितियों को देखते हुए परम पावन को 1959 में अपने साथियों के साथ भारत में निर्वासित होने के लिए मजबूर होना पड़ा।
भारत पहुंचने के तुरंत बाद परम पावन दलाई लामा ने भारत सरकार के शीर्ष नेताओं से संपर्क किया और उनका समर्थन और सहायता मांगी। सीधे शब्दों में कहें तो यह पूरा क्रियाकलाप तिब्बत की अनूठी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए था। इसके तहत धार्मिक आवासीय भव, पुनर्वास बस्तियां, शैक्षिक केंद्र और इसी तरह के अन्य नए केंद्र स्थापित किए गए। विशेष रूप से परम पावन ने तिब्बत की गादेन फोडरंग सरकार को यहां भी जारी रखा और इसके विभिन्न कार्यालयों को फिर से स्थापित किया। जिस तरह की सरकार की उन्होंने कल्पना की थी, वह उनके मन में लंबे समय से संजोई हुई थी। यह था- लोकतांत्रिक प्रणाली की उत्कृष्टता की ओर बढ़ने वाला एक निर्बाध कार्यक्रम। इसलिए 1960 में उन्होंने पहली बार एक तिब्बती संसद की स्थापना की, जिसके सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने गए। निर्वासन में रहने के दौरान प्राप्त अनुभवों के आधार पर परम पावन ने अगले दशकों में कई निर्णय लिए, जिनमें सरकार के प्रशासनिक निकायों के विभिन्न कार्यालयों का विस्तार करना शामिल था। उन्होंने एक कानून बनाने वाली संसद की स्थापना की जो इन कार्यालयों पर निगरानी और नियंत्रण रखती थी और साथ ही कानून और नियम और विनियम भी पारित करती थी। इन कानूनों के समुचित प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए परम पावन ने एक न्यायिक निकाय की स्थापना की। ये सभी केंद्रीय संस्थाएं विभिन्न स्तरों पर अपने मातहत कार्यालयों के नेटवर्क के साथ मौजूद हैं। संक्षेप में कहें तो परम पावन दलाई लामा ने तिब्बती इतिहास में पहली बार एक पूर्ण लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना की, जिसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीनों स्तंभ और आवश्यक स्वायत्त निकाय इसके अभिन्न अंग के तौर पर शामिल हैं। इसी तरह, परम पावन ने निर्वासन में पहली बार तिब्बत की विभिन्न सांस्कृतिक परंपराओं के अध्ययन, अभ्यास और प्रचार के लिए पूरी तरह सुसज्जित केंद्र भी स्थापित किए, जो तिब्बत के पांच प्रमुख ज्ञान क्षेत्रों और पांच छोटे क्षेत्रों के रूप में लोकप्रिय हैं। आज, दुनिया भर में अन्य राष्ट्रीयताओं के लोगों ने भी उनमें रुचि ली हैं और सक्रिय रूप से उनका अध्ययन और अभ्यास शुरू कर दिया है।
इन तरह से परम पावन दलाई लामा ने निर्वासन में महत्ता और प्रासंगिकता की दृष्टि से कई ऐतिहासिक पहलें की हैं। तिब्बत के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने के लिए कदम उठाकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तिब्बत को लेकर ऐतिहासिक प्रस्तावों को पारित कराने में मदद की है। उन्होंने दुनिया भर में अन्य धार्मिक विश्वासों के लोगों के साथ दोस्ती स्थापित करने का प्रयास किया, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में शिक्षा को लोकप्रिय बनाने की पहल की, आधुनिक विज्ञान के विशेषज्ञों के साथ बातचीत करने के लिए बौद्ध शिक्षाओं को आधार बनाया, सभी स्कूलों या आस्था प्रणालियों का प्रतिनिधित्व करने वाले तिब्बत के शीर्ष धार्मिक नेताओं का एक सम्मेलन स्थापित किया, गेशेमा डिग्री प्रदान करने की प्रणाली को संस्थागत बनाया और यह सुनिश्चित करके तिब्बती सरकार प्रणाली को पूरी तरह से लोकतांत्रिक बनाने के लिए कदम उठाया कि इसके शीर्ष नेताओं को बालिग मताधिकार के माध्यम से निर्वाचित किया जाए। दलाई लामा के नेतृत्व में गादेन फोडरंग सरकार ने संपूर्ण तिब्बत पर शासन किया था। इसकी स्थापना वर्ष 1642 में परम पावन महान पांचवें दलाई लामा द्वारा की गई थी। इसे परम पावन के नेतृत्व में तिब्बत में पूरी स्थिति को बदलने वाले क्रांतिकारी परिवर्तन के बाद निर्वासन में भी जारी रखा जा सकता था। लेकिन, परम पावन महान 14वें दलाई लामा ने संपूर्ण स्थिति की समग्रता से अवलोकन करते हुए वर्ष 2011 में अपने राजनीतिक अधिकार को तिब्बती लोगों द्वारा सीधे निर्वाचित नेताओं को सौंपने का निर्णय लिया। इसमें समय के बदलाव और अंतरराष्ट्रीय रुझानों की वास्तविकताओं के साथ ही तिब्बती लोगों के अंतिम, दीर्घकालिक हित भी निहित हैं। इस तरह परम पावन ने तिब्बत पर लगभग चार सौ साल लंबे गादेन फोडरंग शासन को समाप्त कर दिया। ये और कई अन्य कदम परम पावन दलाई लामा की विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण उपलब्धियों के महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
उनकी इन्हीं उपलब्धियों के कारण इस तथ्य को, कि परम पावन महान 14वें दलाई लामा सभी पिछले दलाई लामाओं की महान उपलब्धियों की समग्रता का प्रतीक हैं और आज भी मन, कर्म, वचन से उस भूमिका में हैं, तिब्बती लोगों की स्मृति से कभी नहीं मिटाया जा सकता है। इन क्षेत्रों में उनकी उपलब्धियों की महानता के कारण ही परम पावन की दुनिया भर में व्यापक रूप से प्रशंसा की जाती है। इन्हीं कारणों से उन्हें सैकड़ों पुरस्कारों और अन्य प्रकार की मान्यताओं से सम्मानित किया गया है, जिसमें सर्वोचच नोबेल शांति पुरस्कार भी शामिल है। इनसे तिब्बती लोगों के संघर्ष ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान, सम्मान और समर्थन अपनी ओर खींचा है। वास्तव में, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि परम पावन ने इस स्थिति को साकार करने की दिशा में अहम भूमिका निभाई है।
इसलिए, निर्वासित तिब्बती संसद इस अवसर पर उनके प्रति अपनी अत्यधिक प्रशंसा के साथ अपना आभार प्रकट करना चाहती है और इस कृतज्ञता की भावना को व्यक्त करने के लिए और इस दिशा में उनके निरंतर प्रयासों के लिए इन सभी कठिनाइयों से घबराए बिना, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और तिब्बत के लोग इस वर्ष को ‘करुणा वर्ष’ के रूप में मना रहे हैं। यह हम सभी के लिए महत्वपूर्ण हो गया है कि इस वर्ष के दौरान परम पावन दलाई लामा की शिक्षाप्रद प्रवचनों को अमल में लाएं तथा धार्मिक रूप से पुण्य कार्यों में संलग्न होने का प्रयास करें। ताकि तिब्बत के लिए राजनीतिक और धार्मिक कार्यों को सफलता मिल सके तथा परम पावन की महान इच्छाओं और आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके।
हाल ही में 03-04 जून को निर्वासित तिब्बती संसद ने जापान की राजधानी टोक्यो में तिब्बत पर विश्व सांसदों के नौवें सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें कुल 29 देशों के सांसदों ने प्रत्यक्ष रूप से या ऑनलाइन माध्यम से भाग लिया और यह एक बड़ी सफलता थी। यह कार्यक्रम टोक्यो घोषणा-पत्र, टोक्यो कार्य योजना और परम पावन 14वें दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के सम्मान में एक प्रस्ताव पारित करने के साथ संपन्न हुआ। उनके 90वें जन्मदिन के वैश्विक स्मरणोत्सव से पहले सर्वसम्मति से पारित किए गए छह-सूत्री विशेष प्रस्ताव में परम पावन दलाई लामा को ‘मानवता की एकता, अहिंसा, मानवाधिकार, धार्मिक सहिष्णुता, पर्यावरण जागरुकता और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए उनकी आजीवन प्रतिबद्धता और योगदान को मान्यता दी गई। इसी प्रकार उनकी उपलब्धियों की सराहना करते हुए एक नया अध्याय जोड़ा गया और इन क्षेत्रों में उनसे सराहनीय कार्य को जारी रखने का आह्वान किया गया।
परम पावन दलाई लामा ने हाल ही में 02 से 04 जुलाई तक आयोजित 15वें तिब्बती धार्मिक सम्मेलन के दौरान ‘दलाई लामा’ संस्था को जारी रखने की पुष्टि की है। सम्मेलन में पारित प्रस्ताव के अनुसार, इस संस्था के संचालन में चीन की ओर से किसी भी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा।
पिछले 66 वर्षों से अधिक समय से हम निर्वासन में हैं। भारत की सरकार और लोगों की तरह अमेरिका, यूरोप, जापान और दुनिया के अन्य देशों ने हमें मानवीय सहायता प्रदान की है। तिब्बती धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा में मदद की है और हर तरह के अन्य क्षेत्रों में समर्थन दिया है। इस अवसर पर निर्वासित तिब्बती संसद उन सभी के प्रति अपना हार्दिक आभार प्रदर्शित करती है और उनसे आग्रह करती है कि तिब्बत के न्यायपूर्ण मुद्दे के समाधान होने तक वे हमारे लिए अपना समर्थन और मजबूती से जारी रखें।
अंत में, निर्वासित तिब्बती संसद हमेशा प्रार्थना करना चाहती है कि परम पावन दलाई लामा युगों-युगों तक जीवित रहें। ताकि दुनिया भर में शांति और करुणा को बढ़ावा देने में उनकी उपलब्धियों के फलने-फूलने का अवसर मिले। इस माध्यम से विशेष रूप से, तिब्बती जनता के प्रति महान देखभाल और करुणा की भावना से संपूर्ण तिब्बती जनता के संरक्षक देवता बने रहकर, खुशी के दिन की धूप को शीघ्रता से साकार किया जा सके। जब तिब्बत में रहने वाले तिब्बती लोग और निर्वासन में जीवन व्यतीत कर रहे तिब्बतर लोग फिर से मिलेंगे, तब परम पावन भी फिर से तिब्बत की बर्फीली भूमि पर पैर रख सकेंगे।
निर्वासित तिब्बती संसद
06 जुलाई, 2025
* इस हिन्दी अनुवाद और इसके मूल तिब्बती वक्तव्य के बीच किसी भी प्रकार की विसंगति होने की स्थिति में मूल तिब्बती वक्तव्य को ही आधिकारिक और अंतिम माना जाना चाहिए।