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अमरीकी तिब्बत नीति और समर्थन कानून का दूरगामी महत्व

January 1, 2021

 

प्रो0 श्यामनाथमिश्र
पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीतिविज्ञानविभाग
राजकीय महाविद्यालय, तिजारा (राजस्थान)

 

अमरीका का ‘‘तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम, 2020‘‘ विश्व के अन्य तिब्ब्त समर्थक देशों के लिये एक अनुकरणीय उदाहरराा है। इसके पूर्व 2002 में अमरीकी सरकार ने तिब्बत संबंधी नीति घोषित की थी। नया अधिनियम इसी पर आधारित है। इसके साथ ही यह तिब्बतियों और तिब्बत समर्थकों की मुख्य मांग पर आधारित है। तिब्बती धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा एवं निर्वासित तिब्बत सरकार की भावना और मांग का इसमें खुलकर समर्थन किया गया है। तिब्बती आंदोलन के मूल उद्देश्य पर आधारित है अमेरीका का नया अधिनियम।

                         अमरीकी अधिनियम में तिब्बतियों की मध्यममार्ग नीति अर्थात् तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता की मांग का समर्थन है। साम्राज्यवादी चीन सरकार ने अंतरराष्ट्रीय कानून, लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवता के मौलिक सिद्धांतो का उल्लंघन करते हुए 1959 में स्वतंत्र तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। उस समय तक भारत एचं चीन के बीच तिब्बत एक शांतिप्रिय मध्यस्थ राज्य (बफर स्टेट) था। चीन सरकार ने तथाकथित ‘‘एक चीन नीति ‘‘ के नाम पर तिब्बत को चीनी भूभाग में जबरन शामिल कर लिया। अंतरराष्ट्रीय मंच पर आलोचना से बचने के लिए उसने तिब्बती भूभाग को काट-छाँटकर और उसमें फेरबदल कर उसे स्वायत्त क्षेत्र घोषित कर दिया । इस धोखे का पर्दाफाश करते हुए परमपावन दलाई लामा एवं निर्वासित तिब्बत सरकार ने तिब्बत के लिये वास्तविक स्वायत्तता की मांग की है। वे चीन के संविधान और राष्ट्रीयता कानून के अनुरूप मांग कर रहे हैं कि विदेश और प्रतिरक्षा विभाग चीन सरकार के पास रहें तथा शिक्षा, संस्कृति आदि अन्य सभी विभाग तिब्बत सरकार को सौंप दिये जायें। इससे चीन की एकता-अखंडता और संप्रभुता सुरक्षित रहेगी और तिब्बतियों को स्वशासन का अधिकार मिल जायेगा। यही बीच का रास्ता है अर्थात् मध्यममार्ग है। चेक गणराज्य , जापान तथा अन्य यूरोपीय देश भी इस मांग के समर्थक हैं।

 चीन सरकार की हठधर्मिता के कारण चीन सरकार तथा दलाईलामा एवं निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता बंद पड़ी है। अधिनियम में इसे प्रारंभ करने पर जोर दिया गया है। चीन सरकार साजिशपूर्वक दलाई लामा के पद को अमर्यादित करना चाहती है। अमरीका ने स्पष्ट कर दिया है कि नये दलाईलामा के चयन का अधिकार वर्तमान दलाईलामा, तिब्बती धर्मगुरुओं एवं तिब्बतियों के पास है। इस संबंध में सिर्फ उनका निर्णय मान्य होगा। इस मामले में चीन सरकार का षड्यंत्रपूर्ण हस्तक्षेप पूर्णतः अस्वीकार्य है। ज्ञातव्य है कि चीन सरकार पहले ही दलाईलामा द्वारा चयनित पंचेनलामा गेदुन चुकी नीमा का सपरिवार अपहरण कर चुकी है। उनके बारे में प्रामाणिक रुप से कुछ भी नहीं बताया जाता। चीन ने तिब्बत में एक नया कर्मापा नियुक्त कर दिया है जबकि पारंपरिक तरीके से चयनित कर्मापा को तिब्बत से भागकर गुरुभूमि भारत में शरण लेनी पड़ी है।

 अमरीकी कानून भारत स्थित निर्वासित तिब्बत सरकार को तिब्बतियों की वास्तविक निर्वाचित जनप्रतिनिधि संस्था मानता है। लोकतांत्रिक तरीके से यह निर्वाचित संस्था है। पूर्व में तिब्बती राजप्रमुख रहे वर्तमान दलाई लामा अपने सारे राजनैतिक अधिकार इसे सौंप चुके हैं। अमरीकी सरकार तिब्बत की राजधानी ल्हासा में वाणिज्य दूतावास खोलने को तत्पर है। अधिनियम मंे मानवाधिकारों की बहाली के साथ ही तिब्बत में पर्यावरराा, भाषा, संस्कृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का प्रावधान है।

 तिब्बत में चीन सरकार द्वारा शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तिब्बती आंदोलनकारियों को भी झूठे आरोपों मंे गिरफ्तार किया जाता है और उन्हें मनमाने दण्ड दिये जाते हैं। वहाँ धार्मिक उत्सव पर रोक है। दलाई लामा की तस्वीर भी तिब्बती नहीं रख सकते । यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय जनमत के अनुरूप अमरीकी अधिनियम में अवैध तिब्बती बंदियों को रिहा करने की मांग चीन सरकार से की गई है।

 इतने स्पष्ट अंतरराष्ट्रीय संकेत के बावजूद चीन सरकार की उपनिवेशवादी नीति जारी है। भारत के उद्दाख में गलवान घाटी में चीन सेना की अवैध घुसपैठ इसी का प्रमाण है। वह हांगकांग में नयी संवैधानिक व्यवस्था द्वारा नागरिक स्वतंत्रता समाप्त करने की कोशिश में है। अपने सभी पड़ोसी देशों मंे चीन की अवैध घुसपैठ अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय है। ऐसे समय में चीन के साथ सहयोग की नीति आत्मघाती सिद्ध होगी। भारत सरकार को तिब्बत मामले में चीन के प्रति कड़ा रूख अपनाना होगा। तिब्बत में चीनी नियंत्रण का ही परिणाम है कि चीन अपमानित और शक्तिहीन करने के लिये भारत की घेराबंदी कर रहा है।

 भारत को चीनी बहकावे में आये बिना भारतीय राष्ट्रीय शक्ति मंे लगातार विस्तार करना होगा। यह समय ‘‘हिन्दी चीनी भाई भाई‘‘ के नाम पर ‘‘राग पंचशील‘‘ गाने और ‘‘सफेद कबूतर‘‘  उड़ाने का नहीं है। तिब्बती समुदाय और सभी तिब्बत समर्थक भारत को चीन का सहयोगी नहीं, एक प्रतिस्पद्र्धी देश के रूप में देखना चाहते हैं। भारतीय गणतंत्र दिवस का तिब्बतियों द्वारा व्यापक पैमाने पर आयोजन इसी का सबूत है। वर्ष 2021 की 26 जनवरी को निर्वासित तिब्बत सरकार ने हम भारतीयों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी है। हम भी तिब्बत समस्या का हल निकालने में तिब्बतियों की मदद करें। यह भारत के अपने हित में है। भारत सहित अन्य तिब्बत समर्थक देशों को अपनी तिब्बत नीति में  अमरीकी नीति के समान बदलाव लाकर चीन पर निर्णायक दबाव बढ़ाना होगा।


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