‘अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूनाईटेड स्टेट कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम- यूएससीआईआरएफ)’ की ०१ मई को प्रकाशित २०२४ की वार्षिक रिपोर्ट में चीनी सरकार द्वारा तिब्बती बौद्ध धर्म के बर्बर दमन और उसका ‘चीनीकरण’ किए जाने के कारण तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट पर प्रकाश डाला गया है। चीनीकरण एक चीनी नीति है जिसका उद्देश्य तिब्बती बौद्ध धर्म को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अनुरूप बनाकर उसके नियंत्रण में लाना है।
चीन को ‘विशेष चिंता’ वाले देश की श्रेणी में रखें
२०२४ की वार्षिक रिपोर्ट के वर्चुअल लॉन्च के दौरान यूएससीआईआरएफ की ओर से बोलते हुए आयोग के उपाध्यक्ष फ्रेडरिक ए. डेवी ने अमेरिकी विदेश विभाग से सिफारिश की कि वह धार्मिक स्वतंत्रता उल्लंघन के दोषी चीन को ‘विशेष चिंता का विषय वाले देश (सीपीसी)’ की श्रेणी वाले १७ देशों में से एक के रूप में नामित करे।
आयोग के मुख्य निष्कर्षों से पता चलता है कि तिब्बती बौद्धों पर निगरानी और सुरक्षा उपायों में वृद्धि हुई है, जिससे उनकी शांतिपूर्ण धार्मिक गतिविधियों पर अनेक प्रतिबंध लग गए हैं। इसमें कहा गया है कि शांतिपूर्ण धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने या परम पावन दलाई लामा से संबंधित सामग्री रखने के आरोप में तिब्बती बौद्धों को गिरफ्तार किया जा रहा है और जेल में डाला जा रहा है। कुछ को आत्मदाह करने से रोकने के नाम पर ‘राजनीतिक पुनःशिक्षा शिविरों’ में भेजा गया है, जहां तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं की मृत्यु हो गई है।
एक ऑनलाइन डेटाबेस के अनुसार आयोग की धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता का उपयोग करने के कारण बने पीड़ितों की सूची में ९३ तिब्बती शामिल हैं।
तिब्बती बच्चों का जबरन नस्लीय विलय
सरकारी आवासीय स्कूलों में १० लाख से अधिक तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से जबरन अलग करने और तिब्बतियों को बौद्ध धर्म का स्वेच्छा से पालन करने से रोकने के लिए सरकार के उपायों पर प्रकाश डालते हुए आयोग कहता है, ‘सरकार ने १० लाख तिब्बती बच्चों को उनके माता-पिता से अलग कर दिया, उन्हें जबरन अपने नस्ल में विलय करने के लिए सरकारी आवासीय स्कूलों में डाल दिया। कुछ स्थानीय अधिकारियों ने माता-पिता को तिब्बती बच्चों को धर्म की शिक्षा देने से प्रतिबंधित कर दिया। सरकार ने तिब्बती भिक्षुओं की नियुक्तियों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया और दलाई लामा के पुनर्जन्म में हस्तक्षेप करने और उनके उत्तराधिकारी को नियुक्त करने के अपने इरादे को दोहराया।
मानवाधिकार प्रतिबंध
आयुक्त सूसी जेलमैन ने आयोग की भूमिका और अमेरिकी सरकार द्वारा २०२३ में लक्षित मानवाधिकार प्रतिबंधों के कार्यान्वयन पर जोर दिया, जिसमें चीनी अधिकारियों और संस्थाओं पर प्रतिबंध शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने बिडेन प्रशासन द्वारा उन चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने का हवाला दिया ‘जो तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से जबरन अलग करते हैं और तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता को खत्म करना चाहते हैं।’
धर्म का चीनीकरण
आयोग धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट के लिए महत्वपूर्ण कारक के रूप में चीनी सरकार की बहुआयामी ‘बौद्ध धर्म के चीनीकरण’ नीति को जिम्मेदार ठहराता है। इस नीति के तहत सभी प्रमुख धार्मिक समूहों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा और उसकी नीतियों का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है।
आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि ‘चीनीकरण के लिए धार्मिक समूहों को अपने धर्म की सीसीपी द्वारा की गई मार्क्सवादी व्याख्या का पालन करना आवश्यक है, जिसमें उस व्याख्या के अनुरूप धार्मिक शास्त्रों और सिद्धांतों को बदलना भी शामिल है।’ तिब्बत में चीनी सरकार की ‘धर्म के चीनीकरण’ नीति के प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए आयोग ने कहा कि ‘चीनीकरण नीति के तहत तिब्बत की स्थानीय आबादी को चीनी व्याख्या के तहत उसमें जबरन आत्मसात कर लेना शामिल है, जिससे उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को खतरा उत्पन्न हो गया है।’