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आत्मदाहों के मुद्दे पर चीन पर दबाव डालने की अपील

November 4, 2011

तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री ने अमेरिका से कहा है कि वह चीन पर दबाव बढ़ाए ताकि चीन में तिब्बत के लिए जान देने का सिलसिला रोका जा सके. उन्होंने कहा, लोगों का खुद कुरबान होना चीनी शासन की नाकामी को दिखाता है.

  डी-डब्लू वर्ल्ड:  चीन में तिब्बत की ”सार्थक स्वायत्तता” के लिए इस साल अब तक 11 बौद्ध भिक्षु आत्मदाह कर चुके हैं जिनमें दो महिला बौद्ध भिक्षु भी शामिल है. प्रधानमंत्री लोबसांग सांग्ये ने वॉशिंगटन में अमेरिकी सांसदों से मुलाकात की और अमेरिकी संसद में भी बयान दिया. उन्होंने अमेरिका से अपील की कि चीन सरकार को यह अहसास दिलाया जाए कि तिब्बत में त्रासदी घट रही है और चीन की इस तरह की सख्त नीति काम नहीं कर रही है.

दलाई लामा के राजनीजिक जिम्मेदारियों छोड़ने के बाद चुने गए सांग्ये ने अमेरिकी मानवाधिकार आयोग से कहा, ”मुझे लगता है कि यह वक्त की जरूरत है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी स्थिति की गंभीरता और कदम उठाने की अहमियत को समझे.” खास बात यह है कि सांग्ये ने अमेरिका पर इस बात के लिए भी जोर डाला कि किरती नाम के मठ में तथ्य जुटाने के लिए एक मिशन भेजा जाए, जो आत्मदाह के मामलों का केंद्र बन गया है. तनाव शुरू होने के बाद आम लोगों को वहां जाने की अनुमति नहीं है.

‘तिब्बत की खातिर‘

आठ बौद्ध भिक्षु और दो महिला बौद्ध भिक्षु ने सिछुआन प्रांत के तिब्बती आबादी वाले हिस्से में खुद को आग लगा ली. मार्च में युवा बौद्ध भिक्षु के आत्मदाह से यह सिलसिला शुरू हुआ जिसके बाद सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कदम उठाने शुरू किए. कई भिक्षुओं ने खुद को आग लगाने से पहले तिब्बत की स्वायत्तता और दलाई लामा समर्थक नारे लगाए. पिछले दिनों दलाई लामा ने आत्मदाह से जान देने वालों के लिए भारत के धर्मशाला में प्रार्थना भी की, जिस पर चीन सरकार ने कड़ा एतराज किया.

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि कम से कम पांच पुरूष भिक्षुओं और दो महिला भिक्षुओं की मौत हो गई है. पुलिस ने उनके लिए प्रदर्शन करने वालों पर लाठियां बरसाईं चीन सरकार इस तरह के आत्मदाह को उकसाने के लिए दलाई लामा को जिम्मेदार मानती हैं जो 1959 में तिब्बत में चीन सरकार के खिलाफ नाकाम विद्रोह के बाद भाग कर भारत चले गए. चीन सरकार इन आत्मदाहों को ”छिपा आतंकवाद” मान रही है.

चीन सरकार लंबे समय से दलाई लामा की अहमियत को कम करने में जुटी है जो तिब्बत और विदेशों में बहुत लोकप्रिय हैं. अतीत में दलाई लामा ने खुद जान देने की प्रवृत्ति निंदा की है जिसे बहुत से बौद्ध अपने धार्मिक विश्वास के अनुरूप नहीं मानते. लेकिन हालिया घटनाओं पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं कहा है.

चीन की आलोचना

सांग्ये ने अमेरिकी आयोग से कहा, ”मौका दिया जाए तो कोई भी मरने से ज्यादा जीना पसंद करेगा. जब कोई मरता है और वह भी दर्दनाक तरीके से हैं तो उसकी पीड़ा अंदर और बाहर बहुत बहुत गहरी और असहनीय होनी चाहिए.”

अमेरिकी प्रतिनिधि और मैसाच्युसेट्स के डेमोक्रेट्स जिम मैकगोवर्न ने आत्मदाह के मामलों के प्रति चीन के रुख की आलोचना की. आयोग के सह अध्यक्ष मैकगोवर्न ने कहा, ”यह मानने की बजाय कि इस तरह के हताशा भरे और चरमपंथी विरोध से निपटने के लिए बातचीत और मेलमिलाप की जरूरत है, चीन सरकार ने तिब्बती भिक्षुओं के दमन का स्तर और बढ़ा दिया है.”

तिब्बती विरोध प्रदर्शन ऐसे समय में हो रहे हैं जब अरब दुनिया अशांति से गुजर रही है और कई देशों में सरकारें बदली जा चुकी हैं. बदलाव की यह लहर ट्यूनीशिया से उस वक्त शुरू हुई जब एक सब्जी बेचने वाले ने तंग आकर खुद को आग लगाई.

नाम न जाहिर करने की शर्त पर सिछुआन से एक तिब्बती भिक्षु ने एएफपी को बताया कि आत्मदाहों की वजह दलाई लामा से गंभीर वार्ता करने से चीन सरकार का इनकार है.

”तिब्बत जाएं अमेरिकी राजदूत”

किरती मठ के मार्गदर्शक 11वें क्याबजे किरती रिनपोचे ने अमेरिकी आयोग को बताया कि तिब्बतियों के पास कोई आजादी नहीं है. यहां तक कि एक चिट्ठी पोस्ट करने पर भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है. भारत में निर्वासित जीवन बिता रहा रिनपोचे ने कहा, ”अपनी भावनाओं को जाहिर करने के लिए उनके पास कोई माध्यम नहीं है. इसलिए उन्होंने अपनी तरफ ध्यान खींचने के लिए यह खतरनाक रास्ता अख्तियार किया है. ज्यादातर तिब्बती इस तरह की स्थिति में रह रहे हैं जैसे वे किसी अन्य देश में नजरबंद हों.”

लोकतंत्र और विश्व मामलों के लिए अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री मारिया ओटेरो का कहना है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन से चीन से आग्रह किया है कि वह तिब्बत में स्थिति को खराब करने वाली अपनी नीतियों पर गौर करे. विदेश मामलों की संसदीय समिति के सामने उन्होंने कहा, ”विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी बराबर और प्रत्यक्ष रूप से चीन सरकार के साथ खुद कुरबान हो रहे लोगों का मामला उठाते रहे हैं.” ओटेरो तिब्बत पर अमेरिकी नीति की समन्वयक भी हैं.

लेकिन वर्जीनिया से रिपब्लिकन प्रतिनिधि फ्रांस वॉल्फ ने डेमोक्रेट सरकार से और कदम उठाने को कहा. उन्होंने कहा कि चीन में अमेरिकी राजदूत गैरी लोक को तिब्बत का दौरा करना चाहिए. उन्होंने कहा, ”लोक को न सिर्फ ल्हासा जाना चाहिए और बाकी देश में भी घूमना चाहिए और जब यह काम पूरा हो जाए तो एक प्रेस कांफ्रेस भी करनी चाहिए.”

डी-डब्लू वर्ल्ड, 4 नवंबर, 2011


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