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एसईई लर्निंग कांफ्रेंस का उद्घाटन

December 1, 2022

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                  थेकछेन छोएलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत।०९दिसंबर २०२२शुक्रवार की सुबह नई बनी ‘दलाई लामा लाइब्रेरी एंड आर्काइव बिल्डिंग’ के ऑडियंस हॉल में ‘एसईई लर्निंग®: ए वर्ल्डवाइड इनिशिएटिव फॉर एजुकेटिंग द हार्ट एंड माइंड (ह्रदय और मन के शिक्षण को लेकर वैश्विक पहल)’ विषय पर एक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में २००से अधिक लोग एकत्रित हुए। इनमें से कई एमोरी कंपेशन सेंटर और अटलांटा के जॉर्जिया स्थित एमोरी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में चल रहे सोशल, इमोशनल एंड एथिकल लर्निंग (सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक शिक्षण) परियोजना से जुड़े थे।

परम पावन दलाई लामा ने सभा को संबोधित किया।

परम पावन ने जे. सोंखापा के ‘प्रतीत्य समुत्पाद की स्तुति’ से एक गाथा (श्लोक) का पाठ किया, जो इस प्रकार है:

बुद्ध के मार्ग पर चलने के लिए,

उसके वचनों के अध्ययन में ढिलाई न करते हुए,

और योग अभ्यास के महान संकल्प के साथ,

भिक्षु सत्य के उस महान शोधक के प्रति स्वयं को समर्पित करता है।

उन्होंने बताया कि उपरोक्त पंक्तियां उनके स्वयं के अनुभव से संबंधित है। यह इसलिए कि उन्होंने ल्हासा में उपसंपदा दीक्षा ली थी और वहीं पर भिक्षु के रूप में भी दीक्षित हुए थे। इसके बाद वहीं पर उन्होंने त्रिपिटकों और अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया था। यहां तक कि उन्होंने अपने गुरुओं, विशेषकर लिंग रिनपोछे के साथ चंद्रकीर्ति के ‘मध्यम मार्ग प्रवेश (मध्यमकावतार)’ को भी कंठस्थ किया था।

भिक्षु दीक्षा लेने के बाद उन्होंने बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन किया। लेकिन तिब्बत में रहने के दौरान उन्होंने जो कुछ सीखा, उसे समेकित करने में असमर्थ रहे। उन्होंने कहा कि निर्वासन में आने के बाद से उन्होंने ऐसा करने की कोशिश की है। इसका सार बोधिचित्त और शून्यता की समझ को विकसित करना है। उन्होंने घोषणा की कि सोंखापा की तरह, ‘योग अभ्यास के महान संकल्प के साथ यह भिक्षु स्वयं को सत्य के उस महान वाहक- बुद्ध के प्रति समर्पित करता है।’

‘मैं एकाग्रता और विशेष अंतर्दृष्टि को संयोजित करने के लिए तरस रहा हूं और इस तरह देखने के पथ तक पहुंच गया हूं। जैसा कि चंद्रकीर्ति अपने ‘मध्यमकावतार’ में कहते हैं, जो इस प्रकार है:

‘ज्ञान के प्रकाश की किरणों से प्रकाशित बोधिसत्व अपनी खुली हथेली पर रखें आंवले में स्पष्ट रूप से देखते हैं कि उनकी संपूर्णता में तीनों क्षेत्र अपने आरंभ से ही अजन्मे हैं और पारंपरिक सत्य के बल पर वे मुक्ति की यात्रा करते हैं।’ – ६.२२४

‘और बोधिसत्व राजहंस की तरह अन्य निपुण हंसों के आगे पारंपरिक और परम सत्य के सफेद पंखों के सहारे उड़ते हुए सद्गुणों की शक्तिशाली झोकों से प्रेरित होकर उत्कृष्ट सुदूर तट (परम शांति) पर पहुंचने के लिए विजेताओं की तरह उड़ान भरेंगे। – ६.२२६

‘बोधिसत्व हमेशा दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित होते हैं। इस प्रकार, अध्ययन का उद्देश्य अन्य प्राणियों का कल्याण करना है। हमारे लिए यह दुनिया के इंसान हैं।’

‘हममें से किसी के भी १००साल से अधिक जीने की संभावना नहीं है। मेरा मानना है कि जब तक हम जीवित हैं, हमें अध्ययन और साधना करनी चाहिए। खुद को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। यह मैंने किया है। उद्देश्य यह है कि हम अपने दैनिक जीवन में जो सीखते हैं उसे एकीकृत करें। चूंकि मैंने परोपकारी बोधिचित्त और प्रतीत्य समुत्पाद की समझ को अपने लिए उपयोगी पाया है, इसलिए मैंने जो सीखा है उसे दूसरों के साथ साझा करने का प्रयास करता हूं।’

‘लगभग हम सभी का पालन-पोषण हमारी माताओं ने किया है। उनके प्यार और स्नेह का आनंद लेते हुए हमें करुणा का पहला पाठ मिला। हमें इन भावनाओं का पोषण और विकास करने की आवश्यकता है और फिर उन्हें दूसरों के साथ साझा करना है। यह कुछ ऐसा है जो हम कर सकते हैं। यदि हम करुणामय जीवन जीते हैं तो मृत्यु के समय हम अपने आप आराम से ऐसा करने में सक्षम होंगे।’

‘मेरे जीवनकाल में इतना खून-खराबा हुआ है। मैंने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध, कोरियाई युद्ध, वियतनाम युद्ध आदि की विनाशलीलाएं देखी हैं। अब हमें एक शांतिपूर्ण विश्व बनाना है। बाहरी हथियारों पर भरोसा करने के बजाय हमें अपने भीतर करुणा की रक्षा की जरूरत है। विश्व शांति का आधार करुणा और सौहार्दता है।’

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

‘विश्व शांति आसमान से नहीं टपकेगी। इसके लिए हमें अपने मन में दूसरों के लिए करुणा विकसित करना होगा। सौहार्दता आवश्यक रूप से धार्मिक साधना तक ही सीमित नहीं है; निस्संदेह इसे धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के संदर्भ में विकसित किया जा सकता है। मैं आशा करता हूं कि अगले कुछ दशकों में मैं दूसरों के साथ करुणा साझा करना जारी रख सकूंगा।’

‘मैं दिन-रात करुणा की साधना करता हूँ। मेरे दोस्तों, मैं आपसे ऐसा करने के लिए अनुरोध करता हूं और प्रोत्साहित करता हूं।’

इस कांफ्रेंस में परम पावन को कई पुस्तकें भेंट की गईं, जिनमें एसईई लर्निंग हाई स्कूल पाठ्यक्रम का चौथा खंड और पिछले तीन खंडों का हिंदी अनुवाद शामिल है। उन्होंने जवाब दिया:

‘आप जो कर रहे हैं, मैं उसकी बहुत सराहना करता हूं।’

‘और कुछ और जिसका मैं उल्लेख करना चाहता हूं वह है ग्लोबल वार्मिंग। जैसे-जैसे यह अधिक से अधिक गंभीर होता जा रहा है, इसके प्रभाव हमारे नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे यह गर्म और गर्म होता जाता है, ऐसा लगता है कि अंततः हमारी दुनिया आग से भस्म हो सकती है।’

एसईई लर्निंग पाठ्यचर्या में भाग लेने वाले छात्रों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में परम पावन ने यह समझने पर जोर दिया की कि हमारा चित्त कैसे काम करता है। उन्होंने कहा कि यह हमें इस बात को समझने में मदद करता है कि स्वार्थ, भय और क्रोध हमारे लिए अच्छा नहीं है। जबकि दूसरों के प्रति सौहार्दपूर्ण व्यवहार, खुले दिमाग से विचार करने से हमें आंतरिक शक्ति मिलती है। उन्होंने बताया कि हम अपनी इन्द्रिय चेतनाओं के माध्यम से अपने आसपास की चीजों के बारे में जागरूक हो जाते हैं। लेकिन हम केवल विश्लेषण और न्याय कर सकते हैं कि हमें अपनी मानसिक चेतना को नियोजित करके क्या करना चाहिए। और अगर हम अपने आप से पूछें कि चेतना कैसे या कहां से उत्पन्न होती है, तो ऐसा लगता है कि यह एक अनादि काल से निरंतर चलने वाली चीज है।

एमोरी कंपेशन सेंटर के निदेशक और बैठक के संचालक डॉ. लोबसंग तेनज़िन नेगी ने सत्र का समापन किया। उन्होंने अपने समय के प्रति इतने उदार होने के लिए परम पावन को धन्यवाद दिया। फिर, उन्होंने प्रार्थना की और संभावना जताई कि एसईई लर्निंग कार्यक्रम के माध्यम से जो भी योग्यता सृजित की गई है, वह परम पावन के अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन में योगदान करेगी और यह हर जगह शिक्षा का हिस्सा बन जाएगी।


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