कैनबरा। ऑस्ट्रेलियाई संसद के निचले सदन- प्रतिनिधि सभा के सदस्य एंड्रयू वालेस ने ०९ सितंबर २०२४ को सदन में तिब्बत पर एक प्रस्ताव पेश किया।
इस प्रस्ताव में चीन द्वारा तिब्बतियों का सुनियोजित सांस्कृतिक आत्मसात कर लेने की नीति की निंदा की गई। इस प्रस्ताव में तिब्बती लोगों के अपने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक लोक-व्यवहार को किन्हीं बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से संचालित करने के अधिकारों की पुष्टि की गई है। इसमें परम पावन १४वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के चयन करने का अधिकार भी शामिल है। इसमें हाल ही में अमेरिका के ‘तिब्बत-चीन समाधान अधिनियम को बढ़ावा देने के प्रस्ताव’ को कानून में शामिल करने और कनाडाई संसद द्वारा तिब्बत के आत्मनिर्णय के समर्थन का भी उल्लेख किया गया है।
प्रस्ताव पेश करते हुए प्रतिनिधि वालेस ने कहा, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी केवल तिब्बत और तिब्बतियों की संस्कृति को मिटाने की कोशिश करने से संतुष्ट नहीं है। वे उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि को भी खत्म करना चाहते हैं। सीसीपी यह दलाई लामा के उत्तराधिकारी के आगामी चयन को भी नियंत्रित करना चाहती है। लेकिन चीन की इस अधिनायकवादी नीति के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया की संसद एकजुटता के साथ खड़ी है। हम इस परंपरा के समर्थन में एकजुट हैं कि हम बुराई के सामने चुप नहीं रह सकते।’
‘पार्लियामेंट फ्रेंडशिप ऑफ तिब्बत’ की सह-अध्यक्ष सांसद सुसान टेम्पलमैन ने प्रस्ताव का समर्थन किया और कहा, ‘यहां अपने संसदीय सहयोगियों के साथ मैं चीनी अधिकारियों से पंचेन लामा को रिहा करने का आग्रह करती हूं। हम नहीं चाहते कि कोई भी देश अगले दलाई लामा के चयन में हस्तक्षेप करे। चीन की सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने चीन से कानून को निरस्त करने और तिब्बतियों के खिलाफ भेदभाव करने वाली प्रथाओं को रोकने का आह्वान किया है। मैं उन आह्वानों का समर्थन करती हूं। जैसा कि आप यहां देख रहे हैं, हम ऑस्ट्रेलिया में तिब्बत के लोगों और तिब्बतियों के लिए एक जोरदार आवाज बनना जारी रखेंगे।’
माननीय सांसद डॉ. डैनियल मुलिनो और डॉ. डेविड गिलेस्पी ने भी तिब्बती बच्चों के जबरन आत्मसात करने और तिब्बत में धार्मिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के दमन को उजागर करनेवाले प्रस्ताव की सराहना की। उन्होंने चीनी सरकार से तिब्बती संस्कृति, उनके मानवीय और राजनीतिक अधिकारों और उनकी अभिव्यक्ति, संघ और धार्मिक उपासना की स्वतंत्रता के इन सभी दमन को रोकने का आग्रह किया।
यह प्रस्ताव तिब्बत लॉबी दिवस के दौरान पेश किया गया, जिसका आयोजन ऑस्ट्रेलिया-तिब्बत परिषद ने ऑस्ट्रेलिया में तिब्बती समुदायों के सहयोग से किया था।
प्रस्ताव का मूल पाठ निम्न प्रकार है:
“यह सदन:
(१) इन बातों पर संज्ञान लेता है कि:
(क) ०६ फरवरी २०२३ को संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों ने इस बात को उजागर किया था कि लगभग दस लाख तिब्बती बच्चे चीनी सरकार की नीतियों से प्रभावित हो रहे हैं। चीनी नीति का उद्देश्य अनिवार्य आवासीय विद्यालय प्रणाली के माध्यम से तिब्बती लोगों को सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई तौर पर आत्मसात करना है,
(ख) १४ दिसंबर २०२३ को यूरोपीय संघ की संसद ने तिब्बत में चीनी आवासीय विद्यालयों के माध्यम से तिब्बती बच्चों के अपहरण और जबरन आत्मसात करने के चलन के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया,
(ग) १० जून २०२४ को कनाडाई हाउस ऑफ कॉमन्स ने सर्वसम्मति से तिब्बत और तिब्बती लोगों के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया और
(घ) १२ जून २०२४ को अमेरिकी कांग्रेस ने ‘तिब्बत-चीन समाधान अधिनियम को बढ़ावा देने का प्रस्ताव’ पारित किया,
(२) यह सदन तिब्बत के लोगों के साथ एकजुट होकर खड़ा है,
(३) यह स्वीकार करता है कि ऑस्ट्रेलिया चीन की आत्मसात करने वाली नीतियों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट के बारे में गहराई से चिंतित है, जिसमें शामिल हैं,
(क) श्रमिकों के जबरन स्थानांतरण कार्यक्रम और सरकार द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों के माध्यम से तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से जबरन अलग करना,
(ख) राजनीतिक विचारों की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए तिब्बतियों को हिरासत में लेना,
(ग) तिब्बती धार्मिक अभिव्यक्ति का दमन और
(घ) तिब्बतियों के खिलाफ अत्यधिक सुरक्षा मानदंडों का उपयोग,
(४) यह याद दिलाता है कि तिब्बती लोग अपने मौलिक मानवाधिकारों और स्वतंत्रताओं के हकदार हैं, जिसमें आत्मनिर्णय का अधिकार भी शामिल है,
(५) सदन यह भी स्वीकार करता है कि:
(क) तिब्बतियों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपनी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक नीतियों को स्वतंत्र रूप से चुनने का अधिकार दिया जाना चाहिए और
(ख) धार्मिक और आध्यात्मिक समुदायों को सरकारी हस्तक्षेप के बिना अपने स्वयं के धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं को चुनने का अधिकार दिया जाना चाहिए और इसमें परम पावन १४वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन के मुद्दे को भी शामिल किया जाना चाहिए;
(६) इसलिए सदन आह्वान करता है कि:
(क) चीनी सरकार परम पावन १४वें दलाई लामा के प्रतिनिधियों के साथ फिर से बातचीत करे ताकि चीनी संविधान के प्रावधानों के तहत तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता स्थापित की जा सके। सदन चीनी अधिकारियों से पंचेन लामा को रिहा करने का आग्रह करता है और
(ख) चीन:
(i) उन कानूनों को निरस्त करे और उन प्रथाओं को बंद करे जो नस्ल या धर्म के आधार पर तिब्बतियों के खिलाफ भेदभाव करती हैं,
(ii) मनमाने ढंग से हिरासत में लेना, श्रम बल का जबरन स्थानांतरण और परिवार अलगाव कार्यक्रम बंद करे,
(iii) तिब्बतियों की आवाजाही और उनकी अपनी संस्कृति और भाषा के उपयोग के अधिकारों पर प्रतिबंध समाप्त करे और
(iv) स्वतंत्र मानवाधिकार पर्यवेक्षकों के लिए तिब्बत में सार्थक और बेरोकटोक आवाजाही की अनुमति दे और
(७) सदन आगे यह भी यह संज्ञान में रखता है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकारें उच्चतम स्तर पर लगातार अधिकारियों के साथ राजनीतिक संवाद के माध्यम से चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे को उठाना जारी रखेंगी।
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