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कानून द्वारा शासनः “तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र” में चीन का नया “जातीय एकता” कानून

February 7, 2020

तेनजिन दासेल

तिब्बत नीति संस्थान, tibetpolicy.net

तिब्बत डेली के अनुसार, ‘सरकार, कंपनियों, सामुदायिक संगठनों, गांवों, स्कूलों, सैन्य समूहों और धार्मिक गतिविधि केंद्रों के सभी स्तरों को जातीय एकता के लिए काम करने की जिम्मेदारी दी गई है।‘ यही कानून चार साल पहले झिंझियांग में लागू किया गया था और 1 मई, 2020 से तथाकथित ‘तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र’ में प्रभावी हो जाएगा।

तिब्बती भाषा कार्यकर्ता ताशी वांगचुक को जनवरी 2016 में गिरफ्तार करने के बाद लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। फिर भी उन्हें 22 मई, 2018 को ‘अलगाववाद उकसाने’ के आरोप में दंडित किया गया था। पारित कानून इसी तरह के अस्पष्ट दावे करता है। इस कानूनी दस्तावेज का तिब्बती अनुवाद 19 पृष्ठों से अधिक में है। हालांकि मैं चीनी कानूनी प्रणाली और न्यायशास्त्र में कोई विशेषज्ञता का दावा नहीं करता, लेकिन इस कानून को सरसरी तौर पर पढ़ने पर यह प्रतीत होता है कि यह चीनी राज्य को अस्पष्ट और बड़े पैमाने पर अपरिभाषित मुहावरा शास्त्र के साथ तिब्बती प्रतिरोध को दबाने के लिए अतिरिक्त कानूनी हथियार प्रदान करता है।

उदाहरण के लिए,  इस कानून के 46 वें अनुच्छेद में बताया गया है कि व्यक्तिगत तौर पर ‘जातीय एकता को नुकसान पहुंचाना’ या ‘अलगाववाद पर चर्चा करना’ और ‘सामाजिक सद्भाव’ को खतरे में डालने पर संबंधित कार्यालयों द्वारा ‘पुनर्शिक्षा, आलोचना’ और ‘सुधारात्मक पाठ्यक्रम’ के माध्यम से प्रशासित किया जाएगा। इसी अनुच्छेद में ‘सुरक्षा’ से संबंधित मामलों में कानून के अनुसार दंडित करने की बात कही गई है। 

यह अधिनियम तिब्बतियों के अधिकारों के संबंध में चुप्पी साधे हुए है। हालांकि इससे हमें चीन की ‘जातीय नीति’ के बारे में व्यापक बहस का संकेत मिल सकता है।

2008 में व्यापक तिब्बती विद्रोह और फिर एक साल बाद झिंझियांग में चीन की जातीय नीति को लेकर बहस छिड़ गई। चीनी विद्वानों में अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता का दर्जा समाप्त करने के लिए सबसे प्रमुख आवाज पेकिंग विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री, मा रॉन्ग की है। मा का घोषित लक्ष्य जातीय पहचान का ‘अराजनीतिकरण’ है और जुकुन की स्वीकृति के साथ ही मिंजू शब्द को पूरी तरह से अस्वीकार करना है। मा के शब्दों में यह हान की सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता की बात करता है और गैर-हान को झोंघुआ मिंझु की पहचान के साथ आत्मसात करने की बात करता है।

दूसरे शब्दों में  तिब्बती, मंचू, मंगोल, उग्यूर, यी से उनकी जातीय पहचान छीन ली जाएगी और वे सब ‘चीनी मूल के लोग’ बन कर रह जाएंगे। इस उधार ली हुई नीति का एहसास कराने के लिए  मा सामाजिक न्याय और जातीय एकीकरण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक आवश्यक उपाय के रूप में चीनी कानूनी प्रणाली को मजबूत करने का सुझाव देते हैं। अपने आलोचकों को जवाब देते हुए वह कहते हैं कि जातीय पहचान के अराजनीतिकरण में राष्ट्रीयता के स्तालिनवादी सिद्धांत का अनुकरण करना भी शामिल है।

मैंने अल्पसंख्यकों के बारे में चीन की स्टालिन के ’राष्ट्रीयता’  के सिद्धांत की नीति को छोड़ने का सुझाव दिया है। इस समायोजन के साथ आधुनिक समाज में चीन के अल्पसंख्यकों के सभी अधिकारों को नागरिक अधिकारों के रूप में रखा जा सकता है, जबकि अल्पसंख्यकों को अलग सांस्कृतिक समूहों के रूप में माना जा सकता है। इस प्रकार चीन के राष्ट्र-निर्माण के लक्ष्य को श्एक बहु-राष्ट्रीय राज्यश् की बजाये श्एक बहु-नस्लीय राष्ट्र-राज्यश् के रूप में समायोजित किया जाना चाहिए।

वह ‘मार्क्सवादी राष्ट्रीयता सिद्धांत’ ’की सीमाओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं, जो उनके अनुसार, चीन की राष्ट्रीयताओं के बीच संबंधों को बेहतर बनाने में बहुत कम सहायता प्रदान करता है। वह शायद उन तिब्बती नेताओं का जिक्र कर रहे हैं जो कम्युनिस्ट तंत्र का हिस्सा थे, फिर भी तिब्बती भाषा, पहचान और संस्कृति के संरक्षण का आह्वान कर रहे थे। मा की प्रतिक्रिया काफी हद तक यह बताती है कि जब वह सुझाव देते हैं कि ‘वास्तव में, श्राष्ट्रीयता के मार्क्सवादी सिद्धांतश् में शिक्षित अल्पसंख्यक कुलीनों में इन मुद्दों पर चर्चा करते समय मजबूत राष्ट्रीयता चेतना भी दिखाई देती है।

19वीं पार्टी कांग्रेस के दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास में एक आमूलचूल परिवर्तन किया गया। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ने शी जिनपिंग को राष्ट्रपति पद पर बने रहने की कार्यावधि की सीमा समाप्त कर दी है, यानी कि वह जब तक चाहें अपने पद पर बने रह सकते हैं। शिन्हुआ समाचार एजेंसी ने यह खबर 25 फरवरी, 2018 को दे दी थी, जिसमें कहा गया था कि ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को अपने पद पर लगातार दो से अधिक बार नहीं रहने की सीमा को देश के संविधान से हटाने के लिए प्रस्ताव दिया है।

19 वीं पार्टी कांग्रेस के दौरान अपनी कार्य रिपोर्ट में  शी जिनपिंग ने तीन घंटे से अधिक समय तक अपना भाषण दिया। उन्होंने आगे ‘पार्टी की सफलता सुनिश्चित करने के लिए’ संयुक्त मोर्चा कार्य विभाग (यूएफडब्ल्यूडी) की भूमिका पर जोर दिया। संयुक्त मोर्चा कार्य विभाग चीनी जन राजनीतिक परामर्श सम्मेलन (सीपीपीसीसी) के साथ समन्वय में कार्य करता है। 20 अक्टूबर को सीसीपी  की 19वीं राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के समय ही इससे इतर यूएफडब्ल्यूडी के कार्यकारी प्रमुख झांग यिजोंग ने धार्मिक मामलों पर सीसीपी की नीतियों के बारे में विस्तार से बताया जो कार्यरूप में 2012 में हुई 18वीं पार्टी कांग्रेस के बाद से ही चल रही है (ढसाल 2019)। झांग ने चीन में सीसीपी के ‘धर्मों का चीनीकरण’ और ‘समाजवादी मूल्यों’ को साकार करने में धार्मिक समुदाय की भूमिका पर जोर दिया। सार्वजनिक संबोधन में उन्होंने इसी बात को कहा। उन्होंने भाषण में जो कहा उसे शब्दशः नीचे उद्धृत किया जा रहा है, उन्होंने कहाः

तिब्बती बौद्ध धर्म हमारे प्राचीन चीन में पैदा हुआ चीनी विशेषताओं वाला धर्म है। यह सच है कि तिब्बती बौद्ध धर्म के स्वरूप पर अन्य पड़ोसी बौद्ध देशों का प्रभाव पड़ा है, लेकिन यह स्थानीय वास्तविकता के अनुकूल था और उसने अपने स्वयं के अनूठे सिद्धांत और अनुष्ठानों को प्रचलित किया, जो स्वयं में चीनीकरण का एक मॉडल है। हम जो सक्रिय रूप से तिब्बती बौद्ध धर्म को चीनीकरण की दिशा में निर्देशित कर रहे हैं, इससे उम्मीद है कि तिब्बती बौद्ध धर्म उत्कृष्ट चीनी संस्कृति से प्रेरणा ग्रहण करेगा और चीनी संस्कृति को आगे बढ़ाएगा।

यह स्पष्ट नहीं है कि विविधता का प्रबंधन करने के संदर्भ में सीसीपी किस दिशा में जा रहा है। उइघुर लोगों की बड़े पैमाने पर नजरबंदी के बारे में गुप्त आधिकारिक दस्तावेजों के लीक होने से सीसीपी की कट्टरपंथी योजनाओं के बारे में पता चलता है। यह असल में ‘अल्पसंख्यक’ लोगों के समाज को खत्म करने और उनके विचारों और व्यवहार को बदलने का प्रबंधन है। हम तिब्बती प्रतिरोध और अन्य असंतुष्ट समुदायों को दबाने के लिए चीनी सरकार द्वारादमनकारी कार्रवाई के लिए कानूनों के चयनित उपयोग के उसके चरित्र से अनजान नहीं हैं। लेकिन ‘नस्लीय एकीकरण’ पर जोर और तिब्बती संस्कृति और धर्म के चीनीकरण का आह्वान उसके अभी तक के घोषित दिशा-निर्देशों की असलियत का पर्दाफाश करता है। 

’डॉ तेनजिन दासेल तिब्बतन पॉलिसी इंस्टीट्यूट में रिसर्च फेलो हैं। हालांकि, यहां व्यक्त किए गए उनके विचार तिब्बतन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।


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