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केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की वैधानिकता एवं भूमिकाः केलसांग ग्याल्तसेन, परम पावन दलाई लामा के दूत

June 23, 2011

(द टिबेटपोस्ट डाँट कॉम, 21 जून 2011 धर्मशाला)

एक बार फिर निर्वासित तिब्बतियों की छोटी सी दुनिया में इस बात को लेकर भावनात्मक और राजनीतिक विवादों के बवंडर में फंसी दिखती है कि परम पावन दलाई लामा अपने प्रशासनिक एवं राजनीतिक अधिकार तिब्बती प्रशासन के चुने हुए अंग को सौंपने जा रहे हैं और इस बात पर भी कि तिब्बती भाषा में निर्वासित तिब्बती सरकार की जगह अब केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ही कहा जाए। कई बार इस बहस का स्वर सताने वाला, कड़वा और अपने को पीड़ा पहुंचाने वाला हो जाता है जो बहस करने वाले कुछ तिब्बतियों के अपनी बात को साबित करने के लिए किसी हद तक जाने की मानसिकता प्रदर्शित करता है।

इस तरीके से अभी तक जो तर्क-वितर्क चल रहा है वह कुछ हद तक खुद को नुकसान पहुंचाने वाला और हतोत्साहित करने वाला है बजाए इसके कि इसमें जुड़े मसले को स्पष्ट करने में मदद मिले और अच्छी तरह से समझा जा सके। इन बदलावों का प्राथमिक लक्ष्य यह सुनिशिचत करना है कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के नेतृत्व में चल रहा तिब्बत की आज़ादी का संघर्ष लगातार चलता रहे। ये बदलाव तिब्बती नेतृत्व की इस राजनीतिक इच्छाशक्ति और दृढ़ता को प्रदर्शित करते हैं कि तिब्बत की आज़ादी की लड़ाई को तब तक जारी रखा जांए जब तक वह इस तरह से जमीन पर मजबूती से खड़ा नहीं हो जाता कि भविष्य में भाग्य के फेर से कैसा भी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण हो, वह कार्य करता रहे और जारी रहे।

परम पावन दलाई लामा द्वारा अपनी राजनीतिक सत्ता केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के चुने हुए नेताओं को सौंपने को इस रूप में ही देखना और समझना चाहिए उनको तिब्बतियों की राजनीतिक परिपक्वता और तिब्बती जनता की दृढ़ता पर भरोसा है, खासकर तिब्बत के भीतर और निर्वासन में रहने वाली युवा पीढ़ी पर मेरा मानना है कि यही वह केंद्रीय संदेश है जो इस बदलाव में निहित है और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन तिब्बतियों, चीनी नेतृत्व तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को देना चाहता है।

यह निशिचत रूप से एक ऐसी पहल है जो तिब्बती नेत़ृत्व की ताकत, आत्मविशवास, दृढ़ता और साधन संपन्नता को प्रदर्शित करती है। द़ृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और हमारे स्वतंत्रता संग्राम के प्रति प्रतिबद्धता की यह भावना निर्वासित तिब्बतियों के चार्टर में किए गए संशोधानों से साफ तौर पर जाहिर होती है। इन संशोधनों से यह साफ है कि परमपावन वह सब कुछ केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और खासकर उसके लोकतंत्रिक नेतृत्व को सौंप देंगे जो शक्तियां और जिम्मेदारियां पहले समूची तिब्बती जनता के प्रतिनिधित्व और उसकी सेवा के लिए उनके और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को संयुक्त रूप से हासिल थीं।

चार्टर की नई प्रस्तावना में राखांकित किया गया है, समूची तिब्बती जनता के प्रतिनिधि और वैधानिक शासन निकाय के रूप में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की भूमिका को सुरक्षित रखा जाएगा।

इसमें इस बात को भी प्रतिस्थापित किया गया है कि दूसरी ईसा पूर्व से लेकर 1951 में तब तक तिब्बत एक संप्रभु राष्ट्र रहा है जब तक इस पर चीन जनवादी गणतंत्र ने हमला नहीं किया था। इसमें साल 1959 में निर्वासन में भारत आने के बाद परम पावन दलाई लामा द्वारा कई राजनीतिक सुधार प्रयासों को भी रेखांकित किया गया है।

इस पृष्ठभूमि को देखते हुए यह दावा करने का कोई आधार नहीं है कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ने हाल में हुए बदलावों की वजह से समूची तिब्बती जनता के प्रतिनिधित्व का जनादेश खो दिया है। इसके विपरीत सच यह है कि लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया को पूरा करने से राजनीतिक एवं कानूनी रूप से तिब्बत जनता के प्रतिनिधित्व की केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की वैधानिकता और मजबूत हुई है। प्रभुसत्ता तिब्बत की जनता में निहित है। इसका परिणाम यह होगा कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा जितनी परिपूर्ण तिब्बती सत्ता स्थापित की जाएगी तिब्बती जनता की आकांक्षाओं के प्रतिनिधित्व की उसकी वैधानिकता उतनी ही ज्यादा होगी।

साल 1959 में भारत में निर्वासन में आने से पहले परमपावन दलाई लामा ने यह कहा था कि वह और उनका कशग (मंत्रिमंडल) जहां कहीं भी रहेंगी  तिब्बत की जनता उन्हें अपनी सरकार और सच्चा प्रतिनिधि मानती रहेगी। परमपावन ने अपने कशग के मार्गदर्शन में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की स्थापना की थी ताकि वह सक्रियता से तिब्बत के आंदोलन को आगे बढ़ा सके, तिब्बत में हो रहे दुखद घटनाओं पर दुनिया का ध्यान आकर्षित करे और तिब्बती जनता की रक्षा और भारत पहुंचने वाले 80,000 निर्वासित तिब्बतियों की देखभाल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद ले सकें।

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का आधिकारिक नाम परमपावन दलाई लामा का केंद्रीय तिब्बती प्रशासन है। हमारे आधिकारिक लेटर-हेड और मुहर पर यह विवरण प्रदर्शित है। अपने सभी विदेशी संबंधों में हम अपने को परमपावन दलाई लामा के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के रूप में ही परिचित कराते हैं।

हम निर्वासित तिब्बती सरकार के रूप में कानूनी या राजनीतिक मान्यता नहीं चाहते क्योंकि हमे भरोसा है कि तिब्बती जनता परमपावन और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को अपनी सरकार और सच्चा प्रतिनिधि मानती है और यह लगातार हमारी वैधानिकता का स्रोत बना रहा है।

हमारे निर्वासन की शुरूआत के समय से ही ऐसा लगता रहा है कि परम पावन के लिए यह बात साफ करना बेहद महत्वपूर्ण है कि वह अपने और अपने प्रशासन के लिए सत्ता या शासन में हिस्सेदारी का कोई दावा नहीं करते। हमने निर्वासन का हमेशा ही यह प्राथमिक लक्ष्य रहा है कि तिब्बतियों को न्याय मिले और तिब्बती जनता में बुनियादी मानवाधिकारों और आजा़दी की बहाली की जाए।

इस तथ्य के बारे में कोई गंभीर विवाद है कि तिब्बत की जनता केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को तब तक अपनी वास्तविक सत्ता मानती रहेगी जब तक उसे परमपावन दलाई लामा का आशीर्वाद और पूरा समर्थन मिलता रहेगा, हाल के बदलावों के बावजूद यह केवल तिब्बत की जनता ही तय कर सकती है कि वह अपना सच्चा प्रतिनिधि किसे मानती और स्वीकार करती है। हालांकि, तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बती केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के लोकतांत्रिक चुनावों में हिस्सा नहीं ले सकते, लेकिन वे कई तरीकों से अपना समर्थन और जुड़ाव प्रदर्शित करते रहे हैं, जबकि ऐसा करने में उन्हें गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ता है।

यदि निर्वासन में रहने वाला कोई तिब्बती हाल में हुए बदलावों की वजह से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को एक गौर सरकारी संस्था मानने लगता है तो यह उसकी व्यक्तिगात सोच और अकेले का निर्णय है। थोड़े भी राजनीतिक जागरूकता और जिम्मेदारी वाला हर तिब्बती यह जानता है कि परमपावन का एक राजनीतिक सिद्धांत यह भी है कि हमेशा सबसे अच्छे की उम्मीद करो और सबसे खराब के लिए तैयार रहो।
परमपावन के इस बुद्धिमत्तापूर्ण रवैए से हमारे स्वतंत्रता संग्राम के पिछले दशकों में तिब्बती जनता और तिब्बत आंदोलन की जरूरतों की ठीक तरह से पूर्ति हुई है और इससे बहुत ज्यादा फायदा हुआ है।

चीन में रूचि रखने वालों के लिए यह कोई नया समाचार नहीं है कि हाल के सालों में चीन सरकार यह बात प्रदर्शित करती रही है कि वह अपने तथाकथित मुख्य राष्ट्रीय हित की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने से नहीं हिचकिचाएगी। चीन पर नजर रखने वालों को यह बात पता भी चल गई होगी कि ताइवान और तिब्बत पर अपने दावों जैसे मुख्य हितों की रक्षा के लिए चीनी नेतृत्व कुछ भी कर सकता है।

चीन में केंद्रीय पार्टी स्कूल के रणनीतिकार गोंग ली का बयान आया है कि, जहां तक ताइवान और तिब्बत का संबंध है बीजिंग को एक इंच जमीन भी नहीं छोड़नी चाहिए। यह खुली हुई बात है कि अपनी स्थिति को प्रमाणित करने के लिए दूसरे देशों को मजबूर करने वाले राजनय का इस्तेमाल कर रहा है। इसका एक अच्छा उदाहरण है, कई अन्य बढ़ते मामलों और संकेतों के बीच चीन की मजबूर करने वाली कूटनीति का प्रभाव और इस्तेमाल हाल में नेपाल में हमारे देशवासियों के साथ वहां की सरकार की नीतियों से देखा जा सकता है। यह बात आम है कि चीन दुनिया में किसी भी सरकार से राजनयिक संबंध शुरू करने से पहले एक चीन नीति के सिद्धांत को मानने और उस पर बने रहने की पूर्व शर्त थोपता है।

आगे की ओर देखना और भविष्य में आ सकने वाले किसी राजनीतिक बदलाव से निपटने के लिए एहतियाती कदम उठाना एक जिम्मेदार और समझदार राजनीतिक नेतृत्व का कार्य है।

चीन के तुष्टीकरण से दूर परमपावन दलाई लामा के इन प्रयासों से चीनी नेतृत्व के सामने कई चुनौतियां खड़ी होंगी। सबसे पहले इन सबसे चीन का यह दुष्टप्रचार बेकार साबित होगा कि तिब्बती नेतृत्व अलगाववाद में लगा है और उनका यह दावा भी खोखला साबित होगा कि दलाई लामा सामंती धर्मतंत्र को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं।

एक ज्यादा व्यावहारिक और ठोस राजनीतिक स्तर पर परमपावन दलाई लामा ने एक बार फिर सुस्पष्ट रूप से यह बात साफ कर दिया है कि उन्हें चीनी नेतृत्व से अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। वह चीन-तिब्बत वार्ता में तिब्बती जनता के अधिकार और कल्याण को ही सामने रखते आए हैं। उन्होंने यह बात साफ की है कि जिस बुनियादी मसले का समाधान होना चाहिए वह यह है कि एक पूर्ण स्वायत्तता को भरोसे के साथ लागू किया जाए जिससे तिब्बती जनता अपनी बुद्धिमत्ता और जरूरतों के मुताबिक अपना शासन खुद चला सके।

अपनी राजनीतिक सत्ता को छोड़कर परमपावन ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया है कि तिब्बत आंदोलन से उनका जुड़ाव कोई व्यक्तिगत अधिकार या राजनीतिक पद हासिल करने के लिए नहीं है, न ही वह निर्वासित तिब्बती प्रशासन में कोई हिस्सेदारी चाहते हैं। एक बार जब चीन से कोई संतोषजनक समझौता होता है तो केंद्रीय तिब्बती प्रशासन भंग कर दिया जाएगा और तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों को तिब्बत के प्रशासन की मुख्य जिम्मेदारी दी जाएगी। चार्टर में संशोधन करने के बाद भी केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का मुख्य राजनीतिक एजेंडा अपने विवश देश की मुक्त आवाज़ बन कर तिब्बत की जनता की सेवा करना और दुनिया भर में तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विपरीत हमारी तरह से बिना किसी संदेह के यह बात साफ है कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन तिब्बत पर शासन करने का अधिकार नहीं चाहता।

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का एकमात्र लक्ष्य और उद्देशय इससे जरा भी कम या ज्यादा नहीं है कि तिब्बती जनता के ऐसे अधिकारों को हासिल करने के संघर्ष का नेतृत्व करें जिससे वे अपने मामलों पर निर्णय खुद ले सकें और हमारी जन्मभूमि बर्फ की धरती पर आज़ादी के साथ रह सकें।

तिब्बती भाषा में हमारे प्रशासन के नाम को बदलने से तिब्बती जनता की आकांक्षाओं और आवाज़ के प्रतिनिधित्व की वैधानिकता को खत्म किए बिना केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के इस बुनियादी स्थिति फिर से पुष्ट हुई है।


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