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चीन द्वारा थोपे गए दलाई लामा को तिब्बती कभी स्वीकार नहीं करेंगे रू दलाई लामा

January 13, 2020

बोधगया, बिहार। ‘तिब्बती लोग चीन द्वारा थोपे गए दलाई लामा को स्वीकार नहीं करेंगे’ परम पावन दलाई लामा ने कल 12 जनवरी को बोधगया स्थित अपने आवास पर स्ट्राटन्यूज ग्लोबल को दिए एक विशेष इंटरव्यू में इस बात पर जोर दिया।
परम पावन ने अतीत में स्पष्ट कर दिया है कि चीन द्वारा नियुक्त कोई भी दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म का वैध नेता नहीं होगा। नवंबर 2019 में परम पावन ने तिब्बती बौद्ध धर्म के वरिष्ठ धार्मिक प्रमुखों की एक समूह की अध्यक्षता की। इस समूह ने अगले दलाई लामा का चयन करने के लिए वर्तमान दलाई लामा के एकमात्र अधिकार का समर्थन किया और उन्हें सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता के चयन के मामले में तिब्बतियों का एकमात्र निर्विवाद वैध प्राधिकार के रूप में मान्यता दी।
14 वें दलाई लामा का पुनर्जन्म बीजिंग की राजनीति के केंद्र में है क्योंकि इस पर नियंत्रण कर लेने का मतलब होगा तिब्बती बौद्ध धर्म पर अभूतपूर्व नियंत्रण और इस तरह तिब्बत पर कठोर नियंत्रण। इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए परम पावन ने कहा, ‘शारीरिक रूप से चीनियों ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया है, लेकिन मानसिक स्तर पर वे कभी भी हमें नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।‘
वे हम पर नियंत्रण के लिए हथियारों का उपयोग करते हैं और हम उनके दिमाग को प्रभावित करते हैं। हमारा तरीका उनके हथियारों की तुलना में बहुत मजबूत है।
मैं बौद्ध भिक्षु हूं और मैं बौद्ध धर्म की साधना करता हूं। मैंने कभी यह दावा नहीं किया कि मैं दलाई लामा हूं, मुझे 100 प्रतिशत यकीन है कि अपने अगले जीवन में मैं समुदाय के लिए उपयोगी हो सकूंगा। यही मेरी कामना है।‘
इस बीच, परम पावन ने 2011 में अपनी राजनीतिक भूमिका से सेवानिवृत्त होने के बाद से निर्वासित तिब्बतियों में लोकतंत्र के विकास पर बात की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र आधुनिक सरकार प्रणाली की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ‘जैसा कि लोकतांत्रिक प्रथाओं का संबंध है, हम मुट्ठी भर तिब्बती अधिक उन्नत हैं, क्योंकि हमारे पास स्वतंत्र रूप से निर्वाचित राजनीतिक नेतृत्व है। चीन के पास एक अधिनायकवादी प्रणाली है।‘
परम पावन ने कहा, ‘तिब्बतियों का संकल्प बहुत दृढ़ है। नई पीढ़ी का दृढ़ संकल्प पिछली पीढ़ी की तरह ही मजबूत है।‘
चीनी सरकार के प्रतिनिधियों के साथ संभावित बैठक के संबंध में परम पावन ने टिप्पणी की कि पीआरसी के नेताओं के भीतर एक निश्चित अहसास है कि पिछले लगभग सात दशकों में तिब्बत पर उनकी नीति ‘अवास्तविक’ है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि तिब्बती अब पूर्ण स्वतंत्रता नहीं चाहते हैं बल्कि मध्यम मार्ग दृष्टिकोण के रूप में आपसी सम्मान और सहयोग के आधार पर सह-अस्तित्व चाहते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि तिब्बत के अंदर रह रहे तिब्बतियों को अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार होना चाहिए।
जहां तक उनके तिब्बत लौटने की योजना का सवाल हुआ, परम पावन ने दृढ़ता से कहा कि निर्णय लेना जल्दबाजी होगी। इससे भी अधिक यह बात है कि वह भारत की स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं और भारत के सबसे लंबे समय तक अतिथि रहे हैं।


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