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चीनी आत्मसात नीति से अलगाव के शिकार होते तिब्बती बच्चे

February 28, 2023

प्रो0 श्यामनाथ मिश्र /  पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग

तिब्बत का षड्यंत्रपूर्वक चीनीकरण अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के लिये गंभीर चिन्ता का विषय है। तिब्बती मूल्य बौद्ध दर्शन पर आधारित हैं। चीनीकरण को नहीं रोका गया तो संपूर्ण विश्व को अपूरणीय क्षति होगी क्योंकि प्राचीन भारतीय बौद्ध नालंदा परंपरा में निहित मानवीय मूल्य संपूर्ण विश्व के लिये कल्याणकारी हैं। चीन सरकार इन्हीं आदर्शों को मिटाकर तिब्बती पहचान मिटाने में लगी है। शांति, अहिंसा, करुणा और पारस्परिक सद्भावपूर्ण सहयोग जैसे मानवीय मूल्य ही तिब्बती मूल्य तथा तिब्बती पहचान हैं। साम्राज्यवादी चीन सरकार की अनेक योजनायें इन्हीं मूल्यों और पहचान को समाप्त करने हेतु तिब्बत में लागू की गई हैं। तिब्बत में लागू चीन सरकार की ‘‘एसिमिलेशन पॉलिसी’’ अर्थात् आत्मसात-नीति इसी का नया उदाहरण है।

आत्मसात-नीति के अन्तर्गत चीन सरकार द्वारा तिब्बत में छः से पन्द्रह साल के छोटे बच्चों को आवासीय विद्यालयों में रखा जा रहा है। ऐसे बच्चों की संख्या लगभग दस लाख है। ये बच्चे पूरी तरह अपने परिजनों, तिब्बती भाषा तथा कल्याणकारी जीवन दर्शन एवं सांस्कृतिक मूल्यों से अलग हो गये हैं। तिब्बती लोगों की इच्छा के विरूद्ध उनके बच्चों के साथ ऐसा हो रहा है। चीन सरकार आवासीय विद्यालयों में उन बच्चों का चीनीकरण कर रही है। इसी को एसिमिलेशन कहा जा रहा है, जबकि वास्तव में यह ‘‘एसिमिलेशन पॉलिसी’’ अर्थात् अलगाव नीति है। इन तिब्बती बच्चों का तिब्बत से अलगाव हो रहा है। वे चीनी परंपरा को आत्मसात कर रहे हैं। तिब्बती बच्चों में यह तथाकथित एसिमिलेषन पॉलिसी पूरी तरह अस्वीकार्य है।

चीन सरकार तिब्बतियों का जबरन डी.एन.ए. जमा कर रही है। किसी विशेष परिस्थिति में अत्यावष्यक होने पर कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए किसी व्यक्ति का डी.एन.ए. परीक्षण किया जाता है। तिब्बत में ऐसे किसी भी कानून का पालन किये बिना तिब्बतियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन घोर चिंता का प्रशन है। चीन सरकार की इस नीति का उदेश भी तिब्बत का चीनीकरण है। चीन सरकार 1959 से ही तिब्बती पहचान मिटाने में लगी है। बौद्ध मठ-मंदिर, पुस्तकालय तथा सांस्कृतिक-ऐतिहासिक अवशेष नष्ट और विकृत किये जा रहे हैं। भगवान् बुद्ध के अनुयायियों को प्रताड़ित-पीड़ित किया जा रहा है। बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों की जबर्दस्ती नसबंदी हो रही है। ये समस्त उदाहरण तिब्बत में बिगड़ती जा रही आंतरिक स्थिति के प्रमाण हैं।

मार्क्स, लेनिन और माओत्सेतुंग के साम्यवादी दर्शन को मानने वाली चीन सरकार तिब्बतियों के बौद्ध परंपराओं में भी अवांछित हस्तक्षेप कर रही है जबकि साम्यवाद धर्म को अफीम या जहर समझता है। ऐसे में यह प्रशन स्वाभाविक है कि बौद्ध धर्म की प्राचीन परंपराओं में चीनी हस्तक्षेप का कारण क्या है? उत्तर स्पष्ट है। अपने हस्तक्षेप द्वारा चीन सरकार तिब्बत की सुस्थापित एवं सुव्यवस्थित धार्मिक परंपराओं को विकृत करना चाहती है। दलाई लामा, पंचेन लामा, टुल्कू एवं रिंपोछे आदि पद अतिसम्मानित पद हैं। इन पर व्यक्तियों का चयन एक निर्धारित प्रक्रिया अपनाकर तिब्बती धर्मगुरुओं तथा बौद्ध विद्वानों द्वारा किया जाता है। वर्तमान परम पावन दलाई लामा का चयन भी इसी प्रकार हुआ था। पुनर्जन्म और अवतार संबंधी बौद्ध परंपरा बहुत ही स्पष्ट और व्यवस्थित है। चीन सरकार, जो साम्यवादी होने के कारण पुनर्जन्म और अवतार के विचार को अनुचित मानती है, दलाई लामा के अगले पुनर्जन्म के संबंध में स्वयं निर्णय लेने को तैयार है। चीन सरकार का ऐसा कोई भी निर्णय स्वीकार नहीं होगा। पुनर्जन्म और अवतार संबंधी निर्णय तिब्बती धर्मगुरु और बौद्ध विद्वान ही करेंगे। उनका निर्णय ही स्वीकार्य और प्रभावी होगा।

तिब्बत पर अवैध नियंत्रण कर चुका चीन तिब्बती आकांक्षाओं तथा मूल्यों को प्रकाशित -प्रचारित-प्रसारित करने वाले तिब्बती विद्वानों, कलाकारों, पत्रकारों, लेखकों, शिक्षकों तथा धर्मगुरुओं की अवैध गिरफ्तारी कर रहा है। उन्हें क्रूरतापूर्ण यंत्रणायें दे रहा है। वर्तमान चीनी राष्ट्रपति शी जिंपिंग इस मामले में और अधिक अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं। उनके शासनकाल में तिब्बत में मानवाधिकार हनन, प्राकृतिक संपदा का विनाश तथा पर्यावरण-प्रदूषण साजिषपूर्वक व्यापक पैमाने पर जारी है। फ्रीडम हाउस रिपोर्ट में तथा मानवाधिकार संबंधी अन्य संस्थाओं की रिपोर्ट में तिब्बत की आंतरिक दषा को अत्यन्त गंभीर बताया जा रहा है। उनके अनुसार चीनी पराधीनता के शिकार तिब्बत में मानवाधिकार की स्थिति सीरिया और नॉर्थ कोरिया में मानवाधिकार के समान हो गई है। विष्व में मानवाधिकार की सर्वाधिक खराब स्थिति के उदाहरण में सीरिया और नार्थ कोरिया के साथ तिब्बत का नाम जुड़ जाना अत्यन्त चिंता का विषय है।

विश्व के सभी लोकतांत्रिक देशों से तिब्बती समुदाय की अपेक्षा है कि वे तिब्बत में जारी चीनीकरण, मानवाधिकार हनन, प्राकृतिक संसाधनों के विनाश तथा पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिये चीन सरकार को बाध्य करेंगे। परमपावन दलाई लामा तथा तिब्बती समुदाय द्वारा मतदान के माध्यम से निर्वाचित तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रतिनिधि मंडल के साथ चीन सरकार पुनः वार्ता प्रारंभ करे। दलाई लामा एवं निर्वासित तिब्बत सरकार पूर्ण आजादी की जगह चीन के अन्तर्गत सिर्फ ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ लेने को तैयार हैं। चीन सरकार अपने पास वैदेशिक मामले और प्रतिरक्षा विभाग रखे। कृषि, उद्योग समेत अन्य सभी विषय वह तिब्बतियों को सौंप दे। इससे चीन की एकता-अखंडता एवं संप्रभुता सुरक्षित रहेगी तथा तिब्बतियों को स्वषासन का अधिकार मिलेगा। यही मध्यममार्ग है अर्थात् बीच का रास्ता। ऐसी व्यवस्था चीन के संविधान तथा उसके राष्ट्रीयता संबंधी कानून के अनुकूल होगी। तिब्बत संकट का व्यावहारिक हल यही है।


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