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डीआईआईआर ने तिब्बत में मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ ७९वें यूएनजीए में बयान देने वाले १५ देशों के प्रति आभार व्यक्त किया

November 6, 2024

 

धर्मशाला। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) का सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) ने अमेरिका के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, जापान, लिथुआनिया, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और ब्रिटेन के प्रति गहरा आभार व्यक्त करते हुए प्रसन्नता व्यक्त की है। इन उपरोक्त १५ देशों ने हाल ही में संपन्न संयुक्त राष्ट्र की ७९वीं महासभा के दौरान संयुक्त बयान जारी कर तिब्बत और पूर्वी तुर्किस्तान में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना द्वारा मानवाधिकारों के चल रहे उल्लंघन की विशेष रूप से निंदा की है।

सूचना एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग में कालोन नोरज़िन डोल्मा ने कहा, ‘सूचना एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और तिब्बत के अंदर तथा निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों की ओर से मैं ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्व में १५ देशों के गठबंधन और उनके नेताओं की सराहना करता हूं, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में चीनी कब्जे वाले तिब्बत की गंभीर स्थिति को उठाकर न्याय, मानवाधिकार और शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता को साहसपूर्वक व्यक्त किया है। यह समर्थन एक सार्थक कदम है, फिर भी हम जानते हैं कि पीआरसी सरकार के औपनिवेशिक कब्जे के तहत तिब्बतियों के सामने आने वाली लगातार चुनौतियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य आगे भी जारी रहेगा। संयुक्त राष्ट्र में आपका सामूहिक समर्थन एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह अंतरराष्ट्रीय एकजुटता और कार्रवाई को आदर्श रूप में दर्शाता है। हम आगे भी वास्तविक शांति और न्याय प्राप्त करने की दिशा में चल रहे सामूहिक प्रयासों की आशा करते हैं।’

तिब्बत के भीतर तिब्बतियों के समक्ष वर्तमान में मौजूद चुनौतियों के मद्देनजर तिब्बती लोगों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन के कुकृत्यों के बारे में मुखर बयान इन भयावह स्थितियों को कम करने और तिब्बत के भीतर झेली जा रही पीड़ा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। तिब्बतियों के समक्ष मौजूद चुनौतियों में राजनीतिक विचारों की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए लोगों को हिरासत में लेना, यात्रा पर प्रतिबंध, बलपूर्वक श्रम व्यवस्था, बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर आवासीय स्कूलों में रखना और भाषाई, सांस्कृतिक, शैक्षिक और धार्मिक अधिकारों का हनन शामिल है।


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