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तवांग यात्रा का समापन

November 17, 2013

BTSM रिपोर्ट, 16 नवंबर 2013

tawang yatraगुवाहाटी ( 16/11/2013) भारत तिब्बत सहयोग मंच द्वारा ९ नबम्वर से प्रारम्भ हुई दूसरी तवांग यात्रा का आज यहाँ समापन हो गया । यात्रा के बारे में बातचीत करते हुये मंच के संरक्षक इन्द्रेश कुमार ने कहा कि भारत-तिब्बत के सम्बंधों को सुदृढ़ करने एवं चीन के बढ़ते ख़तरे के प्रति जागरुकता पैदा करने हेतु प्रारम्भ की गई यह यात्रा तेज़पुर से होती हुई दस तारीख़ को बोमडीला पहुँची । वहाँ स्थानीय लोगों द्वारा यात्रियों का स्वागत किया गया । थुवचोग गतसेललिंग मठ में , अपने सम्बोधन में इन्द्रेश कुमार ने कहा कि प्रत्येक तिब्बती को जब वह पूजा करता है तो एक दीया तिब्बत की आज़ादी के लिये भी जलाना चाहिये । उन्होंने नारा दिया — तिब्बत की आज़ादी, कैलाश मानसरोवर की मुक्ति -भारत की सुरक्षा । तिब्बत और भारत दोनों एक दूसरे से गर्भनाल द्वारा जुड़े हुये हैं । चीन दोनों के लिये ख़तरा है । तिब्बती बसाहत के सचिव नोरबु वांगदु ने सभी यात्रियों का परम्परागत ढंग से स्वागत किया । मठ के प्रशासक लामा ने कहा कि मंच की इस यात्रा से अरुणाचल प्रदेश के लोगों का उत्साहवर्धन होता है । मंच के कार्यकारी अध्यक्ष डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने कहा चीन केवल ताक़त की भाषा समझता है ,इसलिये भारत को भी शक्ति संचय करना होगा ।

दूसरे दिन ग्यारह तारीख़ को यात्रा देर रात तवांग पहुँची । ठंड के बाबजूद अनेकों स्थानीय लोग तवांग चौक में यात्रियों की प्रतीक्षा कर रहे थे । परम्परागत स्वागत के बाद सभी यात्री मंजुश्री विद्यापीठ में पहुँचे । विद्यापीठ में भारत चीन सम्बध और तिब्बत की आज़ादी विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया हुआ था । अपना विषय प्रस्तुत करते हुये इन्द्रेश कुमार ने कहा कि चीन विस्तारवादी देश है । उसने केवल तिब्बत ही नहीं बल्कि मंचूरिया , आधा मंगोलिया और पूर्वी तुर्कमिनीस्तान को भी हड़प लिया है । दक्षिण पूर्व एशिया के दूसरे देश भी चीन की दादागिरी से तंग हैं । इस समय भारत इन देशों को नेतृत्व प्रदान कर सकता है । लेकिन उसकी परीक्षा तिब्बत में ही होने वाली है । यदि भारत तिब्बत के मुद्दे पर चीन को कटघरे में खड़ा करता है तो एशिया के दूसरे देश उस पर विश्वास कर सकते हैं ।  उन्होंने तिब्बत के १२२ स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा आत्मदाह किये जाने को इतिहास की अविस्मरणीय घटना करार दिया । अरुणाचल प्रदेश में लम्बे अर्से से सामाजिक कामों में संलग्न नरेन्द्र सिंह ने अरुणाचल के इतिहास पर प्रकाश डाला । विद्यापीठ के संस्थापक निदेशक लामा थुपतेन फुंछोक ने कहा यदि तिब्बत आज़ाद हो , तो हिमालय की रक्षा के लिये किये जाने वाला धन विकास कार्यों में ख़र्च हो सकता है । उन्होंने कहा तिब्बती समाज भारत का देनदार रहेगा कि संकट काल में तिब्बती समाज की भारत ने भरपूर सहायता की । मंच के कार्यकारी अध्यक्ष कुलदीप अग्निहोत्री ने कहा कि मंच की यह भारत-तिब्बत यात्रा तिब्बत के स्वतंत्रता संग्राम को बल देने वाली होगी । उन्होंने कहा ख़ुशी की बात है कि तिब्बतियों ने इतने दशक बाद भी मन से चीन की ग़ुलामी को स्वीकार नहीं किया है ।

बारह तारीख़ को यात्रा तवांग से तिब्बत की सीमा की ओर दस गाडियों के काफिले में बढ़ चली । संगत्सेर झील पर सभी यात्री एकत्रित हुये और वहाँ के गुरु पदमसम्भव मंदिर में पूजा अर्चना की । भारत माता की आराधना करने और तिब्बत मुक्ति का संकल्प लेने के बाद सभी प्रतिभागी वापिस तवांग पहुँचे । वहाँ १९६२ के शहीदों की याद में बनाये गये तवांग युद्ध स्मारक को नमन करने के बाद छटे दलाई लामा का जन्म स्थान देखने गये । ज्ञात हो कि छटे दलाई लामा का जन्म भारत में हुआ था । यहाँ इन्द्रेश कुमार ने बताया क अगले साल से यात्रा २१ नबम्वर को तवांग पहुँचा करेगी । भारत-तिब्बत यात्रा का उद्घोष वाक्य होगा – माँ कामाख्या से तवांग के बुद्ध मंदिर तक । यात्रा में पंजाब , हरियाणा , झारखंड , दिल्ली व पुदुच्चेरी राज्य समेत तिब्बत के प्रतिभागियों ने भी भाग लिया ।


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