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तिब्बत के पिघलते ग्लेशियर निचले देशों में जलवायु शरणार्थियों का कारण बन सकते हैं

November 12, 2018

तिब्बतनरिव्यू. नेट, 11 नवंबर, 2018

चीन के आधिकारिक globaltimes.cn में 9 नवंबर को एक चीनी ग्लेशियर विशेषज्ञ की चेतावनी का हवाला देते हुए बताया गया  है कि तिब्बती पठार सहित एशिया के ग्लेशियरों के पिघलने की यही गति रही तो अगले 50 वर्षों में यह बड़ी संख्या में जलवायु शरणार्थियों का कारण बन सकती है और चीन, पाकिस्तान, भारत, ईरान और कज़ाखस्तान जैसे देशों में एक अरब से अधिक आबादी के जीवन को प्रभावित कर सकती है।

एक ग्लेशियर विशेषज्ञ और चीनी एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के अकादमिशियन याओ टंडोंग ने बेल्ट और रोड क्षेत्र में एलायंस आफ इंटरनेशनल साइंस आर्गेंनाइजेशन (एएनएसओ) की पहली आम सभा के दौरान अलग  से बात करते हुए कहा कि लगभग 2060 से 2070 तक दो वर्ग किलोमीटर से कम  के सभी ग्लेशियर तीसरे ध्रुव से पूरी तरह गायब हो जाएंगे और बड़े हिमनद आकार के ग्लेशियर बहुत छोटे हो जाएंगे। इसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में पानी का उत्पादन बहुत कम हो जाएगा।

दो करोड़ किलोमीटर क्षेत्र में  फैला पूरा तीसरा ध्रुव्र, जिसे एशियाई जल टॉवर कहा जाता है, जिसमें तिब्बती पठार और ईरानी पठार के यूरेशियन हाइलैंड्स, काकेशस और कार्पैथियंस शामिल हैं, में बेल्ट और रोड क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा पड़ता है और जो तीन  अरब आबादी का निवास स्थान  है। याओ  को  यह  कहते बताया गया है कि पानी उत्पादन में गिरावट से क्षेत्रीय आर्थिक विकास को खतरा होगा।

सितंबर 2018 में आधिकारिक सिन्हुआ समाचार एजेंसी की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए globaltimes.cn ने लिखा है कि तिब्बती पठार और पड़ोसी क्षेत्रों के ग्लेशियर पिछली आधी सदी में 15 प्रतिशत तक पिघल चुके हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में तिब्बतन आटोनॉमस रिजन के न्गारी प्रीफेक्चर में यह बड़ा बर्फ पिघलन था, जिसमें सैकड़ों जीवन दफन  हो गए थे और दूसरा बड़ा हिम पिघलन यारलंग त्संगपो नदी में हुआ था जिसके परिणामस्व रूप बांध झील बन जाने के कारण 6,000 से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा  था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन एशियाई जल टॉवर का अध्ययन करने के लिए 30 से अधिक देशों और क्षेत्रों के साथ सहयोग कर रहा है और सीएएस ने इस उद्देश्य के लिए म्यांमार, श्रीलंका और नेपाल समेत दूसरे देशों में ओवरसीज रिसर्च सेंटर स्थापित किए हैं।


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