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तिब्बत के प्रधानमंत्री को मिली दलाईलामा की शक्तियां

May 25, 2011

Dainik Baskar (25/05/11)

धर्मशाला। धर्मगुरु दलाईलामा की ओर से अपनी राजनीतिक व प्रशासनिक शक्तियां चुने हुए प्रतिनिधि को सौंपने के निर्णय पर मंगलवार को अंतिम मुहर लग गई। इस निर्णय की प्रति दलाईलामा को सौंप दी गई है। 15 अगस्त को निर्वासित सरकार के पीएम डॉ. लोबसंग सांगये के शपथ लेते ही उनके पास उन शक्तियों का हस्तांतरण हो जाएगा जो शक्तियां पहले दलाईलामा के पास थी।

इसके बाद निर्वासित सरकार में लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हो गई हैं। अब लोगों की ओर से चुने हुए प्रतिनिधि के पास राजनीतिक व प्रशासनिक शक्तियां होंगी। उनका हस्तांतरण तिब्बती चार्टर के तीन स्तंभों में परिवर्तन के बाद किया गया है। दलाईलामा ने 1992 में तिब्बत निर्वासित सरकार में लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाते हुए चुने प्रतिनिधियों को अधिक शक्तियां देने की कवायद की थी जिसकी अंतिम कड़ी में अब अपनी शक्तियों का पूर्णतया हस्तांतरण कर दिया है।

दलाईलामा ने अपनी अनुपस्थिति में तिब्बतियों को नेतृत्व देने व उनको अपने पांव पर खड़ा करने के मद्देनजर यह कदम उठाया है। महाधिवेशन में तिब्बत निर्वासित सरकार के चार्टर में दलाईलामा की राजनीतिक शक्तियों के हस्तांतरण संबंधी संशोधन व दलाईलामा के प्रस्ताव के अध्ययन के लिए निर्वासित प्रधानमंत्री प्रो. सामदोंग रिम्पोछे की अध्यक्षता में गठित ड्राफ्टिंग कमेटी के सुझावों पर अंतिम निर्णय लिया गया।

ड्राफ्टिंग कमेटी ने तिब्बती चार्टर के आर्टिकल 39 में संशोधन करने के साथ आर्टिकल 19 में दलाईलामा के निहित प्रशासनिक शक्तियों में संशोधन करने पर अंतिम सहमति प्रदान की है। इसके अतिरिक्त तिब्बती चार्टर में संशोधन कर आर्टिकल 31-35 को चार्टर से गया, क्योंकि इन आर्टिकल में निर्वासित मंत्रिमंडल की शक्तियां दलाईलामा के पास थी।

वहीं तिब्बती चार्टर की 9 प्रशासनिक शक्तियां जो दलाईलामा के पास थी, उनके भी हस्तांतरण के लिए चार्टर में संशोधन को अंतिम मंजूरी प्रदान की गई। गौरतलब है कि अगस्त 2010 में दक्षिण भारत के बेलाकूपी में प्रथम महाधिवेशन में निर्वासित तिब्बतियों के प्रतिनिधियों ने दलाईलामा की इच्छा को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए निर्वासित तिब्बत चार्टर में संशोधन करने का निर्णय लेकर ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया था।

दलाईलामा की मध्य मार्गीय नीति का अनुसरण करना मेरा कर्तव्य : डॉ. लोबसंग

निर्वासित तिब्बत सरकार के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री डॉ. लोबसंग सांगये ने भारत सरकार से चीन के समक्ष उठाए जाने वाले मुद्दों में तिब्बत की आंतरिक सुरक्षा को भी उठाने की अपील की है। सांगये का कहना है कि मेरा उद्देश्य सच्चाई को उजागर करना है। आगे भारतीय नेताओं को निर्णय लेना है कि उन्हें क्या करना है। सांगये का कहना है कि उन्होंने अभी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेनी है, लेकिन चीन ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार शुरू कर दिया है।

चुनाव परिणाम घोषित होने से पहले ही चीन की पीपल्स डेली में प्रकाशित एक आर्टिकल में मुझे आजादी समर्थक ग्रुप तिब्बतियन यूथ कांग्रेस का सदस्य बताते हुए आतंकियों से जोड़ दिया। ऐसे बयान शांतिपूर्वक वार्ता के लिए शुभ संकेत नहीं है, जबकि निर्वासित सरकार चीन से वर्ष 2001 से अब तक 9 दौरों की वार्ता कर चुकी है। तिब्बत निर्वासित सरकार द्वारा स्वायत्त तिब्बत की नीति को जारी रखा जाएगा। दलाईलामा द्वारा अपनाए गए मध्य मार्ग का अनुसरण करते हुए कार्य करना ही मेरा कर्तव्य है।

चीन के बयान का तिब्बत पर नहीं होगा प्रभाव

धर्मशाला में विश्व के विभिन्न देशों के 418 तिब्बती प्रतिनिधि दलाईलामा द्वारा अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक शक्तियां चुने हुए प्रतिनिधि को हस्तांतरित करने के निर्णय पर तिब्बतियन चार्टर में संशोधन पर चर्चा के लिए इकट्ठा हुए हैं। चीन हालांकि दलाईलामा के निर्णय को विश्व को गुमराह करने का प्रयास करार दे चुका है, लेकिन इसका तिब्बत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

तिब्बत से बाहर जन्मे पहले प्रधानमंत्री हैं डॉ. लोबसंग

डॉ. लोबसंग सांगये निर्वासित सरकार के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिनका जन्म तिब्बत से बाहर हुआ। दार्जिलिंग के सेंट्रल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद लोबसंग ने कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी गए। इसके उपरांत लोबसंग निर्वासित तिब्बती स्टूडेंट स्कॉलरशिप पर अमेरिका में हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल में कानून की पढ़ाई करने गए।


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