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तिब्बत के राष्ट्रीय विद्रोह की 49 वी वर्शगांठ पर परम पावन दलाई लामा जी का वक्तव्य

March 10, 2008

10 मार्च 1959  के ल्हासा में तिब्बत के लोगों के शन्तिपूर्ण विद्रोह की 49 वीं वर्शगांठ के अवसर पर मैं अपनी ओर से प्राथना करता हूं तथा तिब्बत के उन वीर पुरूशों और महिलाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करता हुं जिन्होंने अनगिनत कशट सहे और देश की खातिर बलिदान दिये। मैं वर्तमान में दंमन तथा यातनाये झेल रहे अपने तिब्बती बन्धुओं के साथ एक जुटता प्रकट करता हूं। मैं तिब्बत में तथा तिब्बत से बाहर रह रहे तिब्बती जन समर्थकों तथा सभी न्यायप्रिय लोगों के प्रति शुभकामनायों प्रकट करता हूं।

लगभग 6 दशकों से चोलखासुम उसांग, खम तथा अमदो के नाम से जाने जाते सारे तिब्बत में तिब्बती लोग भय, त्रास तथा संषये के वातावरण में चीनी दमन के अन्तर्गत जीवन व्यतीत कर रहे हैं, तो भी अपनी धार्मिक भावनाओं, राष्ट्रीयता एवं विषिशट संस्कृति को कायम रखते हुए तिब्बती लोग स्वतन्त्रता के प्रति मौलिक अकांक्षा को जीवित रखने में सफल हुए हैं। मेरे लिए यह हर्श का विषय भी है और गर्व का भी ।

विशव भर की अनेक सरकारों गैर सरकारी संस्थाओं एवं व्यक्तियों मे शन्ति तथा न्याय के प्रति अपनी रूचि के अनुसार निरन्तर तिब्बत के प्रशन पर हमें समर्थन दिया है। गत वर्श में विषेशकर अनेक देशें की सरकारों ने हमारे पक्ष में कुछ ऐसे पग उठाये हैं जो स्पशट रूप में हमारा समर्थन करते हैं, उनके प्रति मै आभार प्रकंट करना चाहूंगा।

तिब्बत की समस्या बडी जटिल समस्या है। वास्तव में यह अनेकानेक पहलुओं से सम्बन्घित है, जैसे कि राजनीति, समाज कानून मानवाघिकार, धर्म, संस्कृति, राष्ट्रीय अस्मिता, अर्थव्यवस्था तथा प्राकृतिक पर्यावरण की स्थिति।

फलतः समस्या के समाघान हेतु एक विशव दृशिटकोण की आवष्यकता है जिसमें सभी के हित समाहित हों न कि किसी दल विषेश के । अतःहम सदैव एक पारस्पारिक हितैशी नीति की ओर प्रतिद्ध रहे हैं अर्थात मघ्यमार्गीय दृशिटकोण। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु हमने अनेक वर्शो से प्रयास किया है। 2002 से आज तक संबन्धित समस्याओं के विचार हेतु मेरे प्रतिनिधियों ने 6 बार चीनी लोकतन्त्र के अधिकारियों से वार्तालाप किया है।

उक्त विचार दिमर्श के फलस्वरूप कुछ शंकायें हुई हैं और दूसरे पक्ष के प्रति अपनी बात रखने का हमें अवसर मिला है।, मौलिका समस्या का कोई भी समाघान नहीं हो पाया है। पिछले कुछ एक वर्श में तिब्बत में यातनाओं और नृषंसता का क्रम बंढा है। इन दुखद घटनाओं के बावजूद मध्यवर्गीय नीति का अनुसारण करने तथा चीनी प्रशसन के साथ वार्तालाप जारी रखने की मेरी प्रतिबद्धता में कोई परिर्वतन नहीं आया है।

चीनी गणतन्त्र की प्रमुख चिंता है तिब्बत में उस की वैघता का अभाव । अपनी स्थिति को सुदृढ करने हेतु चीनी प्रशसन की ऐसी नीति का अनुसरण करना चाहिए जो तिब्बत लोगों को आष्वस्त कर पाए तथा उन का विशवास हासिल कर सके। यदि हम पारस्परिक सहमति के मार्ग पर चलते हुए आपसी मेल-मिलाप प्राप्त कर सकें तो जैसे मैं पहले भी बहुत बार कह चुका हूं मै तिब्बत के लोगों का समर्थन अर्जित करने के लिये पूरा प्रयास करूंगा।

आज तिब्बत में दूरदर्षिता के अभाव में चीनी प्रशसन के अनेक कार्य-कलापों के फलस्वरूप प्राकृतिक पर्यावरण की भारी क्षति हुई है। जनसंख्या स्थानान्तरण की उनकी नीति के परिणाम स्वरूप गैर तिब्बती लोगों की संख्या कई गुना बढ गई है तथा तिब्बती अपनेही देश में नगण्य अल्पसंख्यक बन कर रह गए है।इसके अतिरिक्त, तिब्बत की भाषा, उसके रीति रिवाज तथा परम्परायें लुप्त हो रही है। फलतः तिब्बती लोगों का बहु-संख्यक चीनी लोगों में विलय मोटे तौर पर होता जा रहा है। तिब्बत में दमन का क्रम जारी हैः अनेक एवं अकथनीय प्रकार से मानवाघिकारों का हनन हो रहा हैं। यह सब परिणाम है चीनी प्रशसन के तिब्बती लोगों के प्रति आदर भाव की अनुपस्थिति के कारण। राष्ट्रीयताओं के एकीकरण के मार्ग में चीनी प्रशसन जानबूझ कर ऐसे रोडे अटका रहा है जो तिब्बतियों और चीनियों के बीच भेदभाव करते हैं । अतः मेरा चीनी प्रशसन से अनुरोध है कि वह तुरन्त ऐसी नीतियों को निरस्त करे।

यद्यपि उन प्रदेशों का जहा तिब्बती रहते हैं, ऐसे विभिन्न नाम दिये गए हैं जैसेकि स्वायत्त प्रदेश, स्वायत्त प्रीफेवचर तथा स्वायत्त का ट्रीज आदि-आदि परन्तु वे नाम मात्र में ही स्वायत्त हैं । स्वायत्ता नाम की कोई चीज उन में है नहीं। उनके प्रशसक वे लोग हैं जो स्थानीया परिस्थितियों से बिल्कुल परिचित नहीं तथा जिन की प्रेरणा है मात्र वह वृत्ति जेसे माओदेजंग ने हैन हैंकडी का नाम दिया था। मूलतः इस तथाकथित स्वायत्ता से राष्ट्रीयताओं को कोई लाभ नहीं पहुंचा। ऐसी अनुपयुक्त नीतियां जिन का वस्तु-स्थिति से कोई सम्बन्ध नहीं न केवल राष्ट्रीयताओं को बड़ी हानि पहुंचा रही हैं बल्कि राष्ट्रकी एकता और स्थिरता को भी।

चीनी प्रशसन के वांस्ते यह जरूरी है कि वह वास्तविक नायनों में जैसे कि देंग जियोपिंग ने कहा था, तथ्यों से सत्य का दोहन करें।

जब भी मैं अन्तर्राष्ट्रीय समाज के समक्ष तिब्बती लोगों के कल्याण की बात रखता हूं तो चीनी प्रशसन मेरी घोर निन्दा करता है। जब तक हम किसी पारस्परिक लाभप्रद समाघन तक नहीं पहुंचते, तिब्बती लोगों के बारे में स्वतन्त्रता का विचार करना मेरा ऐतिहासिक तथा नैतिक कर्तव्य बनता है। हां, सभी लोग जानते हैं कि मैं बहुत वर्षो से एक प्रकार से सेवानिवृत्त की स्थिति में हूं व्योंकि तिब्बतीयों के राजनीतिक नेतृत्व को अब सीघा तिब्बती प्रवासियों द्वारा चुना जाता है।

महान आर्थिक प्रगति के कारण चीन एक महाषक्ति के रूप में उभर रहा है। यह स्वागत योग्य है परन्तु वैष्विक स्तर पर भी अब चीन के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर आ गया है। दुनिया उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही है यह देखने के लिये कि वर्तमान चीनी नेतृत्व समरसतापूर्ण समाज तथा शन्तिपूर्ण प्रगति के अपने लक्ष्यों को कार्यान्वित करेगी। इन लक्ष्यों की पूर्ति हेतु, मात्र आर्थिक प्रगति पर्याप्त नहीं। न्याय- युक्त शासन पारदर्षिता, सूचना का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता आदि में भी सुधार की अत्यन्त आवष्यकता दरकार है।

यदि देश में स्थिरता चाहिए तो चीन की अनेक राष्ट्रीयताओं को अपनी अपनी अस्मिता की सुरक्षा हेतु बराबर स्वतंत्रता होनी चाहिए।

6 मार्च 2008 को राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने कहा था, तिब्बत की स्थिरता देश की स्थिरता से जुड़ी है और तिब्बत की सुरक्षा से देश की सुरक्षा। उन्होंने यह भी कहा कि चीनी नेतृत्व को तिब्बतियों के कल्याण को सुनिशिचत बनानी होगा प्रदेशो तथा जातींय समूहों के काम को सुचारू बनाना होगा तथा सामाजिक समरसता और स्थिरता बनाए रखना होगा। राष्ट्रपति हू का वक्तव्य तथ्यों के अनुसार है और हमें इसके कार्यन्वयन की प्रतिक्षा है।

इस वर्ष चीनी जनता बड़े गर्व एवं उत्युक्ता से ओलंपिक खेलों के शुरू होने की प्रतीक्षा कर रही है। मैंने शुरू से ही इस बात का समर्थन किया है कि चीन को ओलंपिक खेल  करवाने का अवसर मिलना चाहिए। क्योंकि ऐसे अन्तराष्ट्रीय खेल आयोजन, विदेश कर ओलंपिक्स, बोलने और अभिव्यक्ति, बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सनता एवं मैत्री आदि के सिद्धान्तों को प्रतिशिठ रखते हैं, चीन को चाहिए कि वह एक अच्छे मेजबान की तरह उक्त स्वतंत्रताओं को प्रदान करे। अतः अन्तर्राष्ट्रीय समाज को चाहिए कि वह अपने खिलाड़ीयों को भेजने के साथ-2 चीनी प्रशसन को उपरोक्त बातों की याद भी दिलवाये। मुझे झात हुआ है कि अनेक संसद संदन, व्यक्ति तथा गैर-सरकारी संस्थायें विष्वभर में ऐसे पग उठा रही हैं जो इस अवसर पर चीन के लिए साकरात्मक परिवर्तन लाने को सक्षम बना सके। में उनकी प्रतिबद्धता की प्रशंसा करता हूं। मैं यह भी जोर देकर कहता हूं कि खेलें समाप्त होने के पुष्चात की अवधि को बड़े ध्यान से जांचना होगा। निःसंदेह ओलंपिक खेलें चीनी मानसिकता को प्रभावित करेंगी। अतःविशव को चाहिए कि वह अपने सामूहिक प्रयासों के द्वारा खेलें समाप्त होने के पष्चात भी चीन के भीतर सकारात्मक परिवर्तन संभव बनदायें।

मैं इस अवसर पर तिब्बत में रह रहे तिब्बती लोगों की प्रबिद्घता, साहस तथा दृढ़ निष्चय के लिए उनकी प्रशंसा करता हू और उनपर गर्व प्रकट करता हूं। मेरा उनसे अनुरोध है कि कानून के दायरें में रहते हुए शंन्तिपूर्ण ढंग से प्रयास जारी रखें ताकि तिब्बत सर्मत चीन की समस्त अल्पसख्यंक राष्ट्रीयताएं अपने उचित अधिकारों एवं हित को प्राप्त कर सकें।

मैं इस अवसर पर भारत सरकार तथा भारत के लोगों के प्रति विषेश रूप से तिब्बती शरणार्थियों के प्रति उनकी निरन्तर सहायता तथा तिब्बत की समस्या के प्रति समर्थन के लिए आभार प्रकट करना चाहूगा। मैं अनेक उन सरकारों और लोगों का भी धन्यवाद करना चाहूंगा जो लगातार तिब्बत की समस्या के प्रति सहानुभुतिपूर्ण ढंग से संबद्घ रहे हैं। समस्त सत्वों के कल्याण हेतु मैं प्रार्थी हूं।
दलाई लामा
10 मार्च 2008


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