
टोक्यो (जापान), ०४ जून २०२५। तिब्बत पर विश्व सांसदों का नौवां सम्मेलन (डब्ल्यूपीसीटी) तीन प्रमुख दस्तावेजों को सर्वसम्मति से पारित करने के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। ये तीन दस्तावेज हैं- टोक्यो घोषणा-पत्र, टोक्यो कार्य योजना और परम पावन १४वें दलाई लामा के ९०वें जन्मदिन पर उनकी विरासत का जश्न।
सम्मेलन के दूसरे दिन तिब्बत मुद्दे पर दुनिया भर की एकजुटता बनाने, चीनी सरकार के प्रभाव का मुकाबला करने और समन्वित विधायी प्रयासों को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। आठवें सत्र में फेडरेशन फॉर ए डेमोक्रेटिक चाइना के उपाध्यक्ष वांग दाई सहित प्रमुख वक्ताओं ने भाग लिया। इनमें जापान-उग्यूर एसोसिएशन के अध्यक्ष अफुमेटो रेटेपु, दक्षिणी मंगोलिया कांग्रेस के उपाध्यक्ष ओलहोनुद दाइचिन, लेडी लिबर्टी हांगकांग की सह-संस्थापक एलरिक ली और ताइवान के जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता लिन ह्सिन यी शामिल थे। आठवें सत्र का विचारणीय विषय था, ‘तिब्बत के लिए वैश्विक एकजुटता का निर्माण और चीनी प्रभाव का मुकाबला’। सत्र की अध्यक्षता तिब्बती सांसद तेनज़िन चोएज़िन ने की, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया।
तिब्बत पर विश्व सांसदों के नौवें सम्मेलन (डब्ल्यूपीसीटी) के नौवें सत्र का विषय ‘तिब्बत पर व्यावहारिक समाधान: विश्व की संसदें क्या कर सकती हैं’ था। इसकी अध्यक्षता बेल्जियम के सांसद एल्स. वान हूफ ने की। सत्र में ऑस्ट्रिया से यूरोपीय संसद के सदस्य और यूरोपियन पार्लियामेंटरी फ्रेंडशिप ग्रुप फॉर तिब्बत के उपाध्यक्ष हेनेस हीडे, जापान के प्रतिनिधि सभा के सदस्य वतनबे शू, और चिली के चैंबर ऑफ डेप्युटीज के सदस्य डिप्टी व्लादो मिरोसेविक वर्दुगो सहित कई वक्ताओं ने भाग लिया। इन वक्ताओं ने तिब्बती मुद्दे के शांतिपूर्ण और व्यावहारिक समाधान का समर्थन करने के लिए दुनिया भर की संसदों के लिए कार्रवाई योग्य रणनीतियों पर चर्चा की।
दसवें सत्र का विषय था, ‘तिब्बत समाधान अधिनियम और आगे का रास्ता (रिजॉल्व तिब्बत ऐक्ट एंड द पाथ फॉरवर्ड)’। इसकी अध्यक्षता पूर्व संसद सदस्य (न्यूजीलैंड) और चीन पर अंतर-संसदीय गठबंधन (आईपीएसी) के पूर्व सह-अध्यक्ष साइमन ओ’कॉनर ने की। इस सत्र के वक्ताओं में कनाडा के पूर्व न्याय मंत्री और अटॉर्नी जनरल आरिफ विरानी, भारतीय सांसद और तिब्बत के लिए सर्वदलीय भारतीय संसदीय मंच (एपीआईपीएफटी) के पूर्व संयोजक सुजीत कुमार और सुरक्षा समिति के अध्यक्ष और चैंबर ऑफ डेप्युटीज (चेक गणराज्य) के सदस्य पावेल ज़ाचेक शामिल थे। इस सत्र के बाद कार्य समूह चर्चा में गहन विचार-विमर्श हुआ।
इस दिन कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय नेताओं के वीडियो संदेश भी प्रसारित किए गए। इनमें स्लोवाकिया के पूर्व राष्ट्रपति आंद्रेज किस्का, सांसद व्लादिमीर लेडेकी और सांसद टॉमस वलासेक; स्विट्जरलैंड के सांसद निकोलस वाल्डर और सांसद बाल्थासार ग्लैटली; ताइवान की संसद युआन के दोनों सदस्य फैन यूं और चियू चिह-वेई; स्कॉटिश संसद के सदस्य रॉस ग्रीर; मैक्सिको के पूर्व डिप्टी साल्वाडोर कारो कैबरेरा; हंगरी के सांसद फेरेंस गेलेन्सर और ऑस्ट्रेलिया के सीनेटर डीन स्मिथ के वीडियो संदेश शामिल थे।
सम्मेलन का समापन तीन प्रमुख प्रस्तावों को औपचारिक रूप से पारित करने के साथ हुआ। प्रस्तावों को जिस मसौदा समिति ने तैयार और पेश किया था, उसके अध्यक्ष थे- पूर्वी एशियाई अध्ययन केंद्र में चीनी अध्ययन के प्रोफेसर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (नई दिल्ली) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के पूर्व डीन प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली (पीएचडी)। समिति के सदस्यों में सांसद क्रिस लॉ (ब्रिटेन), डॉ. काटालिन सेह (हंगरी), व्लादो मिरोसेविक वर्दुगो (चिली), सुजीत कुमार (भारत), शेरिंग यांगचेन (निर्वासित तिब्बती संसद), डीआईआईआर सचिव कर्मा चोयिंग और प्रतिनिधि डॉ. आर्य सावांग ग्यालपो शामिल थे।
समापन समारोह में जापानी सांसद और जैपनिज पार्लियामेंटरी सपार्ट ग्रुप फॉर तिब्बत के महसचिव यामादा हिरोशी और निर्वासित तिब्बती संसद की डिप्टी स्पीकर डोल्मा शेरिंग तेखांग द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया गया। आयोजकों और मसौदा समिति के अध्यक्ष द्वारा समापन प्रेस ब्रीफिंग के साथ सम्मेलन के आधिकारिक समापन की घोषणा की गई।
निर्वासित तिब्बती संसद द्वारा आयोजित डब्ल्यूपीसीटी तिब्बती मुद्दे के लिए अंतरराष्ट्रीय संसदीय समर्थन को मजबूत करने और समन्वय करने के अपने मिशन पर अनवरत काम कर रहा है। १९९४ में नई दिल्ली में आयोजित पहले सम्मेलन के बाद से डब्ल्यूपीसीटी के सम्मेलन विल्नियस (१९९५), वाशिंगटन डी.सी. (१९९७), एडिनबर्ग (२००५), रोम (२००९), ओटावा (२०१२), रीगा (२०१९) और वाशिंगटन डी.सी. (२०२२) में आयोजित किए गए हैं।
डब्ल्यूपीसीटी के प्राथमिक उद्देश्य तिब्बती पहचान और संस्कृति के अस्तित्व के लिए दुनिया भर की संसदों में अपनी बात को रखकर उन्हें पक्ष में करना और उन्हें भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना, तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन और धार्मिक दमन के बारे में चिंताओं को उठाना और परम पावन दलाई लामा के प्रतिनिधियों के बीच नए सिरे से संवाद को बढ़ावा देना है।
–तिब्बती संसदीय सचिवालय की रिपोर्ट