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तिब्बत में चीन का अदृश्य दमन

April 22, 2020

केट सॉन्डर्स, द डिप्लोमैट

तिब्बत के मारखम के दूरदराज गांव के एक मठ में 1 अप्रैल को सरकारी अधिकारी पहुंचे, जहां स्थानीय लोग 16 भिक्षुओं को रहने के लिए परिसर में ही छोटी इमारत का निर्माण पूरा कर रहे थे। यह स्थानीय शैली में स्थानीय लोगों के सामूहिक श्रम से हुए पारंपरिक शैली में बनाया जा रहा भवन था। जबकि क्षेत्र के कई अन्य नए धार्मिक भवनों को इसके विपरीत बाहर से श्रमिकों को लाकर कंक्रीट से बनाया गया हैं।

अधिकारियों ने भिक्षुओं को बताया कि इमारत बनाने की अनुमति नहीं है। अगले दिन 2 अप्रैल को पुलिस बुलडोजर लेकर पहुंची और उसने बन रही इमारत को जमींदोज कर दिया। जब मठ के प्रमुख ने इमारत गिराए जाने का विरोध किया तो न केवल उसे पीटा गया, बल्कि उसे और दो अन्य भिक्षुओं को जेल में डाल देने की धमकी दी गई।

तिब्बत से विध्वंस से पहले की तस्वीरें बड़े ही गोपनीय तरीके से बड़ा जोखिम मोल लेकर भेजी गईं, जिसमें स्थानीय लोगों को गाते हुए छोटे मठ 16 भिक्षुओं के रहने के लिए आवास का निर्माण कर रहे हैं, जो जंगली पहाड़ी ढलान पर अवस्थित है। तिब्बत में मठों के लिए दो लाल चीनी झंडे अनिवार्य रूप से लगाने होते हैं, जबकि तिब्बती प्रार्थना झंडा उनके पीछे हवा में लहरा रहा है। अब मठ खाली है, क्योंकि सभी भिक्षुओं को मठ से हटा दिया गया है।

खाम के तिब्बती क्षेत्र में दो विश्व प्रसिद्ध बौद्ध संस्थान- लारुंग गार और याचेन गार में जब बड़े पैमाने पर विध्वंस और निष्कासन हो रहा था तो उस समय के कुछ फुटेज में भिक्षुणियों के बस में चढ़ने, रोने, कई के तनाव में बेहोश होते देखा जा सकता है जिन्हें धार्मिक शिक्षक और मठवासी साथियों द्वारा सहारा दिया जा रहा है। हजारों चीनी और तिब्बती बौद्धों के निवास का एक प्रमुख केंद्र लारुंग गार में एक तिब्बती ने सोशल मीडिया पर लिखारू (विनाश) जले पर नमक छिड़कने जैसा दर्द की तरह लगता है। ये छोटे-छोटे धर्मस्थल थे जहाँ हमें ज्ञान और ध्यान प्राप्त हुआ। वे केवल हमारे धर्मग्रंथों और त्साम्पा के बैग (भुना हुआ जौ, पारंपरिक तिब्बती भोजन) को समायोजित कर सकते हैं। खुदाई मशीनों और भिक्षुणी विहारों को इन लोगों के द्वारा ध्वस्त करने के कारण धूल का गुबार उठ रहा है जोअ सूरज को भी ढंक दे रहा है। चमचमाती लकड़ी और प्लास्टिक की पानी की बोतलें धूल भरी पहाड़ियों के किनारे बिखरी पड़ी हैं।

तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र मार्कहम काउंटी में लारोंग घाटी में 18 ऐसे मठों के एक संकुल में से एक लैंगडी मठ के बंद होने और वहां के 20 के लगभग मठवासियों के प्रस्थान करने के बारे में कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है। कोविड-19 से पहले ही तिब्बत भर में लागू किए गए पूर्ण लॉकडाउन के कारण और बाहरी दुनिया के साथ किसी भी तरह के संपर्क को तिब्बतियों के लिए खतरे की घंटी होने के कारण उन भिक्षुओं के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि वे कहां हैं या कि उन्हें फिर से ष्पुनरू शिक्षाष् शिविर में भेज दिया गया हैं।

चमडो (जिसे चीनी में कामडो या चेंगदू के रूप में भी जाना जाता है), जहाँ मठ स्थित है, वहां अब हिरासत और ष्पुनः शिक्षाष् के लिए कुछ काउंटी स्तर के केंद्रों बन गए हैं जहाँ लारुंग गार से निष्कासित भिक्षुओं और भिक्षुणिओं को रखा गया है। यहां उन्हें कठोर यातना दी जाती हैं और बहुत ही दुष्कर परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। यह तिब्बत का वह एक हिस्सा है, जहां गंभीर किस्म का दमन किया जाता है। इस स्थान को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ष्अलगाववाद के खिलाफ संघर्षष् में ष्अंग्रिम पंक्तिष् और ष्युद्ध के लिए तैयारष् के तौर पर वर्णित किया जाता है।

जब लारुंग गार से हजारों भिक्षुओं और भिक्षुणियो का बड़े पैमाने पर निष्कासन नहीं हुआ था, तब तिब्बत के लांगडी मठ और अन्य दूरस्थ ग्रामीण मठ तिब्बती बौद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करते थे, और ये चीन की पार्टी-नीत सरकार की धमकियों के खिलाफ खड़े रहते थे।

और जैसे ही लांगडी में बुलडोजरों ने तबाही मचाई, इस बात के सबूत है कि सरकार ने कोरोना वायरस महामारी का उपयोग तिब्बतियों के निजी और भक्तिपूर्ण जीवन में अपनी घुसपैठ को और बढ़ाने के लिए किया है।

झिंझियांग (पूर्वी तुर्किस्तान) में उग्युरों पर बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित होने से पहले से ही तिब्बत को पूर्ण निगरानी में रखने, चयन के लिए एक ष्लौह ग्रिडष् प्रणाली को सक्रिय करने, नागरिकों को पार्टी की नीतियों के अनुरूप आज्ञाकारी बनाने और नस्लीय एकीकरण और सांस्कृतिक आत्मसात के लिए दमनकारी नए उपायों की जांच की प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया गया था। 2016 में झिंझियांग स्थानांतरित होने से पहले सैनिक से नेता बने तिब्बत के पार्टी प्रमुख चेन क्वुआंगो के नेतृत्व में तिब्बती समाचार स्रोतों को बंद कर दिया गया और उनकी जगह कम्युनिटी पार्टी के आउटलेट्स को यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया कि “दुश्मन सेना और दलाई समूह की कोई आवाज और तस्वीरें न तो दिखाई देनी चाहिए और सुनाई देनी चाहिए।” तिब्बती समुदायों के भीतर लामाओं और पारंपरिक नेताओं के शेष प्रभाव को खत्म करने के लिए कठिन तरीके लागू किए गए। तिब्बती लोगों के रोजमर्रा के जीवन में घुसपैठ करने के तिब्बत में अचानक लाखों पार्टी कैडरों को तैनात कर दिया गया।

कोरोना वायरस महामारी ने इन रणनीतियों को पूरी तरह से पुष्टि करने का अवसर दे दिया है। पहले तिब्बतियों के हर आवागमन पर नजर रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले फोन ऐप का इस्तेमाल कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग के लिए किया जाता है और पार्टी नीत सरकार के अलावा तिब्बती क्षेत्रों में फैले वायरस के प्रमुख केंद्र तवू (चीनीरू डूफू) के बारे में बात करते ही संचार को तुरंत काट दिया जाता है।

चीन ने वर्ष की शुरुआत में कोविड-19 पर बढ़ते संकट के अवसर को सीमावर्ती क्षेत्रों में तिब्बतियों के दमन के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए चुना। इस दौरान विशेष रूप से तिब्बती सीमावर्ती इलाकों में ष्एक करोड़ घरों में 10 लाख पुलिस कर्मी भेजनेष् के एक नए राजनीतिक अभियान की शुरुआत की गई।

जिस समय कोरोना वायरस के दुष्प्रभावों पर अपने करुणा के प्रवचन के लिए दलाई लामा की दुनिया भर में प्रशंसा हो रही थी और टाइम पत्रिका में इस प्रवचन के लिए उन्हें वैश्विक कवरेज दिया जा रहा था, उसी समय तिब्बत में सोशल मीडिया पर प्रार्थना पोस्ट करने के आरोप में लोगों को कारावास की सजा दी जा रही थी। एक नागरिक के सिर्फ यह पंक्ति पोस्ट करने के लिए कि ष्इस शुद्ध भूमि में से कोई भी सुरक्षित नहीं हैष्, आठ दिनों की नजरबंदी की सजा दी गई।

जिस तरह वुहान के नागरिकों को उनके शहर में भय और तबाही के भयंकर मंजर के समय ष्सकारात्मक ऊर्जाष् दिखाने के लिए पार्टी नेता शी जिनपिंग के प्रति आभार व्यक्त करने का आग्रह किया गया था, उसी तरह पिछले सप्ताह फिर से पढ़ने के लिए स्कूल आए तिब्बती छात्रों को देश (चीन) से प्यार करने और सीसीपी के प्रति वफादार होने का आग्रह किया गया। और जब तिब्बती क्षेत्र अमदो के न्गाबा (चीनीः अबा) में स्कूलों को फिर से खोला गया तो अधिकारियों ने कहा कि अब जल्द ही तिब्बती कक्षाओं में विशेष रूप से चीनी भाषा में पढ़ाई शुरू की जाएगी। छात्रों को मातृभाषा का उपयोग केवल तिब्बती भाषा पढ़ाई जानेवाली विशेष कक्षाओं में ही करने की अनुमति होगी। यह वही क्षेत्र है जहां 2009 में चीनी शासन के खिलाफ तिब्बतियों द्वारा आत्मदाह कर लेने की लहर शुरू हुई थी। 

तिब्बत में जहां वायरस के खिलाफ लड़ाई के दौरान लॉकडाउन और भारी-भरकम प्रचार-प्रसार तेज हो गया है। तिब्बतियों को ष्सामाजिक स्थिरता बनाए रखनेष् के नाम पर पार्टी के लिए सब कुछ बलिदान करने के लिए कहा जा रहा है, जो नीति को बलपूर्वक लागू कराने और असंतोष के पूर्ण दमन के लिए एक व्यंजना है। सरकारी मीडिया स्थानीय डॉक्टरों और नर्सों की कड़ी मेहनत के बजाय राज्य के सुरक्षा तंत्र के प्रयासों को प्रचारित कर रहा है।

बीजिंग में एक गगनचुंबी अपार्टमेंट के अपने फ्लैट से तिब्बती लेखक और ब्लॉगर टेसिंग वूसर डबल लॉकडाउन की चपेट में आ गई हैं। अपने ऊपर सामान्य तौर लगाए गए प्रतिबंधों के अलावा उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें सरकारी सुरक्षा अधिकारियों द्वारा “दलाई लामा, हांगकांग और महामारी के बारे में” बात नहीं करने की चेतावनी दी गई है। यह चेतावनी से उनके दोस्तों को भी अवगत करा दिया गया है। वह अपनी बात यह कहते हुए समाप्त करती हैं कि ष्महामारी को रोकने की तुलना में भाषण को रोकना अधिक महत्वपूर्ण है।

तिब्बतियों की दलाई लामा के प्रति भक्ति और धार्मिक पहचान के उनके शांतिपूर्ण भावों को चीन लंबे समय से एक खतरनाक वायरस के रूप में मानता रहा है। अब जबकि एक वास्तविक घातक वायरस ने राज्य को अपने चपेट में ले लिया है तो चीन को तिब्बत पर अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए एक अवसर मिल गया है और उसने इस अवसर को लपक भी लिया है। घनघोर अंधेरे और सन्नाटे में डूबे तिब्बत से लौटाव और एकजुटता की झलक कभी-कभार उभर जाती है। इसी तरह कभी दूरदराज इलाके में अवस्थित मठ के भिक्षुओं द्वारा अपने घर के विनाश के बारे में बाहरी दुनिया को बताने का साहस किया जाता है, किसी अज्ञात मठ में जलते हुए घी के दिए की तस्वीर सोशल मीडिया पर आ जाती है जो व्हिसल-ब्लोअर डॉक्टर ली वेनलियांग की याद में जल रही होती है।

पिछले हफ्ते प्रकाशित “महामारी की कविताएं” की शृंखला में वॉइसर ने अत्याचार के “वायरस” के बारे में लिखा हैरू “कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहां दुश्मन नहीं पहुंच पाएंगे/कोई महामारी ऐसी नहीं है जो भयानक नहीं है/नहीं, वह मौजूद है, इससे भी बदतर एक और महामारी।”

केट सॉन्डर्स लेखक और पत्रकार हैं। वह तिब्बत मामले पर विशेषज्ञता से लिखते रहते हैं।


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