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तिब्बत में चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति की चिंता भारत को क्यों करनी चाहिए

March 3, 2020

राजेश्वरी पिल्लई राजगोपालन

thediplomat.com

पिछले महीने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तिब्बत क्षेत्र में विशाल सैन्य अभ्यास किया था। अभ्यास के दौरान पीएलए ने चीनी सेना में शामिल किए गए कुछ नवीनतम हथियारों का प्रदर्शन किया और उन्हें इस क्षेत्र में तैनात भी किया है।

रिपोर्टों के अनुसार, तिब्बत में पिछले महीने हुए अभ्यास में चीनी सैन्य क्षमताओं के कई प्रमुख पहलुओं का नजारा देखा गया। इसमें टाइप 15 हल्के युद्धक टैंक और नए 155 मिलीमीटर का वाहन से जुड़ा हुआ हॉवित्जर शामिल हैं। ग्लोबल टाइम्स से बात करते हुए एक चीनी सैन्य विश्लेषक ने कहा कि दोनों में शक्तिशाली इंजन लगे हुए हैं, जिससे वे तिब्बत के इलाके में कुशलता से युद्ध में भाग ले सकें।‘ इसी ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पीएलए की तिब्बत मिलिट्री कमांड ने ल्हासा से पूरे क्षेत्र में हेलीकॉप्टर, बख्तरबंद वाहन, भारी तोपें और एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलें तैनात की हैं। इन्हें ल्हासा से 3,700 मीटर की ऊँचाई से लेकर रक्षा सीमा पर 4,000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर तैनात किया गया है।

ये घटनाक्रम किसी भी तरह से आश्चर्यजनक नहीं है। दरअसल, पीएलए पिछले कुछ वर्षों में प्रशिक्षण और संयुक्त अभ्यासों,  विशेष रूप से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैन्य अभ्यासों के द्वारा अपनी युद्धक क्षमता को तीक्ष्ण और प्रवीण बनाने में लगा हुआ है ताकि उसे चीन के सैन्य संचालन का पूरा अनुभव रहे और वह यह भी अंदाजा लगाता रहे कि भारत-प्रशांत क्षेत्र के दूसरे देश को कैसे जवाब दे सकता है।

विशेष रूप से तिब्बत की जहां तक बात है, पीएलए ने तिब्बत में कई अभ्यास किए हैं और इनके अभ्यासों की संख्या बढ़ रही है। करीब एक दशक पहले 2011 में पीएलए  ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) में सेना के समूह के स्तर पर दो संयुक्त अभ्यास किए थे,  जिसका उद्देश्य वास्तव में एकीकृत तरीके से एक डिवीजन जितनी सेना का इस्तेमाल करना था। इनमें आर्मर्ड  तोपखाने और पीएलए की वायुसेना को शामिल किया गया था। रिपोर्टों के अनुसार, इस अभ्यास के दौरान उच्च तीव्रता वाले विद्युत चुम्बकीय वातावरण में नेटवर्क-केंद्रित संचालन भी शामिल किए गए थे। अगस्त 2015 में तिब्बत में रात्रि-युद्ध प्रशिक्षण अभ्यास में जे-11 रेजिमेंट को भी देखा गया था।

व्यक्तिगत अभ्यासों से परे और अधिक विस्तृत रूप कहा जाए तो टीएआर में इस तरह से हवाई बुनियादी ढांचे का विकास, जिनमें नागरिक हवाई अड्डों का निर्माण हो रहा है। हालांकि इनमें से कई का उपयोग पीएलएएएफ द्वारा किया जाता है। इस तरह के सैन्य अभ्यास बड़े और अधिक परिष्कृत रूप से बढ़ते रहे हैं। यहां तक कि 2017 में डोकलाम संकट के बीच ही पीएलए ने तिब्बती पठार पर एक संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया था ताकि दुश्मन के ठिकानों पर हमले की स्थिति में फुर्ती और उसकी दक्षता का परीक्षण किया जा सके।

चीन के ये युद्धाभ्यास असल में तिब्बत में उसकी युद्ध संबंधी दक्षता को बढ़ाने के प्रयास का हिस्सा हैं। विशेष रूप से वह  पीएलए के एक अभाव को पूरा करना चाहता है- वह है हालिया युद्धक अनुभव की कमी। इन अभ्यासों में सैन्य अभियानों में सच्ची साझेदारी और एकजुटता लाने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। इन अभ्यासों के अलावा, इसे दूसरे संकेत के रूप में टीएआर में पीएलए गतिविधि में वृद्धि के तौर पर देखा जा रहा है। उदाहरण के लिए, 2013 से पीएलएएफ विमान और हेलीकॉप्टरों को गश्त बढ़ाते हुए देखा गया है। 2013 के बाद से, लद्दाख सेक्टर के सामने वाले सेक्टरों में सैनिकों को केवल हवाई मार्ग से यात्रा करने की हिदायत दी गई है न कि सड़क मार्ग से। हालांकि इसका कारण स्पष्ट नहीं किया गया है।  अप्रैल 2015 से  पीएलएएफ की गतिविधियां बढ़ रही हैं,  क्योंकि टीएआर में पीएलएएएफ के जे-11 और एसयू -27 विमान लगातार एक अंतराल पर अभ्यास में लगे हुए हैं।

विशेष रूप से भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो तिब्बत क्षेत्र  में चीन की सैन्य गतिविधियां गंभीर चिंता का विषय हैं। भले ही यह 2020 में पीएलए का पहला बड़ा अभ्यास था, लेकिन पिछले दशक में तिब्बती क्षेत्र में सैन्य प्रशिक्षण और अभ्यास के मामले में पीएलए की संलग्नता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। तथ्य यह है कि बीजिंग ने इन क्षेत्रों में सीमा पर सभी मौसम में काम करनेवाली बुनियादी ढांचे की स्थापना की है,  जिससे इस क्षेत्र में उसे सैन्य शक्ति को प्रस्तुत करने की क्षमता में वृद्धि हुई है।

इसके अतिरिक्त, पीएलए को इन शिविरों में सेना की आवधिक तैनाती के साथ सीमा क्षेत्रों के कई सैन्य शिविर स्थापित करने के लिए भी जाना जाता है। इसका अर्थ यह होगा कि पीएलए इस क्षेत्र में दूर तक फैले अधिक ऊंचाई वाली स्थितियों में भी अपेक्षाकृत रूप से अभ्यस्त हो जाएगा, जबकि भारत तरफ देखें तो चीन-भारतीय सीमा क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार अधिकांश बल असम के मैदानी हिस्सों में तैनात है।

यह अपने आप में एक चुनौती है, लेकिन नई दिल्ली के लिए इससे भी बड़ी चिंता तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में चीनी सैन्य अभ्यासों की बढ़ती संख्या होनी चाहिए। पीएलए कई परिचालन अवधारणाओं को सुचारू बनाने के लिए एकल और संयुक्त सैन्य अभ्यासों में लगा हुआ है।

तिब्बत क्षेत्र  में पीएलए के सैन्य अभ्यासों की संख्या और उसकी पेचिदगी में वृद्धि भी आने वाली चीजों का एक संकेतक हो सकती है। यह तथ्य कि चीनी सरकार द्वारा संचालित मीडिया तिब्बत में इन अभ्यासों को प्रचारित कर रहा है। संभवतः यह भारत को एक संकेत भेजने का प्रयास है और पीएलए को समग्र और बेहतर युद्ध प्रवीणता हासिल है। नई दिल्ली उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकती है।

स्पष्ट रूप से तिब्बत क्षेत्र में चीन की सैन्य गतिविधियां तेजी से बढ़ रही है और भारतीय पक्ष को और भी अधिक दबाव में लाने की संभावना है। हालांकि डोकलाम टकराव शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त हो गया,  लेकिन दोनों पक्षों की ओर से की जा रही तैयारियों से पता चलता है कि अगली बार जो होगा वह अलग ढंग का हो सकता है।


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