भाषा
བོད་ཡིག中文English
  • मुख पृष्ठ
  • समाचार
    • वर्तमान तिब्बत
    • तिब्बत समर्थक
    • लेख व विचार
    • कला-संस्कृति
    • विविधा
  • हमारे बारे में
  • तिब्बत एक तथ्य
    • तिब्बत:संक्षिप्त इतिहास
    • तिब्बतःएक अवलोकन
    • तिब्बती राष्ट्रीय ध्वज
    • तिब्बती राष्ट्र गान (हिन्दी)
    • तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र
    • तिब्बत पर चीनी कब्जा : अवलोकन
    • निर्वासन में तिब्बती समुदाय
  • केंद्रीय तिब्बती प्रशासन
    • संविधान
    • नेतृत्व
    • न्यायपालिका
    • विधायिका
    • कार्यपालिका
    • चुनाव आयोग
    • लोक सेवा आयोग
    • महालेखा परीक्षक
    • १७ केंद्रीय तिब्बती प्रशासन आधिकारिक छुट्टियां
    • CTA वर्चुअल टूर
  • विभाग
    • धर्म एवं सांस्कृति विभाग
    • गृह विभाग
    • वित्त विभाग
    • शिक्षा विभाग
    • सुरक्षा विभाग
    • सूचना एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग
    • स्वास्थ विभाग
  • महत्वपूर्ण मुद्दे
    • तिब्बत जो मुद्दे सामना कर रहा
    • चीन-तिब्बत संवाद
    • मध्य मार्ग दृष्टिकोण
  • वक्तव्य
    • परम पावन दलाई लामा द्वारा
    • कशाग द्वारा
    • निर्वासित संसद द्वारा
    • अन्य
  • मीडिया
    • तस्वीरें
    • विडियो
    • प्रकाशन
    • पत्रिका
    • न्यूज़लेटर
  • तिब्बत समर्थक समूह
    • कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज़ – इंडिया
    • भारत तिब्बत मैत्री संघ
    • भारत तिब्बत सहयोग मंच
    • हिमालयन कमेटी फॉर एक्शन ऑन तिबेट
    • युथ लिब्रेशन फ्रंट फ़ॉर तिबेट
    • हिमालय परिवार
    • नेशनल कैंपेन फॉर फ्री तिबेट सपोर्ट
    • समता सैनिक दल
    • इंडिया तिबेट फ्रेंडशिप एसोसिएशन
    • फ्रेंड्स ऑफ़ तिबेट
    • अंतरष्ट्रिया भारत तिब्बत सहयोग समिति
    • अन्य
  • संपर्क
  • सहयोग
    • अपील
    • ब्लू बुक

दलाई लामा ने बताया गुरु नानक देव सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक

June 29, 2020

गुरु नानक देव के 550वें प्रकाशोत्सव के अवसर पर चंडीगढ़ में आयोजित समारोह में तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा द्वारा गुरु नानक जी को सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बताना हमारे लिये प्रेरणादायक संदेश है। दलाई लामा ने कहा कि सिख होकर गुरु नानक ने इस्लामी तीर्थ मक्का के दर्शन किये थे। उनका जीवन ही सांप्रदायिक सद्भावना का प्रमाण था। इसी नवंबर, 2019 में हिमाचल प्रदेश स्थित धर्मशाला में तिब्बती संप्रदायों- कग्र्युद, न्यिंगमा, शाक्य, गेलुक तथा बोन- के 115 धर्मगुरुओं का सम्मेलन हुआ। उसमें भारतीय हिमालय क्षेत्र के प्रतिनिधि शामिल थे। इसमें भी दलाई लामा ने सांप्रदायिक सद्भाव के लिये भारत का उदाहरण दिया। उनके अनुसार भारत में अनेक मजहब (रिलिजन, पंथ, संप्रदाय) के उपासक हैं। अपने मजहब का पालन तथा अन्य मजहब का सम्मान उनके आचार-विचार- व्यवहार में शामिल है।
दलाई लामा के पुनर्जन्म में चीन सरकार की अकारण दखलंदाजी के विरोध में तिब्बती संप्रदायों के सामूहिक सम्मेलन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि दलाई लामा के पुनर्जन्म संबंधी निर्णय का अधिकार सिर्फ दलाई लामा के पास रहेगा। इस प्रस्ताव का हिमालयी बौद्ध प्रतिनिधियों ने भी विशेष सम्मेलन करके समर्थन किया तथा भारत सरकार से भी इसे समर्थन देने का निवेदन किया। सभी तिब्बती संप्रदायों के सामूहिक त्रिदिवसीय सम्मेलन के 29 नवंबर के समापन सत्र के मुख्य अतिथि दलाई लामा ने भी अपने अच्छे स्वास्थ्य की चर्चा की और कहा कि अपने पुनर्जन्म के बारे में निर्णय लेने की उन्हें कोई जल्दी नहीें है।
चीन सरकार ने दलाई लामा के पुनर्जन्म के मामले में भारतीय हस्तक्षेप को मना किया है जबकि दलाई लामा विश्वस्तर पर प्रामाणिकता के साथ इस ऐतिहासिक सत्य को प्रचारित कर रहे हैं कि भारत की प्राचीन नालंदा परंपरा 7वीं-8वीं शताब्दी से ही तिब्बत में है। दोनों देशों के विद्वान् परस्पर देशों में अध्ययन, अध्यापन, ग्रंथनिर्माण तथा शोध करते रहे हैं। बुद्ध भूमि होने के कारण भारत गुरु है और तिब्बत उसका चेला। इस परंपरागत संबंध में चीन कहीं नहीं है।
दलाई लामा चीन से मध्यममार्ग अपनाकर चीन की भौगोलिक एकता, अखंडता तथा संप्रभुता की रक्षा करते हुए चीनी संविधान एवं कानून के अनुरूप तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। निर्वासित तिब्बती सरकार भी यही चाहती है। इस व्यवस्था से प्रतिरक्षा तथा विदेशी संबंध चीन सरकार के ही पास रहेंगे। शेष विषयों पर कानून बनाने का अधिकार तिब्बत सरकार को प्राप्त हो जाएगा। इस समाधान से तिब्बती संस्कृति, पर्यावरण और पहचान की सुरक्षा हो जायेगी।
चीन सरकार को चाहिये कि वह दलाई लामा द्वारा घोषित उनकी चार प्रतिबद्धताओं का सम्मान करे। पहली प्रतिबद्धता है सार्वभौमिक जिम्मेदारी निभाते हुए शांति, अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों का प्रचार। उनकी दूसरी प्रतिबद्धता है सांप्रदायिक सद्भाव। उनकी तीसरी प्रतिबद्धता है तिब्बती संस्कृति की रक्षा और चौथी तथा अंतिम प्रतिबद्धता है बौद्ध दर्शन की नालंदा परंपरा का पुनः उत्थान ।
अंहिसा के पुजारी दलाई लामा अपनी चार प्रतिबद्धताओं के अनुरूप क्रियाशील हैं, जबकि चीन सरकार तिब्बत में दमनचक्र चला रही है। अभी 24 वर्षीय युवा यांतेन द्वारा चीनी दमन के विरोध में दुखद आत्मदाह इसी का प्रमाण है। दो अन्य तिब्बती युवा और छः भिक्षु तिब्बत की आजादी के लिये प्रदर्शन करते और पैम्फलेट बाँटते गिरफ्तार कर लिये गये। शांतिपूर्ण आंदोलन पर भी प्रतिबंध तिब्बत का आंतरिक सच है। तिब्बत में चीन द्वारा क्रूरतापूर्ण मानवाधिकारों का दमन कानून, लोकतंत्र तथा मानवता का अपमान है। इससे विश्वस्तर पर चीन सरकार की छवि खराब हो रही है। तिब्बत में विकास के नाम पर वहाँ के प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण को बर्बाद करने की चीन सरकार की नीति का विश्वव्यापी विरोध उचित है।
भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा अपनी तवांग यात्रा के दौरान संकटग्रस्त तिब्बत की चर्चा एवं तिब्बतियों से एकजुटता पूर्णतः सराहनीय है। मंच ने सप्रमाण कहा है कि चीन की दीवार ही चीन की सीमा है। इसके बाहर चीन का अवैध कब्जा है। इसीलिये मंच ने तिब्बत की आजादी की मांग करते हुए बताया कि परंपरागत रूप से भारत की सीमा तिब्बत से जुड़ी है, न कि चीन से । भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (प्ज्ठच्) इसका सबूत है। तिब्बत पर चीन के अवैध नियंत्रण के पूर्व हम भारतीय अपनी सुविधा एवं आवश्यकतानुसार पवित्र कैलाश-मानसरोवर यात्रा निःशुल्क किया करते थे, जबकि अब इसी यात्रा के लिए चीन सरकार प्रत्येक भारतीय से भारी राशि वसूल रही है। उस समय तिब्बती भी भारत स्थित पवित्र बौद्धस्थलों के दर्शन हेतु निर्भीकता से आते रहते थे। तिब्बत को आजादी मिलते ही भारतीय एवं तिब्बती फिर से दोनों देशों में पवित्र घार्मिक – सांस्कृतिक स्थलों की यात्रायें करने लगेंगे। तिब्बत की आजादी से भारत में शांति, समृद्धि, स्वाभिमान तथा सुरक्षा का वातावरण मजबूत होगा।
भारत-तिब्बत सहयोग मंच सहित कई तिब्बत समर्थक भारतीय संगठन तिब्बत समस्या के समाधान हेतु सुसंगठित प्रयास कर रहे हैं। केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन भी भारत सहित विश्वस्तर पर जागरुकता अभियान चला रहा है। विभिन्न देशों में अनेक तिब्बत समर्थक सगंठन तिब्बती संघर्ष को सहयोग प्रदान कर रहे हैं। विश्वजनमत तिब्बती आंदोलन के साथ है। तिब्बत का पड़ोसी तथा आध्यात्मिक गुरु भारत है, इसलिये हमारा कर्तव्य है कि इस आंदोलन का हम कुशल नेतृत्व करें।


विशेष पोस्ट

स्वर्गीय हंगकर रिनपोछे की माता का लंबी बीमारी और दुःख के बाद निधन हो गया।

13 May at 10:44 am

सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ को हार्दिक बधाई दी।

9 May at 11:40 am

परम पावन 14वें दलाई लामा ने परम पावन पोप लियो XIV को हार्दिक शुभकामनाएं दीं

9 May at 10:26 am

दलाई लामा के उत्तराधिकार में चीन के हस्तक्षेप के प्रयासों का यूरोपीय संसद के प्रस्ताव में कड़ा विरोध

8 May at 9:05 am

परम पावन दलाई लामा ने दीर्घायु प्रार्थना में भाग लिया

7 May at 9:10 am

संबंधित पोस्ट

स्वर्गीय हंगकर रिनपोछे की माता का लंबी बीमारी और दुःख के बाद निधन हो गया।

2 weeks ago

सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ को हार्दिक बधाई दी।

2 weeks ago

परम पावन 14वें दलाई लामा ने परम पावन पोप लियो XIV को हार्दिक शुभकामनाएं दीं

2 weeks ago

दलाई लामा के उत्तराधिकार में चीन के हस्तक्षेप के प्रयासों का यूरोपीय संसद के प्रस्ताव में कड़ा विरोध

2 weeks ago

परम पावन दलाई लामा ने दीर्घायु प्रार्थना में भाग लिया

2 weeks ago

हमारे बारे में

महत्वपूर्ण मुद्दे
तिब्बत जो मुद्दे सामना कर रहा
मध्य मार्ग दृष्टिकोण
चीन-तिब्बत संवाद

सहयोग
अपील
ब्लू बुक

CTA वर्चुअल टूर

तिब्बत:एक तथ्य
तिब्बत:संक्षिप्त इतिहास
तिब्बतःएक अवलोकन
तिब्बती:राष्ट्रीय ध्वज
तिब्बत राष्ट्र गान(हिन्दी)
तिब्बत:स्वायत्तशासी क्षेत्र
तिब्बत पर चीनी कब्जा:अवलोकन
निर्वासन में तिब्बती समुदाय

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन
संविधान
नेतृत्व
न्यायपालिका
विधायिका
कार्यपालिका
चुनाव आयोग
लोक सेवा आयोग
महालेखा परीक्षक
१७ केंद्रीय तिब्बती प्रशासन आधिकारिक छुट्टियां

केंद्रीय तिब्बती विभाग
धार्मीक एवं संस्कृति विभाग
गृह विभाग
वित्त विभाग
शिक्षा विभाग
सुरक्षा विभाग
सूचना एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग
स्वास्थ विभाग

संपर्क
भारत तिब्बत समन्वय केंद्र
एच-10, दूसरी मंजिल
लाजपत नगर – 3
नई दिल्ली – 110024, भारत
दूरभाष: 011 – 29830578, 29840968
ई-मेल: [email protected]

2021 India Tibet Coordination Office • Privacy Policy • Terms of Service