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निर्वासित तिब्बतियों की किताबें प्रकाशित करने के आरोप में तिब्बती भिक्षु गिरफ्तार

February 5, 2024

दो सूत्रों ने आरएफए को बताया कि कीर्ति मठ के पूर्व लाइब्रेरियन लोबसांग थाबखे को अज्ञात स्थान पर रखा गया है।
rfa.org/ पेलबार

रेडियो फ्री एशिया को पता चला है कि चीनी पुलिस ने जून २०२३ में निर्वासित तिब्बती समुदाय की पुस्तकों को पुनः प्रकाशित करने और क्षेत्र के बाहर के लोगों से संपर्क करने के आरोप में एक तिब्बती बौद्ध भिक्षु को गिरफ्तार किया था।

तिब्बत के अंदर के दो सूत्रों ने सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दक्षिण-पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत में न्गाबा काउंटी में कीर्ति मठ के लाइब्रेरियन के रूप में काम करने वाले ५४ वर्षीय लोबसांग थाबखे को गिरफ्तार करने के बाद से अज्ञात स्थान पर रखा गया है।

एक सूत्र ने आरएफए को बताया कि थाबखे को गिरफ्तारी से पहले चीनी पुलिस ने पूछताछ के लिए उन्हें कई बार बुलाया था।

एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘उनके खिलाफ जो प्राथमिक आरोप लगाया गया था वह यह था कि उन्होंने कीर्ति मठ में पुस्तकालय के प्रभारी होने के दौरान तिब्बती निर्वासित समुदाय द्वारा लिखी गई पुस्तकों को प्रकाशित और प्रसारित किया था और उन्होंने तिब्बत के बाहर के लोगों के साथ संवाद किया था।’

आरएफए ने न्गाबा पुलिस स्टेशन से संपर्क किया, लेकिन वहां के एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि थाबखे कौन हैं।

थाबखे न्गाबा के मेरुमा टाउनशिप के मूल निवासी हैं जो २००८ से कई विरोध- प्रदर्शनों और तिब्बत समर्थक राजनीतिक गतिविधियों का स्थल रहा है।

१९५९ के हुई तिब्बती जनक्रांति की सालगिरह पर २००८ में हुए विरोध- प्रदर्शन पर चीनी दमन में ४०० से अधिक तिब्बती मारे गए थे। इसके साथ ही चीनी अधिकारियों ने तिब्बत के अंदर बड़े विरोध- प्रदर्शनों को दबा दिया था। इसके बाद से तिब्बत में चीनी दमन का विरोध करने के लिए १५८  तिब्बतियों ने आत्मदाह कर लिया है।

चीनी अधिकारी तिब्बत के अंदर तिब्बतियों के लिए क्षेत्र के बाहर के लोगों से संपर्क करना और निर्वासित तिब्बती समुदाय या तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के साथ संपर्क करने को अवैध मानता है। दलाई लामा को चीन ‘अलगाववादी’ मानता है।

हालांकि, दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती सरकार ‘मध्यम मार्ग’ दृष्टिकोण की वकालत करते हैं जो चीनी संविधान के दायरे में तिब्बती लोगों के लिए वास्तविक स्वायत्तता की मांग करता है। मध्यम मार्ग दृष्टिकोण तिब्बती सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक पहचान के संरक्षण पर भी जोर देता है।


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