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परम पावन दलाई लामा जी द्वारा तिब्बत के राष्ट्रीय जनक्रान्ति दिवस की ४८ वीं वर्षगांठ पर दिया गया वक्तव्य

March 10, 2007

१९५९ में ल्हासा में हुए तिब्बती जनता के शान्ति-पूर्ण  जनक्रान्ति की ४८ वीं वर्ष-गांठ के अवसर पर मैं उन सभी तिब्बतियों के लिये प्रार्थना करता हूं तथा अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं जिन्होंने तिब्बती जनता के हित में यातनाएं सही और अपना जीवन बलिदान किया ! मैं उन लोगों के साथ भी अपनी एक-जुटता प्रकट करना चाहता हूं जो वर्तमान में यातनाएं तथा कारावास का दुख झेल रहे हैं !

२००६ के वर्ष में हमें चीनी जनवादी लोकतन्त्र में सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन नजर आए ! एक ओर हमें बदनाम करने के अभियान द्वारा तिब्बत में अतिवादी रूख को और अधिक कडा कर दिया गया तथा चिन्तनीय रूप में राजनीतिक उत्पीडन और दमन बढा !

दूसरी ओर स्वंय चीन में हमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के क्षेत्र में कुछ सुधार दृष्टिगत हुआ विशेषकर चीनी बुद्धिजीवियों में यह धारणा बलवती हो रही है कि मात्र भौतिक प्रगति ही पर्याप्त नहीं बल्कि आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित एक अर्थपूर्ण समाज का निर्माण बडा आवश्यक है ! एसी धारणा कि वर्तमान व्यवस्था द्वारा उक्त समाज का निर्माण सम्भव नहीं जोर पकड रही है ! परिणाम-स्वरूप सामान्य रूप से धर्म में विश्र्वास तथा विशेष रूप से तिब्बती बौद्ध धर्म तथा संस्कृति के प्रति रूचि बढ रही है ! इसके अतिरिक्त अनेक लोगों की इच्छा है कि मैं चीन की तीर्थ-यात्रा पर आऊं और उपदेश दूं !
राष्ट्रपति हू-जिन-ताओ का एक समरसता-पूर्ण समाज के हित में निरन्तर उद्बोधन प्रशंसनीय है ! एसे समाज के निर्माण हेतु आधार है लोगों में पारस्परिक विश्र्वास को बढ़ावा देना और एसा तभी हो सकता है जब विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हो, सच्चाई हो, न्याय हो, समता हो ! अतः यह बहुत जरूरी है कि प्रत्येक स्तर के अधिकारी न केवल इस ओर ध्यान दें बल्कि इन सिद्धान्तों को कार्यन्वित भी करें !

जहां तक चीन के साथ सम्बन्धों की बात है लगभग १९७४ के आस-पास से, यह महसूस करते हुए कि किसी न किसी समय चीन के साथ वार्तालाप अनिवार्य है, हम ने चीनी संविधान के अन्तर्गत सभी तिब्बतियों के लिये एक वास्तविक एकीकृत स्वायत्तता प्राप्त करने की तैयारी कर ली ! १९७९ में चीन के सवोच्च नेता देंग जियोपिंग ने
सुझाव दिया कि स्वतन्त्रता को छोड तिब्बत सम्बन्धी सभी अन्य समस्याएं बात-चीत द्वारा सुलझाई जा सकती है ! क्योंकि यह सुझाव हमारी सोच के अनुरूप था इसलिये हमने पारस्परिक हित की मध्यमार्गीय नीति को अपनाया ! तबसे आज तक २८ वर्ष से हमने सच्चाई तथा निरन्तरता से उक्त नीति का अनुसरण किया है, क्योंकि इसका निर्धारण पूरे विचार विमर्श और विश्लेषण के पश्चात हुआ था ! चीनियों और तिब्बतियों के दूरगामी हितों, एशिया में सह-अस्तित्व तथा पर्यावरण रक्षा हेतु तिब्बत में तथा तिब्बत से बाहर रह रहे अनेक व्यवहारिकस्तर पर तिब्बतियों और बहुत से देशों द्वारा इस नीति को अनुमोदन तथा समर्थन मिला है ! समस्त तिब्बतियों के वास्ते वास्तविक राष्ट्रीय स्वायत्तता प्राप्त करने के मेरे सुझाव का सबसे महत्वपूर्ण कारण है अतिवादिता की हैन भावना तथा स्थानीय राष्ट्रवाद को दूर कर चीनियों और तिब्बतियों में सच्ची समानता व एकता लाना ! दोनों राष्ट्रीय इकाईयों को पारस्परिक सहायता, विश्र्वास और मैत्री से देश की स्थिरता को बल मिलेगा तथा हमारी समृद्ध संसकृति तथा भाषा के रख-रखाव को भी जिस का आधार होगा समस्त मानवता के हित में आध्यात्मिक तथा भौतिक विकास के बीच सही संतुलन !

निः सन्देह चीनी संविधान में अल्पसंख्यक राष्ट्रीय इकाईयों को राष्ट्रीय प्रादेशिक स्वायत्तता देने का प्रावधान है ! समस्या यह है कि पूरी तरह इसका कार्यान्वयन नहीं होता, अतः अल्पसंख्यक इकाईयों की विशिष्ट पहचान, संस्कृति तथा भाषा के संरक्षण करने के उद्देश्य में यह प्रावधान असफल रहता है ! जमीनी असलीयत यह है कि बहुसंख्यक राष्ट्रीय इकाईयों की बडी संख्या इन अल्पसंख्यक इकाईयों में फैल गई है ! इसलिये अपने दैनिक जीवन में अल्पसंख्यक इकाईयों के बजाय अपनी पहचान, संस्कृति तथा भाषा को सुरक्षित रखने के बहुसंख्यक इकाईयों की भाषा और रीति रिवाजों पर निर्भर रहने के सिवाय कोई चारा नहीं रहता ! फलतः खतरा यह है कि धीरे-धीरे अल्पसंख्यक राष्ट्रीय इकाईयों की भाषाएं तथा समृद्ध परम्पराएं कहीं समाप्त न हो जाए!

ढांचागत विकास में कोई त्रुटि नहीं जैसे कि स्वंय रेलवे, परन्तु अत्यन्त चिन्ता का विषय यह है कि जब से रेल चालू हुई है तिब्बत में और अधिक चीनी जनसंख्या स्थानान्तरित हुई है, पर्यावरण में गिरावट आई है, जल का दुरूपयोग और प्रदुषण बढा है प्राकृतिक संसाधनों का दुर्दोहन हुआ है ! इससे सारे देश की तबाही तथा उन की भी जो लोग वहां बसते हैं बहुत बर्बादी हुई है !

यघपि अल्पसंख्यक राष्ट्रीय इकाईयों में कुछ एक सुरक्षित और योग्य व्यक्ति साम्यवादी दल के सदस्य अवश्य हुए है परन्तु खेद है कि उनमें से बहुत कम को राष्ट्रीय स्तर का कोई पद मिला तथा कईयों को तो पृथकतावादी लेबल से भी नामांकित किया गया !

बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही राष्ट्रीय इकाईयों के सही हित के वास्ते तथा स्थानीय और केन्द्रीय सरकारों के हित में सार्थक स्वायत्तता को स्थान दिया जाना उचित है ! चूंकि उपरोक्त स्वायत्तता का सम्बन्ध विशेषकर अल्पसंख्यक राष्ट्रीय इकाईयों से है इसलिये तिब्बती राष्ट्रीय इकाई के लिये एकछत्र प्रशासन की मांग बिल्कुल उपयुक्त न्याय-संगत और पारदर्शी है ! दुनिया जानती है कि हमारी कोई गुप्त कार्य-सूची नहीं है !  अतः सभी तिब्बती लोगों का यह पावन कर्तव्य बन जाता है कि वे इस न्यायसंगत मांग की पूर्ति हेतु अपना संघर्ष जारी रखें ! जितना भी समय लगे लक्ष्य पूरा होने तक हमारा साहस और निश्चय नहीं बदलेंगे ! तिब्बती जनता का संघर्ष कतिपय व्यक्तियों के पद के लिये संघर्ष नहीं है, अपितु यह एक जन-संघर्ष है ! हम निर्वासित तिब्बती प्रशासन और समुदाय को पहले ही एक सच्ची प्रजातान्त्रिक प्रणाली का रूप दे चुके हैं जिसके अन्तर्गत अनेक बार जनता के प्रतिनिधि जनता के लिये जनता द्वारा बार-बार चुने जा चुके है !

२००२ में तिब्बतियों और चीनियों के मध्य सीधी बात-चीत शुरू होने के समय से मेरे प्रतिनिधि सम्बन्धित चीनी अधिकारियों के साथ पांच दौर का विचार विमर्श कर चुके है !
इसके दौरान दोनों पक्षों ने स्पष्ट शब्दों में उन सन्देशों, शंकाओं तथा वास्तविक कठिनाईयों का जिक्र किया गया जो दोनों देशों बीच है ! इस प्रकार इन परिचर्चाओं द्वारा दोनों पक्षों के बीच एक संचार माध्यम के शुभारम्भ होने में सहायता मिली है !
तिब्बती प्रतिनिधि मंडल किसी भी समय और किसी भी स्थान पर वार्तालाप जारी रखने को तैयार बैठा है ! इसका विस्तृत ब्यौरा काशग (मंत्री मंडल) अपने वक्तव्य में प्रस्तुत करेंगी !

तिब्बत में रह रहे सभी तिब्बतियों-साम्यवादी दल के सदस्यों, नेताओं, अधिकारियों, व्यवसाईयों तथा अन्यों को मैं अपनी शुभ कामनाएं देता हूं जिन्होंने तिब्बती लोगों के वास्तविक हितार्थ काम करते हुए तिब्बती भावना को जीवित रखा ! मैं उनके अपार साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं कि उन्होंने तिब्बती लोगों की सेवा के लिये हर सम्भव प्रयत्न किया ! तिब्बत में रह रहे तिब्बती जनों की भी मै प्रशंसा करना चाहूंगा, जिन्होंने सभी मुश्किलों के बावजूद तिब्बती अस्मिता, संस्कृति तथा भाषा के संरक्षण के हित में प्रयत्न किय आहै तथा प्रशंसा उनके अडिग साहस और दृढ निश्चय की भी तिब्बत के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ! मुझे विश्र्वास है वे हमारे इस सांझे लक्ष्य की पूर्ति के लिये दुगनी लगन तथा प्रतिबद्धता से प्रयत्न करते रहेंगे ! तिब्बत में तथा तिब्बत से बाहर रह रहे सभी तिब्बती लोगों से मेरा आवाहन है कि राष्ट्रीय इकाईयों की समानता तथा समरसता के आधार पर आधारित सुरक्षित भविषय के लिये वे सब मिल कर एक जुटता से काम करें ! इस अवसर पर मैं भारत की जनता तथा भारत सरकार के प्रति हमारी सहायता में उनकी निरन्तर एवं असाधारण उदारता के लिये हार्दिक आभार प्रकट करना चाहूंगा !
मैं अन्तर्राष्ट्रीय समाज की उन समस्त सरकारों तथा लोगों का भी धन्यवाद करना चाहूंगा जिन्होंने तिब्बत के प्रश्न पर हमें सहानुभूति और समर्थन दिया है !
समस्त सत्वों की शांति तथा कल्याण हेतु प्रार्थनाओं के साथ !

दलाई लामा
१० मार्च, २००७


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