
धर्मशाला। आज ११ सितंबर को धर्मशाला स्थित मुख्य तिब्बती मंदिर- सुगलागखांग में परम पावन दलाई लामा की दीर्घायु के लिए प्रार्थना की गई। इस प्रार्थना में परम पावन के अलावा ल्होखा सांस्कृतिक एवं कल्याण संघ, नामग्याल संस्थान, इथाका और दुनिया भर से आए युवा तिब्बतियों ने हिस्सा लिया। कुल मिलाकर मंदिर और प्रांगण में अनुमानित ४००० लोग एकत्रित हुए थे।
अगले तीन दिनों तक चलने वाले तिब्बती युवा महोत्सव की शुरुआत में दुनिया भर से आए युवा तिब्बतियों को परम पावन की दीर्घायु प्रार्थना आस्था और श्रद्धा की पुष्टि करेंगे।
करने का सौभाग्य दिलाने के लिए इस समारोह का आयोजन किया गया। यह महोत्सव प्रतिबद्धता (दमत्शिक), जुड़ाव (द्रेलम) और उत्सव (गहजोम) पर केंद्रित रहेगा, जहां युवा तिब्बती परम पावन के प्रति अपनी
इस आयोजन में भाग लेने के लिए परम पावन सुबह-सुबह एक गोल्फ कार्ट में अपने निवास के द्वार पर पहुंचे, जहां विभिन्न आयोजन निकायों के सदस्यों ने उनका स्वागत किया। उनके स्वागत में द्वार के बाहर प्रांगण में गोंगकर चोडे के भिक्षुओं ने अपनी पीठ पर बंधे बड़े-बड़े ढोल बजाए। इसके बाद, तिब्बती महिलाओं के एक समूह ने अभिवादन में गीत गाए। परम पावन ने मुस्कुराते हुए जनसमूह की ओर हाथ हिलाकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।
मंदिर के द्वार पर परम पावन का अभिवादन करने के लिए सिक्योंग पेन्पा शेरिंग आगे बढ़े और नामखाई न्यिंगपो रिनपोछे ने उन्हें एक रेशमी दुपट्टा भेंट किया। इसके उपरांत परम पावन ने अपना आसन ग्रहण किया। अग्रिम पंक्ति में उनके सामने आज के समारोह की अध्यक्षता करने के लिए साक्य फुंट्सोक फोडरंग के अविकृत वज्र रिनपोछे और ल्होद्रक खारचु मठ के नामखाई न्यिंगपो रिनपोछे बैठे।
प्रार्थनाओं की शुरुआत गुरु रिनपोछे की सात पंक्तियों वाली प्रार्थना और पांच डाकिनियों के आह्वान से हुई। इसके बाद ज्ञान-धारकों का आह्वान किया गया। इस आह्वान में कहा गया है, ‘समय आ गया है, कृपया अमर जीवन की आध्यात्मिक सिद्धि प्रदान करें’। इसके बाद सोग अर्पित किया गया। लामा से उनकी दीर्घायु की प्रार्थना स्वीकार करने का अनुरोध करते हुए एक लंबा मंडला अर्पण किया गया।
मंदिर से एक जुलूस चढ़ावे लेकर चल पड़ा और परम पावन से उनके दीर्घायु होने के अनुरोध को स्वीकार करने का अनुरोध किया। नामखाई न्यिंगपो रिनपोछे ने उन्हें बुद्ध के मन, वचन और शरीर के प्रतीक अर्पित किए। चूंकि, लामा को तीन बार के बुद्धों के रूप में दर्शाया गया था। इसलिए उन्हें दीर्घायु कलश, अमरता का अमृत, दीर्घायु गोलियां, दीर्घायु से संबंधित अनुष्ठानिक केक, आठ शुभ वस्तुएं, सात राजसी प्रतीक और आठ शुभ पदार्थ अर्पित किए गए।
परम पावन की दीर्घायु के लिए जमयांग खेंसे चोकी लोद्रो द्वारा रचित प्रार्थना का पाठ किया गया और उसके बाद परम पावन के दो शिक्षकों द्वारा लिखित प्रार्थना का पाठ किया गया।
टीसीवी के छात्रों के एक समूह ने परम पावन की प्रशंसा में गीत गया, ‘परम पावन आपसे बढ़कर हमारे प्रति कोई दयालु नहीं है। तेनजिन ग्यात्सो आप सदैव जीवित रहें। आप तिब्बत लौटें ताकि तिब्बत में रहने वाले और तिब्बत के बाहर निर्वासन में रहने वाले तिब्बती एक बार फिर एकजुट हो सकें।’ ल्होका के वयस्कों के एक समूह ने भी प्रशंसा के गीत गाए। दोनों समूहों के गायन को उपस्थित लोगों ने सराहा और उनको प्रोत्साहित करते हुए गर्मजोशी से तालियां बजाईं।
इसके बाद परम पावन ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया, ‘आज यहां हम सभी बड़ी लगन और पूर्ण ईमानदारी के साथ एकत्रित हुए हैं। बचपन से ही मुझ ग्यालवा तेनजिन ग्यात्सो को दलाई लामा माना जाता रहा है। मैंने तगद्रग रिनपोछे, लिंग रिनपोछे और त्रिजांग रिनपोछे से शिक्षाएं प्राप्त कीं और मेरे डिबेट सहायकों ने मुझे दर्शनशास्त्र और तर्कशास्त्र का अध्ययन करने में मदद की। मैंने बड़े उत्साह के साथ बौद्ध दर्शन का अध्ययन किया।’
उन्होंने आगे कहा, ‘अंततः मुझे निर्वासन में आना पड़ा, लेकिन नोरबुलिंगका छोड़ने से पहले मैं छह भुजाओं वाले महाकाल की प्रतिमा के समक्ष प्रार्थना करने गया था। मुझे उन्हें छोड़कर आने का दुःख तो हुआ, लेकिन उनके स्वरूप की गहरी छाप आज भी मेरे मन में है।’
‘जब से मैं निर्वासन में आया हूं, मैंने दुनिया भर के बहुत से देशों की यात्राएं की हैं। आजकल, हम यहां उत्तर भारत के धर्मशाला में हैं और आपने अपने अद्वितीय समर्पण, साहस और श्रद्धा के साथ मेरी दीर्घायु के लिए प्रार्थना की है। आपने बड़ी ईमानदारी और समर्पण के साथ प्रार्थना की है। निर्वासन में मैंने तिब्बती प्रशासन का नेतृत्व किया है और आध्यात्मिक कार्यों में संलग्न रहा हूँ। मेरा जन्म तिब्बत के पारंपरिक प्रांत आमदो में हुआ था, लेकिन वहां से मैं मध्य तिब्बत चला गया, जहां मैंने प्रज्ञा-पारमिता, माध्यमिका दर्शन आदि का अध्ययन किया। जहां तक वसुबंधु कृत ज्ञानकोष, अभिधर्मकोश का प्रश्न है, मुझे न तो उसमें वर्णित सृष्टि रचना आदि के प्रति कोई उत्साह था और न ही उस पर अधिक विश्वास। लेकिन इनका अध्ययन करने से मुझे प्रज्ञा-पारमिता, माध्यमिका और तर्कशास्त्र के सार का आभास हुआ।’
‘अपने जीवन में मैंने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। लेकिन इनसे मेरे स्वास्थ्य पर या मेरे दृढ़ संकल्प पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। चाहे चीनी लोग कुछ भी कहें। इतना विश्वास है कि कर्म मुझे जहां ले जाएगा, वहां चला जाऊंगा। चीन में बौद्ध परंपरा में रुचि लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। मैं सभी का कल्याण करने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं। मैं एक व्यापक दृष्टिकोण रखता हूं और हमेशा चीजों को व्यापक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करता हूं, ताकि बिना किसी भेदभाव के सभी का कल्याण हो सके।
‘आज यहां भारत में दुनिया भर से आए युवा तिब्बतियों, ल्होखा सांस्कृतिक एवं कल्याण संघ और न्यूयॉर्क के इथाका में नामग्याल मठ के बौद्ध अध्ययन संस्थान द्वारा मेरी दीर्घायु के लिए प्रार्थनाएं आयोजित की गई हैं। हालांकि हम पतन के युग में रह रहे हैं और यहां कई तरह के बदलाव हो रहे हैं। साथ ही साथ, दलाई लामा का नाम दुनिया भर में व्यापक रूप से प्रशंसित हो रहा है। मेरे द्वारा किए गए कर्मों और अतीत में की गई प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप मैं प्रार्थना करता हूं कि मुझसे मिलना या मेरी शिक्षाओं को सुनना आपके मन पर गंभीर सकारात्मक छाप छोड़ेगा, ताकि जीवन-पर्यंत चेनरेजिग द्वारा आपकी देखभाल और मार्गदर्शन किया जा सके। बेशक, आपको इसके लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए।’
‘यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि लोग थोड़ी देर के लिए साथ आते हैं और फिर तुरंत बिखर जाते हैं, लेकिन आपकी आस्था और श्रद्धा अटूट है। यह जीवन-पर्यंत जारी रहेगी। आपने आज यहां प्रार्थना की है कि मैं दीर्घायु होऊं और मैंने भी प्रार्थना की है कि मैं तिब्बती लोगों, हमारी आध्यात्मिक परंपराओं और समग्र मानवता के हित में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करता रहूं।’
‘केवल बौद्ध ही मेरी बातों की प्रशंसा नहीं करते। ईसाई, वैज्ञानिक और यहां तक कि नास्तिक लोग भी मेरी प्रशंसा करते हैं। आपकी इच्छाओं के अनुसार, मैं दीर्घायु होऊंगा। मैं प्रार्थना करता हूं कि जैसे-जैसे चीन में बौद्ध धर्म का प्रसार और विकास होगा, दलाई लामा से जुड़े विभिन्न स्थानों के लोगों का विश्वास और सम्मान दृढ़, स्थिर और गहन होता जाएगा।’
‘कुछ समय पहले ही मुझे एक बड़े हॉल में बुद्ध का दर्शन हुआ था। उन्होंने मुझे इशारा किया और मुझसे बहुत प्रसन्न लग रहे थे। मुझे लगा कि मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं, जो बुद्ध और उनकी शिक्षाओं की सेवा करता रहा हूं। मैं इसे जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं।
दुनिया में ऐसे नेता हैं, जो अपनी शक्ति और अधिकार का प्रयोग हथियारों के बल पर करते हैं। हालांकि, दलाई लामा लोगों का नेतृत्व आस्था और श्रद्धा से करते हैं। बंदूकों या चाकुओं से नहीं, मैं अधिक से अधिक लोगों का कल्याण करना चाहता हूं।’
उन्होंने कहा, ‘चीन में बड़े बदलाव हो रहे हैं। अभी मैं भारत में रहता हूं, मेरा नाम दुनिया भर में सम्मान और प्रसिद्धि पा चुका है। मैं दूसरों की सेवा करने की पूरी कोशिश करता हूं और आपको भी ऐसा ही करना चाहिए।’
‘आज जब आप मेरी दीर्घायु के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, ऐसे में मुझे लगता है कि मैं कई वर्षों तक जीवित रहूंगा। मैं अपना शरीर, वाणी और मन दूसरों की सेवा के लिए समर्पित करता हूं। सुबह उठते ही, मैं प्राणी मात्र के कल्याण के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता हूं। मैं अपने भीतर बोधिचित्त के जाग्रत मन का विकास करता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि मैं इन लक्ष्यों को प्राप्त कर सकूं और मैं आपको भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं।’
समारोह का समापन गुरु रिनपोछे से प्रार्थना से हुआ। इसका सार था, ‘हम अपनी सभी इच्छाएं शीघ्र पूरी करें।’ इसके बाद परम पावन को एक धन्यवाद मंडल अर्पित किया गया। अंत में, परम पावन द्वारा ‘धर्म के उत्कर्ष हेतु प्रार्थना’ करने के बाद समारोह का समापन हुआ।
इसके बाद परम पावन मुस्कुराते हुए और जनसमूह की ओर हाथ हिलाते हुए अपने निवास पर लौट गए। लेकिन इसके बाद भी मंडली ने मंदिर प्रांगण में गायन और नृत्य के साथ उत्सव मनाना जारी रखा।



