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परमपावन 14वें दलार्इ लामा जी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित करने की 24वीं वर्षगांठ पर कशाग का बयान

December 10, 2013

10 दिसंबर, 2013

ELT200708110108023628110परमपावन दलार्इ लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित करने की 24वीं वर्षगांठ पर 60 लाख तिब्बतियों की तरफ से कशाग तिब्बत के परमपावन महान 14वें दलार्इ लामा के प्रति अपना गहरी श्रद्धा और विनम्र आदर प्रकट करता है। दुनिया भर के साथी तिब्बतियों, दोस्तों और शुभेच्छुओं को भी हार्दिक शुभकामनाएं देता है।

इसी दिन वर्ष 1989 में परमपावन दलार्इ लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, बुनियादी आजादी हासिल करने के लोगों के आंदोलन में हिंसा के इस्तेमाल के लगातार खिलाफ रहने के लिए परमपावन दलार्इ लामा को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने से तिब्बती संघर्ष की अंतरराष्ट्रीय पहचान कर्इ गुना बढ़ गर्इ। परमपावन दलार्इ लामा के वैशिवक कद ने तिब्बती जनता की छवि पर प्रत्यक्ष और सकारात्मक तरीके से असर डाला है और इससे तिब्बत आंदोलन को बुनियादी मजबूती मिली है। तिब्बत अहिंसा और न्याय का पर्याय बन गया है।

इस दिन को विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के ऐलान और उसको अपनाने की खुशी में। यह घोषणा सभी लोगों और देशों में जीने के लिए मिली आजादी को मापने का एक साझा मानक है।

दुर्भाग्य से इस घोषणा के 65 साल बाद भी तिब्बतियों के लिए खुश होने की ज्यादा वजह नहीं है क्योंकि तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति लगातार बिगड़ रही है। चीन लगातार मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के प्रावधानों का उल्लंघन करके मानवाधिकारो के सार्वभौमिकता के सिद्धांतों को बेअसर कर रहा है। तिब्बत अभी भी कब्जे में है। यह लगातार राजनीतिक दमन, आर्थिक हाशियाकरण, सामाजिक भेदभाव, पर्यावरण विनाश और सांस्कृतिक विलोपन का सामना कर रहा है। बदतर यह है कि तिब्बत में बड़े पैमाने पर चीनियों को बसाया जा रहा है जिससे तिब्बती अपनी ही मातृभूमि में दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए हैं।

ऐसे दमनकारी माहौल में रहते हुए, विरोध के किसी परंपरागत तरीके की गुंजाइश न रह जाने से, जीवन के हर क्षेत्र के तिब्बती अपने गुस्से और असंतोष को जाहिर करने के लिए ऐसे चरम उपायों का सहारा लेने को मजबूर हो रहे हैं। एक हफ्ते पहले की ही बात है, 30 वर्ष के श्री कुंछोक सेतन ने आत्मदाह कर लिया और उनकी मौत हो गर्इ। इस तरह के कदम न उठाने के हमारे बार-बार अपील करने के बावजूद वर्ष 2009 से अब तक 123 तिब्बतियों ने आत्मदाह कर लिया है। यह 123 महज एक संख्या या नामों की सूची नहीं है। वे सब हमारे आप जैसे ही मनुष्य थे और वे अपनी जीवन पूरी तरह से जीना चाहते थे, बशर्ते कि उन्हें ऐसा मौका दिया जाता। चीन मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन की बात से इनकार नहीं कर सकता जिनकी वजह से ही ये आत्मदाह हो रहे हैं।

हाल में डि्ररु, नागछू में जब तिब्बतियों ने चीन का राष्ट्रीय झंडा फहराने से इनकार कर दिया तो उन पर गोलीबारी शुरू कर दी गर्इ और 4 लोग मारे गए। कर्इ लोगों को हिरासत में ले लिया गया। उस इलाके में स्थिति अब भी तनावपूर्ण बनी हुर्इ है।

परमपावन दलार्इ लामा की ओर समाधान की तरह देखने की जगह उन्हें मुख्य दुश्मन बताया जा रहा है। तथाकथित तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (टीएआर) के
कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव छेन क्वांगुओ ने परमपावन दलार्इ लामा की आवाज को शांत कर देने की धमकी दी है और तिब्बत में उनके ही अनुयायी लोगों को उनका संदेश सुनने से रोक दिया गया है। इसी प्रकार उन्होंने अपने यहां के ही नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लिउ जियाओबो की आवाज को शांत कर दिया है और वह फिलहाल चीन की जेल में बंद हैं।  अमेरिकी विदेश मंत्रालय की मानवाधिकार रिपोर्ट, एमनेस्टी इंटरनेशनल रिपोर्ट और ह्यूमन राइटस वाच रिपोर्ट में तिब्बत के भीतर बिगड़ती मानवाधिकार की स्थिति आलोचना की गर्इ है और फटकार लगाया गया है। फ्रीडम हाउस ने अपनी फ्रीडम इन द वल्र्ड रिपोर्ट 2013 में तिब्बत को नागरिक अधिकारों और राजनीतिक आज़ादी के मामले में ‘बदतर से बदतर’ क्षेत्रों में शामिल किया है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की हाल की चीन पर सार्वभौमिक नियतकालिक समीक्षा में जापान, आस्टे्रलिया, आयरलैंड और कनाडा ने चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में अपनी चिंता जाहिर की है। अन्य देशों में न्यूजीलैंड ने चीन से आहवान किया है कि वह तिब्बत के मसले को हल करने के लिए दोतरफा वार्ता फिर से शुरू करे।

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) मध्यम मार्ग नीति पर चलने को प्रतिबद्ध है और यह बात दोहराता है कि तिब्बत मसले की दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद समाधान निकालने के लिए संवाद सबसे यथार्थपरक तरीका है। मध्यम मार्ग नीति में न तो चीन जनवादी गणतंत्र से अलग होने की बात कही गर्इ है और न ही “उच्च स्तर की स्वायत्तता की”, बल्कि इसमें एक प्रशासन के तहत सभी तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता की मांग की गर्इ है। यह राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्तता कानून और चीन जनवादी गणतंत्र के संविधान, दोनो के अनुरूप भी है।

सीटीए “ग्रेटर तिब्बत” शब्द का इस्तेमाल नहीं करता। यू-त्सांग, खम और आमदो के तीन परंपरागत प्रांत हमेशा से ही तिब्बत का अनिवार्य हिस्सा रहे हैं, जो कि समूचे तिब्बत पठार को घेरे हुए हैं। वे न केवल एक तरह के भूगोल और जलवायु को साझा करते हैं, बल्कि उनकी संस्कृति, भाषा और धर्म भी एक है। तिब्बत को चीन के विभिन्न प्रांतों में बांटकर चीन ने साफतौर पर चीनी कानून और संविधान के अनुच्छेद 4 का उल्लंघन किया है जिसमें अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं के इस अधिकार को मान्यता दी गर्इ है कि वे क्षेत्रीय स्वायत्तता का लाभ “उन इलाकों में ले सकते हैं जहां वे एक संकेंदि्रत समुदाय की तरह रहते हैं” और वे “स्वायत्तता की ताकत के इस्तेमाल के लिए स्वशासन के अंगों की स्थापना कर सकते हैं।” करीब 99 फीसदी उइगर शीक्यांग उइगर स्वायत्तशासी क्षेत्र में रहते हैं और 95 फीसदी झुआंग ग्वांगसी झुंआंग स्वायत्तशासी क्षेत्र में रहते हैं। एक संकेंदि्रत समुदाय में रहने वाले तिब्बती विभिन्न प्रांतों में विभाजित कर दिए गए हैं और उनकी 50 फीसदी से कम जनसंख्या ही तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (टीएआर) में रहती है, बहुसंख्यक हिस्से को तिब्बत स्वायत्त प्रशासनिक क्षेत्र और काउंटी के द्वारा पड़ोस के चीनी राज्यों में समाहित कर दिया गया है।

चीन के भौगोलिक क्षेत्र का करीब एक-चौथार्इ हिस्सा रखने वाला तिब्बत कोर्इ हाल का राजनीतिक सृजन नहीं है, बल्कि हजारों साल से तिब्बत पठार पर रहने वाले तिब्बतियों से तैयार एक प्राकृतिक उत्पतित है। इस तथ्य से चीन सरकार को चिंतित नहीं होना चाहिए कि तिब्बत का इलाका चीन का एक-चौथार्इ हिस्सा है, क्योंकि चीन का बीस फीसदी हिस्सा शीक्यांग उइगर स्वायत्तशासी क्षेत्र बन चुका है और करीब 12.5 फीसदी हिस्सा इनर मंगोलिया स्वायत्तशासी क्षेत्र का है। इसके अलावा, सभी तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता की व्यवस्था कोर्इ क्षेत्रीय विशिष्टता के लिए नहीं बल्कि प्रशासनिक विशिष्टता के साथ है, जिसका उद्देश्य यह है कि इन इलाकों में चीनी कानून को वास्तविक रूप में लागू किया जाए जिससे तिब्बती अपने मामलों के मालिक बन सकें।

सभी तिब्बतियों की एक तरह की परंपरा, अर्थव्यवस्था और यहां तक कि भूगोल को देखते हुए एक प्रशासनिक इकार्इ शासन की एक प्रभावी और सक्षम स्वरूप होगी, बजाय उन्हें टीएआर और चीनी लोगों की बहुलता वाले चार राज्यों (किवंघर्इ, सिचुआन, गांसू और यून्नान) में विभाजित करने के।

तिब्बती जनता के लिए वास्तविक स्वायत्तता में साफतौर से यह कहा गया है कि हमारा इरादा तिब्बती इलाकों से “सभी चीनियों” को बाहर करना नहीं है जैसा कि चीनी प्रशासन आरोप लगाता है। लेकिन तिब्बती इलाकों में तिब्बतियों को बहुसंख्यक होना चाहिए ताकि विशिष्ट तिब्बती संस्कृति का संरक्षण हो सके और उसे बढ़ावा मिल सके। इन सभी वजहों से मध्यम मार्ग नीति के संयम और व्यावहारिकता को चीनी विद्वानों, लेखकों और चीनी बौद्धों सहित बुद्धिजीवियों, सांसदों, नेताओं और आम लोगों से समर्थन और मान्यता मिली है। वर्ष 2011 से 6 से ज्यादा विभिन्न देशों ने परमपावन दलार्इ लामा के दूतों और नए चीनी नेतृत्व के बीच वार्ता फिर से शुरू करने के समर्थन में प्रस्ताव और संकल्प पारित किए हैं। अलग-अलग 16 से ज्यादा देशों के विदेश मंत्रियों, प्रवक्ताओं और सांसदों ने चीन से आग्रह किया है कि वह तिब्बत मसले को हल करे।
इस अवसर पर कशाग उक्त सभी देशों और अन्य सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहता है जिन्होंने हमारे आंदोलन का समर्थन किया है।

इस अवसर पर हम सबसे पहले, भारत सरकार और यहां की जनता को धन्यवाद देना चाहते हैं जिन्होंने वर्षों से हमारे प्रति उदारता और आतिथ्य की भावना दिखार्इ है। भारत द्वारा दिखार्इ गर्इ उदारता के प्रति हमारी गहरी कृतज्ञता सिर्फ धन्यवाद के शब्दों से पूरी तरह व्यक्त नहीं की जा सकती।

हम दुनिया भर के तिब्बत समर्थक संगठनों और व्यकितगत समर्थकों का भी धन्यवाद देना चाहते हैं जो हमारे सभी प्रयासों के लिए स्वैचिछक तरीके से और अविचलित रूप से सहयोग कर रहे हैं।

नोबेल शांति पुरस्कार ग्रहण करते समय अपने भाषण में परमपावन दलार्इ लामा ने कहा था, “यह पुरस्कार हमारे इस दृ़ढ़ विश्वास को फिर पुष्ट करता है कि सच, साहस और दृढ़ता के अपने हथियारों से हम तिब्बत में स्वाधीनता हासिल कर लेंगे।” इसके अलावा परमपावन दलार्इ लामा ने 22 सितंबर, 2013 को सभी तिब्बतियों से साफतौर से फिर अपने बारे में यह भरोसा जताया है कि वह काफी लंबा जीवन जीएंगे और वह दिन देखेंगे जब मध्यम मार्ग नीति के द्वारा तिब्बत मसले का समाधान होगा।

परमपावन दलार्इ लामा के पवित्र वचनों को पूरा करने के लिए हम सबको एक और समर्पित रहना चाहिए। तिब्बत आंदोलन और मानवाधिकारों के लिए उसके संघर्ष की विजय होगी। तिब्बती जनता की ताकत और दृढ़ता को कभी कमजोर नहीं किया जा सकता। अहिंसा और शांति न केवल हमारे लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए एक सार्वभौमिक प्रेरणा है। तिब्बती संघर्ष की सफलता अहिंसा और शांति की सफलता होगी।

इसलिए, तिब्बत के हमारे प्रिय भाइयों एवं बहनों, यधपि आपकी पीड़ा असहनीय है और खत्म होने वाली नहीं लग रही है, फिर भी जीवन मे बदलाव का होना निशिचत है। चीजें हमेशा के लिए नहीं होती। यधपि हम राजनीतिक ताकत की वजह से अलग-अलग रहने को मजबूर हैं, लेकिन हम बुनियादी आज़ादी और परमपावन दलार्इ लामा को तिब्बत में वापस लाने के साथ फिर से एक होने के लिए काम करना कभी नहीं छोड़ेंगे।

अंत में, कशाग और सभी जगह के तिब्बती यही कामना करते हैं कि परमपावन दलार्इ लामा का स्वास्थ्य अच्छा बना रहे। उनकी सभी आकांक्षाएं पूरी हों।
धन्यवाद!

कशाग
10 दिसंबर, 2013


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