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परमपावन महान 14वें दलाई लामा के 81वें जन्मदिन पर कशाग का बयान

July 6, 2016

tibet.net

6 जुलाई 2016

परमपावन महान 14वें दलाई लामा के 81वें जन्मदिन की इस खुशी के अवसर पर कशाग और तिब्बत के भीतर एवं बाहर रहने तिब्बतियों की तरफ से मैं परमपावन दलाई लामा के प्रति अपना गहरा सम्मान व्यक्त करता हूं।

वर्ष 1935 में इसी दिन कई पवित्र संकेतों और प्रतीकों के बाद तिब्बत के आमदो क्षेत्र में स्थित ताक्सेर गांव में पिता छोक्योंग त्सेरिंग और मां देक्यी त्सेरिंग के घर ल्हामो थोंडुप का जन्म हुआ था। हम इस महान माता-पिता के काफी एहसानमंद हैं कि उन्होंने ऐसे बेशकीमती पुत्र के रूप में हमारे ऊपर कृपा की। तिब्बती पठार के किनारे पर परमपावन का जन्म लेना पहले के कई महान लामाओं और कई दलाई लामाओं की तरह ही था, जिन्होंने तिब्बत में एकता का संकेत देने के लिए कुछ खास जगहों का चुनाव किया।

तिब्बत के तीन महान धर्म नरेशों ने इस भूमि का इस तरह से एकीकरण किया था, जैसा पहले कोई राजा नहीं कर पाया था। जब तिब्बत कई छोटी-छोटी राजशाही में बंट गया तो महान पांचवें दलाई लामा समूचे तिब्बत को गादेंन फोड्रांग सरकार के एक प्रशासन के तहत ले आए।
परमपावन महान 14वें दलाई लामा युवा अवस्था से ही एक मजबूत एकीकृत तिब्बत होने की दृष्टि रखते थे। पांच वर्ष की उम्र में 14वें दलाई लामा के रूप में ताजपोशी के बाद उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में तिब्बत की आध्यात्मिक और लौकिक सत्ता हासिल की, ऐसे समय में, जब चीन जनवादी गणराज्य ने तिब्बत पर अवैध तरीके से कब्जा कर लिया था।

युवा दलाई लामा ने तत्काल एक सुधार समिति का गठन किया ताकि सभी गरीब तिब्बतियों का कल्याण किया जा सके, चाहे वे किसी भी प्रांत या धर्म के क्यों न हों। इस समिति से तिब्बत की एकता को मजबूत करने में वास्तविक रूप से बहुत मदद मिली।

परमपावन जब 24 वर्ष के हो गए और चीन के साथ शांतिपूर्ण समझौते का उनका प्रस्ताव कारगर नहीं हो सका, तो उन्होंने गादेंन फोड्रांग सरकार को ही जारी रखते हुए, उसे ही तिब्बत की वैधानिक सरकार घोषित किया और उसका अस्थायी मुख्यालय ल्हुंत्सेडजाॅन्ग में बनाया गया। जब परमपावन भारत में शरण लेने के लिए आए, तो उन्होंने भारत के पर्वतीय शहर मसूरी में निर्वासित तिब्बती सरकार के कशाग का गठन किया, तिब्बतियों के बीच एकता को प्रोत्साहित करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए। मई 1960 में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को धर्मशाला स्थांतरित कर दिया गया और प्रशासनिक प्रभावशीलता के लिए परमपावन ने कालोन के विभागों की घोषणा की।

17 नवंबर, 1959 को मसूरी में और 1 जुलाई 1960 को डलहौजी में परमपावन ने लोकतंत्र के प्रति अपने दृष्टिकोण को साझा किया। उन्होंने कहा, ”उत्सांग, आमदो और खम के बीच किसी तरह के पक्षपात को बढ़ावा देना गलत और बहुत ही खतरनाक होगा। आपको आंतरिक सौहार्द बनाए रखना चाहिए और उसी तरह से मजबूती से एकजुट रहना चाहिए जैसे कि लोहे की कोई गेंद होती है।“

सभी तिब्बतियों के बीच अडिग एकता को पेश करने के लिए तीनों प्रांतों के नेता, मठों के प्रमुख और तिब्बत में गादेंन फोड्रांग सरकार के पूर्व कर्मचारी बोधगया में जुटे और उन्होंने ना-ग्येन छेनमो (महान शपथ) लिया और वचन दिया कि परमपावन दलाई लामा के नेतृत्व में वह लौह जैसी एकजुटता दिखाएंगे।

2 सितंबर 1960 को तिब्बतियों ने संसद सदस्यों का चुनाव किया और इसके बाद उसी दिन पहली संसदीय बैठक हुई, जिसकी वजह से अब हर साल इस दिन को तिब्बत लोकतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। तीन परंपरागत प्रांतों और चार धार्मिक मठों तथा बाॅन के आधार पर संसद का गठन इसलिए किया गया ताकि तिब्बती जनता की एकजुटता को संस्थागत रूप दिया जा सके। इसी भावना के तहत ही संसद के सदस्यों को चिथुे (जन प्रतिनिधि) कहा गया-ताकि वे तिब्बत का प्रतिनिधित्व करें और क्षेत्रीय एवं पंथीय झुकाव के आधार पर तिब्बती जनता की आकांक्षाओं को शून्य किया जा सके।

निर्वासन इतिहास के शुरुआती वर्षों से ही परमपावन को यह आभास हो गया था कि पंथ निरपेक्ष और मठों, दोनों तरह के समुदायों में सक्षम ऐसे नेता तैयार करने की कितनी अनिवार्यता है, जो कि तिब्बत आंदोलन को सक्षम नेतृत्व प्रदान करेंगे। इसके मुताबिक ही शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई और बिना किसी क्षेत्रीय या पंथीय संपर्कों को तरजीह दिए, तिब्बती स्कूलों की स्थापना की गई। तिब्बती बस्तियों की स्थापना की गई, जिनमें सभी प्रांतों और पंथों के लोगों को इस बात की इजाजत दी गई कि वे आम तिब्बती नागरिक की तरह और सहअस्तित्व के साथ शांतिपूर्वक रहें। मठों और भिक्षुणी मठों (ननरीज) की स्थापना की गई, ताकि भिक्षुओं और भिक्षुणियों को शिक्षित किया जा सके और वह भी सर्वश्रेष्ठ तिब्बती बनें। परमपावन ने यह सुनिश्चित करने के लिए कठोर मेहनत की कि कष्टकर समय में एकता के धागे से ही तिब्बतियों को जोड़कर रखा जा सके।

हमारा निर्वासन का इतिहास हमें यह बताता है कि पहले कुछ दशकों में क्षेत्रीय और पंथीय पक्षपात के कुछ उदाहरण देखे गए, लेकिन समय के साथ ही यह कम होता गया। नब्बे के दशक से अगले दो दशकों तक तिब्बतियों में सौहार्द और एकता का व्यापक प्रसार हुआ और ये चरम पर पहुंच गए। इसलिए वर्ष 2011 में परमपावन ने तिब्बती एकता और राजनीतिक परिपक्वता में भरोसा करते हुए अपनी राजनीतिक सत्ता का परित्याग किया और उसे चुने हुए नेतृत्व को सौंप दिया।

हालांकि, वर्ष 2016 में सिक्योंग और निर्वासित तिब्बती संसद के चुनाव के अंतिम दौर के दौरान क्षेत्रवाद का लक्षण उभरकर सामने आया। परमपावन इससे दुःखी हुए और उन्होंने 2016 के सिक्योंग के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अपने भाषण में इसे साफ करते हुए कहा, ”मैं चुनाव प्रचार के दौरान नैतिकता के क्षरण और क्षेत्रीय पक्षपात पर ज्यादा जोर देखकर दुःखी हुआ। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। तिब्बत के तीनों परंपरागत प्रांतों की एकता सबसे पहले महत्वपूर्ण है। इसलिए हमें क्षेत्रों के प्रति पक्षपात की इस तरह की छुपी भावनाओं से दूर होना चाहिए और इससे आगे बढ़ना चाहिए। आप यदि मुझे अपना मित्र मानते हैं तो कृपया जो कुछ भी मैंने कहा है उस पर गौर करें।”

परमपावन दलाई लामा की यह टिप्पणी उनके द्वारा 1959 और 1960 में की गई इसी तरह की क्षुब्ध टिप्पणियों के समान है। इस तरह अंतिम चुनाव में प्रगतिशीलता की जगह प्रतिगामी सोच देखी गई। क्षेत्रीय पक्षपात को न सिर्फ अभिव्यक्त किया गया, बल्कि उस पर अमल भी किया गया और इस तरह से अहिष्णुता का वातावरण तैयार हुआ। हालांकि अब भी हम सबके पास अपनी गलतियों को सुधारने और अपनी तकदीर को नए सिरे से तय करने का अवसर है। महात्मा गांधी ने कहा था, ”आपकी मान्यताएं ही आपका विचार बन जाती हैं, आपके विचार आपके शब्द बनते हैं, शब्द कार्य बन जाते हैं, कार्य आदत बन जाती है, आदत मूल्य बन जाते हैं और मूल्य आपकी नियति बन जाती है।” इसलिए हम हर जगह के तिब्बतियों से यह आग्रह करते हैं कि वे अपनी क्षेत्रीय और पंथीय साझेदारी को अपने विचारों, शब्दों और कार्यों से हटा लें, क्योंकि हम उन्हें अपनी नियति में बदलने का खतरा नहीं उठा सकते।

परमपावन ने हमें नए सिरे से शुरू करने का उदारता से अवसर दिया है। कैलिफोर्निया में रहने वाले तिब्बतियों की एक सभा में 19 जून, 2016 को उन्होंने कहा, ”हाल के चुनाव में थोडी बहुत धूल भरी आंधी देखी गई, लेकिन अब आकाश और धरती साफ तथा शुद्ध हैं।” हर तिब्बती को न केवल उनके इस कीमती सुझाव पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि इसे कार्यरूप में भी लाना चाहिए। अब धूल बैठ चुकी है, हमें एक क्षण को अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। दृढ़विश्वास, उद्देश्य और कार्रवाई की नई भावनाओं के साथ।

तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बती परमपावन दलाई लामा को छेनरेजिग (करुणा के बुद्ध) के साक्षात अवतार और तिब्बत के जीवन एवं आत्मा के रूप में पूजते हैं। तिब्बत में आत्मदाह की ऐसी लहर देखी गई है जिसमें तिब्बतियों ने परमपावन दलाई लामा के तिब्बत लौटने का आह्वान किया है। तीनों तिब्बती प्रांतों उत्सांग, खम और आमदो के हर इलाके के तिब्बतियों ने गिरफ्तारी और कैद के जोखिम के बावजूद परमपावन दलाई लामा का 80वां जन्मदिन भव्य से भव्य संभव तरीके से मनाया था। वे अब भी समूह में जमा होकर परमपावन के दीर्घायु होने के लिए प्रार्थना करते हैं। दूसरी तरफ, निर्वासित तिब्बती इस मामले में भाग्यशाली हैं कि उन्हें परमपावन का करीबी सानिध्य प्राप्त है। हम कम से कम इतना कर सकते हैं कि एकता के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए और अपनी विशिष्ट भाषा, धर्म एवं संस्कृति का संरक्षण कर उनकी सलाह पर अमल करें। एकता हमारे लिए आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।

हम अतिवादियों के उस समूह की कड़ी आलोचना करते हैं जो शुगदेन के नाम से चल रहे हैं और जो परमपावन के कार्यों और उपलब्धियों को कलंकित करने की संगठित कोशिश कर रहे हैं। चीन सरकार की शह पर चल रहे परमपावन के खिलाफ इन नियोजित प्रदर्शनों की हम भत्र्सना करते हैं, लेकिन हम इन मामलों का सामना करने और उन्हें चुनौती देने के लिए कठोर से कठोर संभव कदम उठाने के लिए भी दृढ़ हैं। इसी तरह हम उन कुछ लोगों के कृत्यों को भी धिक्कारते हैं जो सोशल मीडिया और अन्य नेटवर्क का इस्तेमाल कर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के नेताओं के खिलाफ निराधार और दुर्भावनापूर्ण हमले करने की गैरजिम्मेदराना कार्रवाई में लिप्त हैं। हम जनता से आग्रह करते हैं कि वह सचेत और जागरूक रहे और कुछ निहित स्वार्थी तत्वों के असामाजिक व्यवहार के झांसे में न आएं।

जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इस साल 15 जून को व्हाइट हाउस में परमपावन से मिले तो उन्होंने तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों की गंभीर स्थिति और तिब्बत पठार में पर्यावरण विनाश के निहितार्थों पर चर्चा की। राष्ट्रपति ने तनाव कम करने और मतभेदों को दूर करने के लिए पमरपावन दलाई लामा और उनके प्रतिनिधियों की चीनी प्रशासन से सार्थक और सीधे संवाद करने के प्रस्ताव को प्रोत्साहित किया। राष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन के मसले पर परमपावन के नेतृत्व का भी स्वागत किया और हिमालयी हिमनदियों तथा तिब्बत पठार के पर्यावरण को बचाने सहित ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के महत्व पर उनके द्वारा किए जा रहे जागरूकता प्रयासों के लिए अपना समर्थन देने की बात कही।

राष्ट्रपति ओबामा ने तिब्बत की विशिष्ट धर्म, संस्कृति और भाषाई परंपरा के संरक्षण और तिब्बती जनता के लिए मानवाधिकार के समान संरक्षण को अपना मजबूत समर्थन देने पर जोर दिया। राष्ट्रपति ने शांति एवं अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता के लिए परमपावन दलाई लामा की सराहना की और परमपावन दलाई लामा के ”मध्यम मार्ग“ नीति के प्रति अपना समर्थन जताया। सीटीए इसके लिए राष्ट्रपति ओबामा और अमेरिकी सरकार को गहराई से धन्यवाद देता है। हम मध्यम मार्ग नीति के प्रति मजबूती से प्रतिबद्ध हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाएंगे कि निकट भविष्य में चीन के साथ संवाद हो सके।

वैश्विक स्तर पर परमपावन दलाई लामा को शांति दूत और उम्मीद एवं सौहार्द का अग्रदूत माना जाता है। धार्मिक सौहार्द की उत्कट वकालत के लिए उन्हें टेम्पलटन पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। एक दुनिया, एक मानवता और एक पर्यावरण को साकार करने में उनके प्रयासों को देखते हुए उन्हें अमेरिकी कांग्रेस के गोल्ड मेडल से भी नवाजा गया। वैश्विक पर्यावरण के संरक्षण के प्रयासों के लिए परमपावन को यूएन अर्थ पुरस्कार दिया जा चुका है। पिछले कुछ दशकों में परमपावन ने 6 महाद्वीपों के 67 देशों की यात्रा की है और वैश्विक शांति तथा सौहार्द की वकालत करते हुए 100 से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं। परमपावन की उदारता और उनकी पथप्रदर्शक उपलब्धियों ने तिब्बत आंदोलन को मजबूत समर्थन दिया है।

इस सबसे खास अवसर पर हम इस महान देश भारत के नागरिकों और सरकार के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं कि उन्होंने तिब्बती जनता को लगातार अपना आतिथ्य और बेहिचक सहयोग दिया है। हम पूरे विश्व की सभी सरकारों, सांसदों, तिब्बत के मित्रों और आज़ादी पसंद लोगों भी इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहते हैं कि उन्होंने तिब्बत के आंदोलन का समर्थन किया है।

एक बार फिर मैं परमपावन महान 14वें दलाई लामा के प्रति इस बात के लिए अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहता हूं कि उन्होंने हमारे बीच मौजूद रहने की कृपा की है। अत्यंत सम्मान के साथ हम उनके दीर्घायु होने की प्रार्थना करते हैं कि वह एक सौ तेरह साल तक जिएं, जैसा कि उन्होंने शालीनतापूर्वक इच्छा जाहिर की है। हम उनके प्रति अपनी अटल वफादारी और समर्पण को फिर से दोहराते हैं। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। तिब्बत के अहिंसक आंदोलन की विजय हो।

कशाग
6 जुलाई, 2016

Statement in English: http://tibet.net/2016/07/kashags-statement-on-the-eighty-first-birth-anniversary-of-his-holiness-the-great-14th-dalai-lama/


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