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पाली- संस्कृत अंतरराष्ट्रीय भिक्खु आदान-प्रदान कार्यक्रम का उद्घाटन

December 27, 2022

बोधगया, बिहार, भारत।२७दिसंबर, २०२२की सुबह जब सूर्य आकाश से महाबोधि मंदिर के ऊपर धुंधला प्रकाश बिखेर रहा था, उसी समय परम पावन दलाई लामा गोल्फ कार्ट में सवार होकर गदेन फेलग्येलिंग तिब्बती विहार से वाट-पा थाई मंदिर पहुंचे।

मंदिर में भिक्षुओं ने परम पावन का गर्मजोशी से स्वागत किया और उन्हें अंदर तक लेकर गए। मंच पर अपना आसन ग्रहण करने से पहले उन्हें अन्य अतिथियों के साथ बुद्ध की एक प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा करने के लिए आमंत्रित किया गया, जिनमें श्रद्धेय डॉ वारकागोडा धम्मसिद्धि, शाक्य गोंगमा त्रिचेन रिनपोछे और गादेन ठि रिनपोछे शामिल थे।

इसके बाद पहले पाली में बौद्ध शरण प्रार्थनाओं का पाठ किया गया, फिर बाद में तिब्बती में ‘हृदय सूत्र’ का जाप हुआ।

अपने स्वागत भाषण में श्रद्धेय खेनसुर लोबसंग ग्यालत्सेन ने सबसे पहले परम पावन और प्रमुख अतिथियों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया और परम पावन और प्रमुख अतिथियों की उपस्थिति के लिए उनका आभार जताया। उन्होंने आगे बताया कि पांच वर्षीय पाली और संस्कृत अंतरराष्ट्रीय भिक्खु आदान-प्रदान कार्यक्रम का उद्घाटन आज किया जा रहा है। इसका आयोजन परम पावन की मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने, विश्व की धार्मिक परंपराओं के बीच सद्भाव को प्रोत्साहित करने, तिब्बती संस्कृति के संरक्षण को सुनिश्चित करने और प्राचीन भारतीय ज्ञान के मूल्य के बारे में जागरूकता को पुनर्जीवित करने के लिए किया जा रहा है।

इस अवसर पर उन्होंने घोषणा की कि हम सभी बुद्ध शाक्यमुनि के अनुयायी हैं और विश्व शांति स्थापित करना हमारा साझा लक्ष्य है। कार्यक्रम का उद्देश्य पाली और संस्कृत परंपराओं के अनुयायियों के बीच संबंधों को मजबूत करना है, जिससे वे एक-दूसरे के बारे में जान सकें।

वट-पा मंदिर के महंथ श्रद्धेय डॉ. फ्रा बोधिनंधामुनी ने खुशी का इजहार करते हुए कहा की कि यह तीसरा अवसर है जब परम पावन ने समुदाय को आशीर्वाद दिया था। उन्होंने कहा कि पांच साल का आदान-प्रदान कार्यक्रम आज इसी परिसर से शुरू हो रहा है।

आदान- प्रदान कार्यक्रम का औपचारिक शुभारंभ प्रमुख अतिथियों द्वारा बैनरों को लहराने और इरादे की घोषणा पर हस्ताक्षर करने के साथ हुआ।

तत्पश्चात परम पावन को सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने कहा, ‘यहां बोधगया के इस पवित्र स्थल पर एकत्रित हम सभी बुद्ध के अनुयायी हैं। हम सभी चार प्रमाणों की समझ के आधार पर उनकी शिक्षाओं को लागू करने का प्रयास करते हैं। ये चार प्रमाण हैं :

‘सभी गढ़ी गई घटनाएं क्षणिक हैं।

सभी प्रदूषित घटनाएं असंतोषजनक हैं या पीड़ादायक हैं।

सभी घटनाएं खाली और निःस्वार्थ हैं।

सच्ची शांति तो निर्वाण में है।’

‘हम सभी खुश रहना चाहते हैं, इसलिए हमें अपने बीच मित्रता और सद्भाव की तलाश करनी चाहिए। चूंकि धार्मिक साधना सद्भावना और स्नेह पैदा करने के बारे में है, इसलिए यह देखकर बहुत दुख होता है कि विभिन्न परंपराओं के लोग एक-दूसरे से झगड़ा करते हैं। जहां तक हमारा संबंध है, हमें ईमानदारी से बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए। यदि बुद्ध हमें विवाद करते हुए या एक-दूसरे की निंदा करते हुए देखें, तो मुझे लगता है कि वे हमें ऐसा न करने के लिए कह सकते हैं।’

‘हम एक ही गुरु और एक ही शिक्षा का अनुसरण करते हैं। इसलिए इसका पुख्ता तर्क है कि हमारे बीच सद्भाव होना चाहिए चाहे हम पाली परंपरा से हों या संस्कृत परंपरा से संबंधित हो।’

‘जब मैं वहाँ की दीवार पर बुद्ध की तस्वीर को देखता हूँ और उनके हाथों की स्थिति को देखता हूं, तो मुझे याद आता है कि वे यह संकेत नहीं देते कि वे हमारे सिर पर हाथ फेरेंगे, न ही वह हमें मारने के लिए मुट्ठी बांधेंगे। यह वह शिक्षा है जो उन्होंने हमें दी थी और हमें इसे अमल में लाने के लिए प्रोत्साहित किया। इसका मतलब है कि दिन-ब-दिन लगातार साधना करना। इसी तरह हम भी अंततः बुद्ध की तरह बन सकते हैं।’

‘बुद्ध ने हमें सिखाया कि जीवन का पूरा चक्र हर आवश्यक कोने से खाली है। नतीजतन, मन को पूरी तरह से शुद्ध करना संभव है। मैंने एक ईमानदार साधक बनने और अपने जीवन में बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करने का प्रयास किया है। जैसा कि ‘हृदय सूत्र’ में मंत्र इंगित करता है, बुद्ध ने जो सिखाया उसे लागू करके हम स्वयं ज्ञानोदय की ओर अग्रसर हो सकते हैं। यह एक लक्ष्य है जिसे मैं पूरा करना चाहता हूं और ऐसा करने में सफल होने के लिए मैं बुद्ध का आशीर्वाद चाहता हूं।’

‘हमारी विभिन्न परंपराओं में कुछ अंतर हो सकते हैं, पर महत्वपूर्ण बात यह है कि हम सभी एक ही गुरु के शिष्य हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम एक-दूसरे के प्रति मैत्रीपूर्ण और सम्मानपूर्ण भाव रखें।’

‘मैं हर दिन बोधिचित्त के जाग्रत मन और शून्यता की समझ विकसित करने का प्रयास करता हूं और मैं आपसे भी चित्त की एक परोपकारी अवस्था विकसित करने का प्रयास करने का आग्रह करता हूँ। मैं निम्नलिखित प्रार्थना से प्रेरित हूँ:

‘जहाँ कहीं भी बुद्ध की शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ है

और जहाँ भी यह फैला है लेकिन घट गया है

क्या मैं अति करुणा से प्रेरित होकर स्पष्ट रूप से व्याख्या सकता हूं कि

यह खजाना सभी के लिए उत्कृष्ट लाभ और खुशी के लिए है।

‘परिस्थितियां कैसी भी हों, ह्रदय को करुणामय बनाए रखना हमेशा महत्वपूर्ण होता है।’

बौद्ध थाई-भारत समाज के महासचिव श्रद्धेय डॉ रत्नेश्वर चकमा ने अंत में घोषणा की कि :

‘इस आदान-प्रदान कार्यक्रम के उद्घाटन में भाग लेने वाले सभी लोगों को धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। आज हमारे साथ जुड़ने के लिए मैं अतिथियों और विशेष रूप से परम पावन को धन्यवाद देता हूं। मैं आयोजकों और परम पावन दलाई लामा के कार्यालय को भी उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं।


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