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पैंसठवें तिब्बती लोकतंत्र दिवस पर निर्वासित तिब्बती संसद का वक्तव्य

September 2, 2025

आज ०२ सितंबर २०२५ को तिब्बती लोकतंत्र की स्थापना की ६५वीं वर्षगांठ है, जो हमारे लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह तिब्बत के सर्वोच्च धार्मिक नेता परम पावन दलाई लामा की असीम कृपा को श्रद्धा और विश्वास के साथ याद करने का भी दिन है, जिन्होंने तिब्बत और तिब्बती जनता के कल्याण के लिए हमें एक सच्ची लोकतांत्रिक व्यवस्था का अनमोल उपहार प्रदान किया।

इस अवसर पर हम तिब्बत के अंदर और तिब्बत के बाहर निर्वासन में रह रहे सभी तिब्बतियों की ओर से परम पावन के प्रति तन, मन और वचन से हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करना चाहते हैं। प्रसन्नता की बात है कि इसी समय हम सब प्रेम और स्नेह के विश्व दूत और सामान्य रूप से इस विश्व के सभी संवेदनशील प्राणियों और विशेष रूप से हिमभूमि तिब्बत के रक्षक परम पावन दलाई लामा के ९०वें जन्मदिन का उत्सव मना रहे हैं।

एक लोकतांत्रिक समाज वह होता है, जिसमें शक्ति, पद, अमीरी-गरीबी, लिंग, नस्ल, जाति, धर्म या किसी अन्य प्रकार से भेदभाव किए बिना सभी के साथ समान व्यवहार किया जाता है। इतिहास की ओर दृष्टि डालें, तो दुनिया के अनेक देशों में लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष में आम लोगों ने बड़े त्याग किए हैं। हालांकि, अपने स्वरूप में अद्भूत तिब्बती लोगों की अमूल्य लोकतांत्रिक व्यवस्था परम पावन दलाई लामा की उदार देन है। यह उनकी दूरदर्शिता और गहन करुणा की महानता को दर्शाती है।

इस संबंध में यह स्मरणीय है कि वर्ष १९४९ में साम्यवादी चीन की सेना ने तिब्बत पर सशस्त्र आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप देश में एक गंभीर और तात्कालिक राजनीतिक संकट स्थिति उत्पन्न हो गई थी। उस समय, परम पावन दलाई लामा केवल १६ वर्ष के थे। फिर भी, उन्हें तिब्बत के लौकिक और आध्यात्मिक- दोनों ही जिम्मेदारियां संभालने के लिए बाध्य होना पड़ा। यह ऐतिहासिक घटना १७ नवंबर, १९५० की है।

उसी समय परम पावन ने तिब्बत में चल रही व्यवस्था को आधुनिक बनाने के लिए सुधारात्मक कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके लिए उन्होंने १९५४ में एक सुधार कार्यालय की स्थापना की। फिर १९५६ में परम पावन ने पहली बार एक लोक शिकायत जांच विभाग की स्थापना की, जहां आम लोग समाज की प्रगति और कल्याण सुनिश्चित करने के प्रयास में अधिकारियों के गलत कार्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते थे। दुर्भाग्य से, इस अवधि में आक्रमणकारी चीनी सैन्य बलों द्वारा दमन का बढ़ता हुआ चलन भी देखा गया, जिनकी कार्रवाइयां दिन पर दिन और क्रूर होती गईं। अंततः, बिगड़ती स्थिति ने परम पावन दलाई लामा को १७ मार्च, १९५९ की रात को अपने अनुयायियों के साथ तिब्बत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। तिब्बत छोड़ने का उनका उद्देश्य पड़ोसी पवित्र भूमि भारत में राजनीतिक शरण लेकर तिब्बत में राजनीतिक और धार्मिक स्वतंत्रता की बहाली के लिए काम करना था।

निर्वासन में भारत पहुंचने के तुरंत बाद परम पावन दलाई लामा ने तिब्बत के भविष्य के लिए एक परिवर्तित शासन प्रणाली की दिशा में काम करने की महान जिम्मेदारी ली, जो आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप हो। ०३ फरवरी, १९६० को तिब्बत के तीनों पारंपरिक प्रांतों और प्रमुख संप्रदायों के प्रतिनिधियों ने बोधगया की पवित्र भूमि में उनके दीर्घायु होने की कामना की उन्हें औपचारिक श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके साथ ही उन्होंने परम पावन के नेतृत्व के प्रति अटूट और परम निष्ठा की भी शपथ भी ली।

उस समय परम पावन ने सभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘यह महत्वपूर्ण है कि तिब्बत की सरकार पहले की तरह ही राजनीतिक और धार्मिक रूप से जागरूक लोकतांत्रिक इकाई हो। इसका अर्थ है कि हमारे पास एक ऐसी संसद होनी चाहिए जिसके प्रतिनिधि तिब्बती जनता के व्यापक जनसमूह का प्रतिनिधित्व करें और उनके द्वारा बहुमत के आधार पर चुने जाएं। फिलहाल, इस संसद में चार प्रमुख धार्मिक संप्रदायों में से प्रत्येक से एक प्रतिनिधि और तीनों प्रांतों से तीन-तीन प्रतिनिधि हो सकते हैं। इसलिए, जब आप अपने-अपने स्थानों पर वापस जाएं, तो आपको उन उम्मीदवारों के नामों की सूची मुझे प्रस्तुत करनी होगी, जिन्हें वहां के विद्वान, योग्य, देशभक्त और निस्वार्थ लोगों द्वारा चुना गया हो और जो अपने निर्वाचन क्षेत्रों द्वारा विश्वास और भरोसा पाने के योग्य हों।’ परम पावन दलाई लामा की सलाह के अनुसार ही तिब्बती जन प्रतिनिधियों के पहले आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की गई। उनके नियुक्ति-पत्रों पर परम पावन ने ही हस्ताक्षर किए थे। उन सबों ने ०२ सितंबर, १९६० को पद की शपथ ली थी। इसके साथ ही तिब्बती लोकतंत्र की ऐतिहासिक स्थापना हो गई।

इसी प्रकार तिब्बती लोगों के तात्कालिक और दीर्घकालिक कल्याण के लिए परम पावन ने दूरदर्शी परामर्शों की एक शृंखला जारी की। इनमें तिब्बती संस्कृति और परंपरा के सकारात्मक तत्वों को लोकतांत्रिक शासन के मूल्यों के साथ जोड़ा गया। उनके मार्गदर्शन ने निर्वासित तिब्बती शासन की नींव रखी गई, जो स्वतंत्रता, समता, न्याय और शांति के सिद्धांतों पर आधारित एक राजनीतिक व्यवस्था है। ये वे सिद्धांत हैं, जो तिब्बती लोकतंत्र की उत्कृष्टता को परिभाषित करते हैं।

इसके बाद १९६१ में परम पावन ने तिब्बत के भावी लोकतांत्रिक संविधान का मसौदा जारी किया। इसके बाद १९६३ में तिब्बत के संविधान की घोषणा की गई। १९९१ में परम पावन ने थेटन पीपुल्स डेप्युटीज की सभा को निर्वासन में पूर्ण शक्ति संपन्न विधायी निकाय में परिवर्तित करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया।

२८ जून १९९१ को परम पावन ने निर्वासित तिब्बतियों के चार्टर को स्वीकृति दी, जिसे ११वीं निर्वासित तिब्बती संसद द्वारा अपनाया गया था। इसके माध्यम से परम पावन ने सुनिश्चित किया कि निर्वासित तिब्बती सरकार एक ऐसी सरकार बने जो एक बुनियादी कानून के तहत और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुसार कार्य करे। इस चार्टर से निश्चित हो गया कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन निर्वासित तिब्बती संसद द्वारा पारित कानूनों, नियमों और विनियमों के आधार पर कार्य करेगा और प्रभावी रूप से कानून के शासन द्वारा शासित एक लोकतांत्रिक व्यवस्था बनेगा।

इन सुधारात्मक कार्यक्रमों के पूर्ण होने के बाद २००१ से परम पावन दलाई लामा की परिकल्पना के अनुरूप उनके निर्देश पर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के कार्यकारी प्रमुख- कालोन ट्रिपा- का तिब्बती जनता द्वारा सीधे चुनाव किया जाने लगा। यह एक प्रमुख लोकतांत्रिक मील का पत्थर था। फिर २०११ में परम पावन ने एक और भी ऐतिहासिक निर्णय लिया। उन्होंने गादेन फोडरंग संस्था की लगभग ४०० साल से पुरानी लौकिक सत्ता की परंपरा को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया और इस प्रकार सारी राजनीतिक शक्ति तिब्बती जनता द्वारा सीधे चुने गए नेताओं के हाथ में चली आई।

इन परिवर्तनकारी कदमों के माध्यम से परम पावन ने एक लोकतांत्रिक प्रशासन और संसद की स्थापना सुनिश्चित की, जो तिब्बत के भीतर रहने वाले और निर्वासन में रहने वाले तिब्बती लोगों का पूर्ण प्रतिनिधित्व करती है। यह ऐसी संस्था है, जो शासन की पूरी जिम्मेदारी उठाने में सक्षम है। इस तरह हमारी शासन प्रणाली अब पूरी तरह से एक लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर कार्य करती है और यह लोकतांत्रिक आधार तिब्बत के न्यायोचित हित के लिए हमारे निरंतर संघर्ष का समर्थन और पोषण करता है। यह हमारे लिए वास्तव में गर्व और गहन महत्व का विषय है।

परम पावन दलाई लामा ने तिब्बती लोगों को न केवल निरंतर फल-फूल रही एक लोकतांत्रिक व्यवस्था दी है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि हमारी तिब्बती राष्ट्रीय और नस्लीय पहचान को परिभाषित करने वाली धार्मिक विरासत, संस्कृति, भाषा आदि जीवंत बनी रहें।

चीनी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार दबाव और झूठे प्रचार के बावजूद कई सरकार, संसद और संगठन तिब्बत और तिब्बती लोगों को अपना समर्थन और सहायता प्रदान करते रहे हैं। यह स्थायी एकजुटता परम पावन दलाई लामा के नेक प्रयासों और करुणा का ही प्रतिफल है।

हम परम पावन दलाई लामा और भारत की पवित्र भूमि के धर्मशाला में स्थित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की पूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। हममें यह आशा प्रबल है कि तिब्बत और तिब्बती लोग निरंतर रुचि और समर्थन प्राप्त करते रहेंगे और तिब्बत और निर्वासित तिब्बती लोग अंततः फिर से एकजुट हो सकेंगे। इसका कारण है कि तिब्बत की स्थिति निरंतर वैश्विक चिंता का विषय बनी हुई है।

चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तिब्बती लोगों की धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी आदि पहचान को मिटाने की अपनी कुटिल नीति को लागू करना कभी नहीं छोड़ा। असल में, वह इन उद्देश्यों के लिए और भी क्रूर और बदतर नीतियों को लागू करती रही है। दूसरी ओर पिछले कई दशकों से परम पावन दलाई लामा बातचीत के माध्यम से चीन-तिब्बत संघर्ष के समाधान के लिए सुझाव देते रहे हैं। हालांकि, ये सुझाव न केवल चीनी नेताओं को अरुचिकर लगे, बल्कि चीन सरकार ने आज तक अपने अधिनायकवादी शासन के तहत तिब्बती लोगों और अन्य नस्लीय अल्पसंख्यकों के आंदोलन और व्यवहार के सभी पहलुओं को नियमित रूप से परेशान करने और उन पर कड़ा नियंत्रण रखने की अपनी अत्यधिक दमनकारी नीति को नहीं रोका है। फिर भी तिब्बत में तिब्बती लोग अपनी नस्लीय पहचान और निष्ठा को लेकर अडिग रहे हैं। यह निर्वासन में रह रहे तिब्बती लोगों के साहस और दृढ़ संकल्प को और शक्ति प्रदान करता रहा है।

२०२६ में अगले सिक्योंग और निर्वासित तिब्बती संसद के लिए आम चुनाव होने वाले हैं। इसकी तैयारी के लिए तिब्बती चुनाव आयोग समय पर प्रारंभिक और अंतिम चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा करेगा। इन चुनावों में भाग लेने वाले सभी निर्वासित तिब्बती लोगों को पूरी प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए और पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।

एक प्रमुख चिंता यह है कि चीनी सरकार अक्सर हमारे निर्वासित समुदाय में अशांति फैलाने और कलह कराने की कोशिश करती है। इसलिए आवश्यक है कि तिब्बती सतर्क रहें और ऐसी नापाक साजिशों का अनजाने में शिकार बनने से बचें। इसी प्रकार, हमें कुछ विचारहीन व्यक्तियों की विभाजनकारी बयानबाजी को भी अस्वीकार करना चाहिए जो प्रांतीयवाद और संप्रदायवाद को बढ़ावा देते हैं और इंटरनेट तथा अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाते हैं।

सभी तिब्बतियों को हमारी सलाह है कि सभी को विवेक से कार्य करना चाहिए, अपने विवेक पर भरोसा करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नैतिकता और अच्छे आचरण के हमारे पारंपरिक तिब्बती मूल्यों का पालन करना चाहिए। हम समुदाय के सभी सदस्यों से जिम्मेदारी से कार्य करने और हमारे चुनाव नियमों का कड़ाई से पालन करने की अपील करते हैं। आगामी चुनावों में अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए ईमानदारी से आचरण करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

१७वीं निर्वासित तिब्बती संसद के कार्यों के संबंध में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी सदस्यों ने एकजुटता के साथ कार्य किया, जिससे निर्वासित तिब्बतियों के चार्टर के साथ-साथ अन्य प्रासंगिक कानूनों में समय पर संशोधन संभव हो सके। परिणामस्वरूप, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का सामान्य कामकाज जारी रहा, जिसमें तिब्बती लोकतंत्र के तीनों स्तंभों और विभिन्न स्वायत्त निकायों के संचालन की पूर्ण बहाली भी शामिल है। इसके अलावा, कई मुद्दों पर कानूनी और नियामक प्रावधानों को और अधिक स्पष्ट बनाया जा सका।

इसी प्रकार, तिब्बत को लेकर आठवें और नौवें विश्व सांसदों के सम्मेलन क्रमश: २०२२ में वाशिंगटन डी.सी. और इस वर्ष जून में टोक्यो में सफलतापूर्वक आयोजित किए गए। इसके अतिरिक्त, निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्यों को समान आकार के समूहों में विभाजित किया गया और तिब्बती मुद्दे के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने हेतु विभिन्न देशों में अपना पक्ष रखने के लिए भेजा गया।

इन तरह की पहलों और कार्यक्रमों के माध्यम से निर्वासित तिब्बती संसद वैश्विक स्तर पर तिब्बत के लिए जागरुकता फैलाने और सार्थक समर्थन जुटाने में सफल रही है। भारत में भी इसी तरह के प्रयास किए गए, जिनमें संसद, विधानसभाओं और अन्य प्रभावशाली हस्तियों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। इन प्रयासों के परिणाम समान रूप से प्रभावशाली और सराहनीय रहे हैं।

परम पावन दलाई लामा के ९०वें जन्मदिन और तिब्बती लोकतंत्र दिवस के अवसर पर इस वर्ष आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों के तहत आज निर्वासित तिब्बती संसद तिब्बती लोकतंत्र के विकास में परम पावन के प्रमुख योगदान को प्रदर्शित करने वाली एक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन कर रही है।

यह प्रदर्शनी धर्मशाला स्थित मुख्य तिब्बती मंदिर थेकचन चोलिंग सुग्लाखांग के प्रांगण में आयोजित की जा रही है, जो आज से तीन दिनों तक प्रदर्शित रहेगी। हम सभी को इस महत्वपूर्ण विरासत को देखने और उस पर विचार करने के लिए हार्दिक रूप से आमंत्रित करते हैं।

 

इस विशेष अवसर पर हम भारत सरकार और भारत की जनता, हमारे मेजबानों और अमेरिका, यूरोप, जापान समेत दुनिया भर में तिब्बती आंदोलन के सभी समर्थकों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने हमारे न्यायपूर्ण संघर्ष को निरंतर और अटूट समर्थन दिया है।

अंत में, हम प्रार्थना करते हैं कि तीनों लोकों के सभी प्राणियों और विशेष रूप से तिब्बत के हिम प्रदेश के हम लोगों के रक्षक-देवता परम पावन दलाई लामा युगों-युगों तक जीवित रहें और उनकी सभी इच्छाएं बिना किसी बाधा के स्वतः पूर्ण हों। तिब्बत आंदोलन का फल शीघ्र ही प्रकट हो।

– निर्वासित तिब्बती संसद
०२ सितंबर, २०२५

 

यह निर्वासित तिब्बती संसद के मूल तिब्बती वक्तव्य का हिन्दी अनुवाद है। किसी भी प्रकार का अंतर आने की स्थिति में मूल तिब्बती संस्करण को ही आधिकारिक तौर पर अंतिम माना जाएगा।

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