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बीटीएसएस की तीन दिवसीय राष्ट्रीय बैठक (तिब्बत की रक्षा अगर मौके पर भारत करता तो सन 62 न होता: प्रो सोलंकी)

November 27, 2021

बीटीएसएस की तीन दिवसीय राष्ट्रीय बैठक का पहला दिन संपन्न : २७ से २८ नवंबर २०२१
– तिब्बत की स्वतंत्रता हेतु चीन के विरोध में बना सबसे आक्रामक संगठन
– संगठन के पुरे देश में हुए व्यापक विस्तार को सराहा गया
– आगामी दो दिनों में लाये जायेंगे कई महत्वपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रस्ताव

4 दिसम्बर। पूर्व राज्यपाल व भारत तिब्बत समन्वय संघ के केंद्रीय संरक्षक प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा है कि जिस प्रकार पाकिस्तान के अत्याचार से भारत ने मुक्त करा के बांग्लादेश बनवाया था, वैसे ही भारत को 1959 में चीन के हमले से तिब्बत की रक्षा करनी चाहिए थी। तो कम से कम आज भी तिब्बत आजाद रहता और चीन 1962 में भारत पर हमला न कर पाता। हालांकि अब गलती नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के सांस्कृतिक व धार्मिक संबन्ध हजारों वर्ष पुराने हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण दुनिया को तिब्बत जैसी महान सभ्यता और संस्कृति के अस्तित्व से वंचित रहना पड़ रहा है। तिब्बत की स्वतंत्रता भारत की सामरिक व आंतरिक सुरक्षा दृष्टि से आवश्यक है।
भारत तिब्बत समन्वय संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक का पहला दिन आज सम्पन्न हुआ। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म माध्यम से आयोजित की जा रही बैठक में दुनिया भर से सैकड़ों प्रतिनिधि उपस्थित रहे । संघ को शुभकामनाएं देते हुए तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति पेंपा त्सेरिंग ने कहा कि परम पावन दलाई लामा के करुणा और शांति के माध्यम से चल रहे हमारे प्रयासों को सफलता में भारत के ऐसे ही संगठनों का साथ चाहिए। उन्होंने बीटीएसएस की प्रथम राष्ट्रीय कार्यकारिणी के आयोजन को बधाई देते हुए कहा कि केवल 10 माह में इतना विशाल संगठन खड़ा कर लेने पर केंद्रीय तिब्बत प्रशासन आपका अभिनन्दन करता है।

कार्यक्रम की शुरुआत संघ के गीत, सरस्वती वंदना और परम् पावन दलाई लामा की तिब्बती प्रार्थना से हुआ। उसके बाद संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रोफेसर प्रयाग दत्त जुयाल ने स्वागत उद्बोधन दिया और बताया कि पिछले एक वर्ष में संघ का देश सभी हिस्सों में व्यापक विस्तार हुआ है।

उसके उपरांत संघ के केंद्रीय संयोजक श्री हेमेंद्र प्रताप सिंह तोमर ने पिछले एक वर्ष में संघ की गतिविधियों के बारे में बताया और यह संकल्प दोहराया कि तिब्बत के स्वतंत्र होने तक और कैलाश मानसरोवर की मुक्ति के लिए संघ द्वारा चीन का प्रखर और मुखर विरोध अनवरत जारी रहेगा। संघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री नरेंद्र पाल सिंह भदौरिया ने चीन के खतरें के समक्ष देशवासियों को जागरूक और तैयार करने तथा भारत और तिब्बत के बीच परस्पर सहयोग व समन्वय को बढ़ाने में हरसम्भव कदम उठाने पर जोर दिया।
आज के प्रथम सत्र में भारत तिब्बत समन्वय संघ द्वारा प्रकाशित शिवबोधि स्मारिका का भी विमोचन किया गया।
बैठक के अंत में राष्ट्रीय महामंत्री विजय मान ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा। बैठक संचालन दिल्ली प्रान्त की सुमित्रा सिंह ने किया। देश विदेश से बैठक में पधारे सैकड़ों प्रतिनिधियों ने बीटीएसएस के इस आयोजन पर बधाई दी।

प्रथम प्रस्ताव
प्रस्ताव क्रमांक 1

अपने भारत की संसद ने अब तक के सबसे महत्वपूर्ण प्रस्तावों से एक प्रस्ताव 14 नवंबर, 1962 पारित किया था । साम्राज्यवादी चीन ने तिब्बत को निगलने के बाद 1962 में भारत पर हमला कर कई हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा जमा लिया । भारतीय संसद ने 14 नवंबर 1962 को सर्वसम्मति से संकल्प प्रस्ताव पारित कर कहा था कि भारत की संसद प्रतिज्ञा करती है कि जब तक चीन से एक – एक इंच जमीन वापस नहीं ले लेते तब तक चैन से नहीं बैठेंगे ।

इस संकल्प को प्रस्ताव कराने के पीछे का उद्देश्य चीन के कब्जे में मातृभूमि के उस हिस्से को पुनः प्राप्त करना तथा चीन ने भारत के साथ किस तरह विश्वासघात किया था उसे आने वाली पीढी व शासकों को यह याद दिलाना था ।
चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के कुछ दिन बाद ही १४ नवंबर १९६२ के दिन भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से इस संकल्प प्रस्ताव को पारित किया था । यह संकल्प हर नागरिक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
संसद द्वारा पारित इस प्रस्ताव के अनुसार

*“इस संसद को इस बात का गहरा दुख है कि चीन की जनवादी सरकार ने भारत के सदाशयतापूर्ण मैत्री व्यवहारों की उपेक्षा करके दोनों देशों के बीच पारस्परिक स्वाधीनता, तटस्थता और एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत एवं सह अस्तित्व की भावना के समझौते को न मान कर पंचशील के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है । इसके बाद चीन ने अपनी विशाल सेना लेकर पूरी तैयारी के साथ भारत पर आक्रमण किया। यह संसद हमारी सेनाओं के जवानों और अधिकारियों के शौर्यपूर्ण मुकाबले की सराहना करती है जिन्होंने हमारी सीमाओं की रक्षा की है । सीमा सुरक्षा में अपने प्राणों की बलि देने वाले वीरगति प्राप्त शहीदों को हम श्रद्धांजलि देते हैं और मातृभूमि की रक्षा के लिए दी गई कुर्बानी के लिए नतमस्तक होते हैं । यह संसद भारतीय जनता के सक्रिय सहयोग की प्रशंसा करती है, जिसने भारत पर चीनी आक्रमण से उत्पन्न संकट तथा आपात स्थिति में भी बडे धैर्य के साथ काम लिया । संसद हर वर्ग के लोगों के उत्साह और सहयोग की प्रशंसा करती है. जिन्होंने आपातकालीन स्थितियों का डट कर मुकाबला किया । भारत की स्वाधीनता की रक्षा के लिए लोगों में एक बार फिर स्वतंत्रता, एकता और त्याग की ज्वाला फूटी है । विदेशी आक्रमण के प्रतिरोध में हमारे संघर्ष के क्षणों में जिन अनेक मित्र राष्ट्रों की सहायता हमें प्राप्त हुई है, उनकी इन नैतिक एवं सहानुभूतिपूर्ण संवेदनाओं के प्रति यह संसद अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती है।
संसद आशा और विश्वास के साथ प्रतिज्ञा करती है कि भारत की पवित्र् भूमि से हम आक्रमणकारियों को खदेडकर ही दम लेंगें । इस कार्य में हमें चाहे कितना समय क्यों न लगाना पडे या इसका कितना भी मूल्य चुकाना पडे, हम चुकाने के लिए तैयार हैं।“*

भारतीय संसद द्वारा इस संकल्प प्रस्ताव को पारित हुए 60 साल बीत चुके हैं । लेकिन अब लगता है कि भारत की संसद अब उस प्रस्ताव को भूल चुकी है। इतने सालों में भी भारत ने चीनी ड्रैगन से अपनी भूमि छुडाने का कोई सार्थक प्रयास नहीं किया है । बल्कि चीन अब पहले से भी ज्यादा आक्रामक रुख अपनाए हुए कुत्सित चेष्टा में है। चीन की सरकार ने अभी 23 अक्टूबर, 2021 को एक भूमि कानून बना कर अपने अवैध कब्जों के द्वारा हथियाई भूमि को अब अपने देश का हिस्सा बता रहा है।
इस क्रम में, मैं चंपालाल रामावत वर्तमान में भारत तिब्बत समन्वय संघ के जयपुर प्रांत का मुख्य प्रांत सह संयोजक, आज राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक में यह प्रस्ताव लाता हूँ,
कि भारत की वर्तमान शक्तिशाली सरकार दिनांक 14 नवंबर 1962 को लिए गए अपने संसद संकल्प को पूरा करे और चीन से अपनी भूमि वापस लेने का कार्य शुरू करे। यह कार्य न प्रारम्भ होने पर भारत तिब्बत समन्वय संघ अगले वर्ष 14 नवंबर, 2022 को संसद-स्मृतिलोप दिवस मनाएगा।”

प्रस्ताव क्रमांक 2

देश उन महापुरुषों का सम्मान करने में अग्रणी है जिन्होंने इस राष्ट्र की रक्षा, मानवता की प्रगति व साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान किया हो। वर्ष 2011 से “मानव प्रयास के किसी भी क्षेत्र में किए गए योगदान” को शामिल किए जाने के बाद भारत रत्न जैसा पुरस्कार आज एक नए क्षितिज के साथ समक्ष है।
इस क्रम में, भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक व राष्ट्रीय सुदृढ़ता की योजना और क्रियान्वयन के लिए राष्ट्र की अंतर-चेतना को जगाने का अतुलनीय भागीरथ योगदान करने वाले प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक रहे और इस भारत तिब्बत समन्वय संघ के आद्य प्रणेता हैं। उनको एवं विश्व शांति, धैर्य व करुणा के प्रतिमान परम पावन दलाई लामा जी को भी आज मैं राजो मालवीय, राष्ट्रीय महामन्त्री, महिला विभाग, भारत-तिब्बत समन्वय संघ यहां राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति बैठक में प्रस्ताव करती हूं कि हमारे दोनों आद्य प्रणेताओं यानी परम पूज्य रज्जू भैया जी व परम पावन दलाई लामा जी को भारत रत्न प्रदान किया जाए।

प्रस्ताव क्रमांक 3

भारत तिब्बत समन्वय संघ के मेरठ प्रान्त की प्रान्त कार्यकारिणी की “तिब्बत और भारत” को लेकर आयोजित बैठक में सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और रणनीतिक विषयों पर गहन विचार किया गया। विचार विमर्श के उपरांत तिब्बत को चीन के चंगुल से मुक्त कराने के संकल्प के साथ यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि

(१) तिब्बती परिक्षेत्र की प्राकृतिक संपदा और जल संसाधन के संरक्षण व मानव कल्याण के लिए इस क्षेत्र को ” विश्व प्राकृतिक संपदा संरक्षित क्षेत्र ” घोषित किया जाए।

(२) वस्तुतः दुनिया में जलवायु और पर्यावरण को लेकर बड़ी चिंता हो रही है लेकिन इन सबके बीच तिब्बत के महत्व पर दुनिया भर के पर्यावरणविद या तो केवल सतही चिंता कर रहे हैं या फिर उसकी उपेक्षा कर रहे हैं। अतिवादी चीन द्वारा तिब्बत को कब्जा करने के बाद भी चीन के विरुद्ध जिस प्रकार से वैश्विक विरोध होना चाहिए था, वह नहीं हुआ और निरंतर उसका तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों का भीषण दोहन करने के बाद वह उसे स्थाई तौर पर जो नष्ट कर रहा है, उसके बाद पूरी मानवता पर संकट आ खड़ा होने वाला है क्योंकि भारत देश इस भूभाग से सीधे सटा हुआ है। इससे सबसे ज्यादा खतरा इसी पर आसन्न है। तिब्बत न केवल दुनिया का थर्ड पोल है बल्कि पूरे एशिया का वॉटर टावर भी है। धरती का सबसे बड़ा ग्लेशियर रेसर्वोयर भी इसी तिब्बत में है। 10 प्रमुख नदियों का स्रोत भी तिब्बत में है, जिसमें कई भारत में आती हैं और इनको भी चीन अपने हिसाब से नियंत्रित कर रहा है। ब्रह्मपुत्र पर असंख्य बड़े-बड़े बांध वह षड्यंत्र के तहत बना रहा है। कई नदियों की धारा मूल चीन की ओर ले जाने का कार्य करके वह प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित कर रहा है, जिसकी विस्फोटात्मक प्रतिक्रिया पूरी मानव जाति भोगेगी।
तिब्बत परिक्षेत्र में स्थित प्राकृतिक संपदा , उसकी जैवविविधता और जल संपदा जो तिब्बत से निकलने वाली दर्जनों सदावाहिनी नदियों का मूल स्रोत है के अस्तित्व और भविष्य की चिंताओं को देखते हुए भारत तिब्बत समन्वय संघ विश्व समुदाय का आव्हान करता है कि तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों व जलस्रोतों के सतत प्रबंधन व वैज्ञानिक अध्ययन के लिए एक वैश्विक संस्था का गठन किया जाए जो चीन द्वारा तिब्बती परिक्षेत्र में किये जा रहे मनमाने और अवैज्ञानिक दोहन से चीन को रोक सके क्योंकि चीन इस दोहन से दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया के दर्जनों देशों को प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से प्रभावित कर रहा है जिस कारण से भूराजनीतिक संकटों को न्योता दिया जा रहा है ।

(३) तिब्बती परिक्षेत्र की प्राकृतिक संपदा और उसकी जैवविविधता पर आधारित स्थानिक व वैश्विक, वैज्ञानिक शोध परियोजना में तिब्बत के परंपरागत ज्ञान व अन्वेषण का समायोजन कर सतत विकास के लिए तिब्बतियों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के साथ ही
तिब्बत परिक्षेत्र को स्वतंत्र इकाई मानते हुए उसका प्रशासनिक नियंत्रण तिब्बतियों की विस्थापित सरकार के हाथ में दिया जाए और विश्व कल्याण के लिए इस परिक्षेत्र की सुरक्षा और संरक्षण भारत को दिया जाए ।

आज दिनांक 5 दिसम्बर 2021 दिन रविवार को भारत तिब्बत समंवय संघ के मेरठ प्रान्त की ओर से मैं अरविन्द भाई ओझा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्य द्वारा उपरोक्त प्रस्तावों को सर्वसम्मति से पारित कर राष्ट्रीय कार्यकारिणी के विचारार्थ व अनुमोदनार्थ रख रहा हूँ।

प्रस्ताव क्रमांक 4

तिब्बत को चीन द्वारा हड़पे जाने के बाद से हम सब सनातनियों के लिए वहां स्थित शंकर भगवान के अपने मूल स्थान कैलाश मानसरोवर की यात्रा दुष्कर, दुरुह व दुर्गम किए जाने का निरंतर प्रयास चीन करता रहा है। समय के साथ चीन का यह प्रयास देखने को मिला है कि भारत से आने वाले सनातनी तीर्थयात्री वहां ना जाएं। इस यात्रा को हतोत्साहित करने का प्रयास निरंतर वह कर रहा है इसलिए वह वर्षों से तीर्थयात्रियों की संख्या को सीमित किए हुए हैं जबकि यह तीर्थ स्थली सनातनी हिंदुओं, बौद्ध, जैन व सिखों अर्थात प्रत्येक पंथ के लिए परम श्रद्धा का केंद्र है। साथ ही इस यात्रा को चीन द्वारा इतना महंगा बनाया गया है कि सामान्य श्रद्धालु इस यात्रा को करने का साहस नहीं बटोर पाता, इसलिए भारत तिब्बत समन्वय संघ का हरियाणा प्रांत का मैं प्रांत महामन्त्री फकीर चंद चौहान आज राष्ट्रीय कार्यसमिति बैठक में यह प्रस्ताव करता हूं:-

1. भारत सरकार कैलाश मानसरोवर के दर्शन के लिए जाने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या में वृद्धि कराए जाने का प्रयास करें।

2. देश में कुछ राज्य सरकारें अपने-अपने राज्य से इस यात्रा में शामिल हुए तीर्थयात्रियों को उनके खर्चे की भरपाई अलग-अलग अंशदान के रूप में करती हैं। इसके लिए भारत सरकार यह प्रयास करें कि या तो वह सभी राज्य सरकारों को निर्देशित करें कि प्रत्येक राज्य सरकार एक समान रूप से तीर्थयात्रियों के व्यय की प्रतिपूर्ति करें या फिर स्वयं भारत सरकार अपने स्तर से पूरी प्रतिपूर्ति करे।

3. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के दिशा निर्देश पर बने कैलाश मानसरोवर यात्रियों के भव्य भवन को आधार व उदाहरण मानते हुए प्रत्येक राज्य में इस प्रकार के भवन बनाए जाए।

4. चीन को कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रियों की चिंता कम रहती है बल्कि वह तिब्बत में अपने कथित विकास के नाम पर कर रहे विनाश को दुनिया की नजर से छिपाने का प्रयास में ज्यादा रहता है इसलिए भी वह इस यात्रा को हतोत्साहित करता है। ऐसे में भारत को चीन से वार्ता करके कैलाश मानसरोवर कॉरिडोर बनाके तीर्थ यात्रियों को यात्रा का सुगम व सुरक्षित वातावरण तैयार करवाना चाहिए।

चीन के विंटर ओलंपिक का हो पूर्ण बहिष्कार :
बीटीएसएस

-इंडो चीन नहीं, इंडो तिब्बत सीमा ही लिखी-बोली जाये
-तिब्बती चिकित्सा पद्दति को जोड़े आयुष में
-सन 93 व 96 का भारत-चीन समझौता हो रद्द
– तिब्बतियों को मिले दोहरी नागरिकता।

6 दिसंबर । कोरोना फैलाकर अनगिनत लोगों की हत्या करने वाले चीन में आयोजित होने जा रहे विंटर ओलंपिक्स के पूर्ण बहिष्कार, तिब्बत बॉर्डर पर चीनी सैनिकों के सामने भारतीय सैनिकों के बिना अस्त्र-शस्त्र के रखने के चीन से सन 93 व 96 के करार को तत्काल तोड़ने, आयुष मंत्रालय द्वारा तिब्बती चिकित्सा पद्धति को आश्रय देने, देश में भारत चीन सीमा के बजाय केवल भारत तिब्बत सीमा शब्द के ही उपयोग की स्वीकृति देने और देश में रह रहे तिब्बत वासियों को दोहरी नागरिकता दिए जाने संबंधी महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित करने के साथ भारत तिब्बत समन्वय संघ की प्रथम राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक आज तीसरे दिन संपन्न हो गई।
बैठक में केंद्रीय संरक्षक व पूर्व राज्यपाल प्रो कप्तान सिंह सोलंकी ने अभी तक कार्यकारी अध्यक्ष रहे व जबलपुर विश्वविद्यालय में के पूर्व वीसी प्रफेसर प्रयाग जुयाल को आज से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा की। इसके अलावा राष्ट्रीय महामंत्री विजय मान ने कोर परिषद के निर्णय की घोषणा करते हुए बताया कि राष्ट्रीय मूल कार्यकारिणी में दो विभाग है और 13 प्रभाग रहे हैं। जबकि एक नया विभाग विदेश विभाग आज से प्रारंभ किया जा रहा है। इस ऑनलाइन बैठक में आज लगभग 200 प्रतिनिधि देश-विदेश से जुड़े।
समापन सत्र में अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए प्रो कप्तान सिंह सोलंकी ने कार्यकर्ताओं को सारगर्भित मार्गदर्शन दिया। प्रो जुयाल ने इस नये और सबसे अधिक महत्वपूर्ण दायित्व के लिए सब का आभार प्रकट करते हुए कहा कि निश्चय ही तिब्बत के हित के और चीन की चुनौती के मामलों में बीटीएसएस ही थिंक टैंक व टास्क फोर्स के स्वरूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होगा। राष्ट्रीय संगठन मंत्री नरेंद्र भदौरिया ने कहा कि हम 10 माह पुराने लेकिन इतने विशाल होते जा रहे संगठन के आधार पर कह सकते हैं कि बीटीएसएस ही तिब्बत मुक्ति क्रांति की अगुवाई करेगा । बैठक में पूरी दुनिया से विचार आये। झारखंड प्रांत प्रभारी एडवोकेट अभय मिश्रा, गोरक्ष प्रांत अध्यक्ष राम कुमार सिंह के साथ घटित दुर्घटना एवं राष्ट्रीय मंत्री अरविंद केशरी के पिताजी के निधन पर शांति रखी गई। विजय मान ने कहा कि देश में जनांदोलन खड़ा करने में अब यह संघ लगने जा रहा।

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