धर्मशाला। परम पावन दलाई लामा ने तिब्बती कैलेंडर के चौथे- शक दावा के शुभ महीने कीशुरुआत पर भक्तों और अनुयायियों को एक संदेश दिया, जिसमें उन्हें ‘आनंद और करुणा से भरा सार्थक जीवन’ जीने के लिए प्रेरित किया।
परम पावन ने संदेश में लिखा, ‘बुद्ध को भारत में पैदा हुए और उपदेश दिए हुए २५०० साल से ज़्यादा बीत चुके हैं, लेकिन उनके उपदेशों का सार आज भी उतना हीप्रासंगिक है जितना तब था। एक ओर जहां आधुनिक विज्ञान ने भौतिक दुनिया की एक परिष्कृत समझ विकसित की है, वहीं बौद्ध विज्ञान ने मन और भावनाओं के कई पहलुओं की एक विस्तृत, मौलिक समझ विकसित करने में अपनी सारी ऊर्जा को लगाया है। बौद्ध विज्ञान आधुनिक विज्ञान के लिए अभी भी अपेक्षाकृत अबूझ और अगम हैं। मेरा मानना है कि इन दो दृष्टिकोणों के संमिश्रण से ऐसे नए आविष्कारों के आने की बहुत संभावना है, जो हमारे शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक कल्याण को समृद्ध करेंगे।
तिब्बती बौद्ध भिक्षु के रूप में मैं खुद को नालंदा परंपरा का उत्तराधिकारी मानता हूं। नालंदा विश्वविद्यालय में जिस तरह से बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी और जिस तरह से वहां अध्ययन-अध्यापन किया जाता था, वह भारत में इसके विकास के चरम को दर्शाता है। अगर हमें २१वीं सदी का बौद्ध बनना है तो यह महत्वपूर्ण है कि केवल आस्था पर निर्भर रहने के बजाय हम बुद्ध के प्रवचनों के अध्ययन और विश्लेषण में संलग्न हों। ऐसा बहुत से लोगों ने किया भी है। बुद्ध पूर्णिमा या वैशाखी पूर्णिमा शाक्यमुनि बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और परिनिर्वाण का स्मरण करता है। इस तिथि को बौद्ध कैलेंडर में सबसे पवित्र दिन माना जाता है। इस शुभ अवसर पर मैं सभी बौद्धों को परमानंद और करुणा से भरे सार्थक जीवन जीने की शुभकामनाएं देता हूं।
प्रार्थनाओं और शुभकामनाओं के साथ।