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‘भारत उठाए तिब्बत की आजादी का मुद्दा’

March 31, 2012

अमर उजाला, 30 मार्च, 2012

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के शिष्य शेरब छेदोर उर्फ मिगमार तेनजिन का कहना है कि अगर महात्मा गांधी के कहे अनुसार सत्याग्रह और उपवास अहिंसात्मक आंदोलन का हिस्सा है तो आत्मदाह को भी इसी आंदोलन का हिस्सा माना जाना चाहिए क्योंकि अन्तत: भूख हड़ताल में भी हम खुद को खत्म ही करते हैं।

उन्होंने बताया कि तिब्बत की आजादी के लिए अब तक 28 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं जिनमें गंभीर रूप से जले 18 तिब्बतियों ने दम तोड़ दिया है। तेनजिन संपूर्ण भारत में जागरूकता अभियान के अंतर्गत गुरुवार को लखनऊ में थे। पत्र-प्रतिनिधियों से बातचीत में उन्होंने बताया कि तिब्बत में वर्ष 2009 में तिब्बती भिक्षु टापे के आत्मदाह और फिर लोबसांग फुनछोक द्वारा 16 मार्च 2011 को आत्मदाह करने के बाद जो सिलसिला शुरू हुआ उसमें अब तक 26 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं जिसमें गंभीर रूप से जल चुके 18 तिब्बतियों ने दम तोड़ दिया जबकि शेष आठ की स्थिति की पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है।

वहीं भारत और नेपाल में रहने वाले दो निर्वासित तिब्बतियों ने भी आत्मदाह करने का प्रयास किया है। तेनजिन ने बताया कि तिब्बत जनक्रान्ति की 53वीं वर्षगांठ 10 मार्च 2012 को धर्मशाला से तीन महीने का तिब्बत आंदोलन अभियान आरंभ हुआ है। इसके अंतर्गत विभिन्न कस्बों, नगरों में आंखों पर पट्टी बांधकर यात्रा की जा रही है और हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि तिब्बत में हमारा जीवन नरक बन चुका है। वहां 60 लाख तिब्बती हैं और 75 लाख चीनी हैं।

हम अपने ही देश में अल्पसंख्यक हैं। अगर कोई तिब्बती अकेले घर से निकलता है तो पूछा जाता है अकेले क्यों निकले हो, अगर परिवार के साथ निकलता है तो कहा जाता है कि समूह बनाकर चल रहे हो। लड़कियों के साथ दुष्कर्म होता है। हालांकि उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आने वाली खबरों से चीन पहले से डरा है।

तेनजिन, जो इस अभियान के अंतर्गत सुबह नौ से सायं पांच तक आंखों पर पट्टी बांधे रहते हैं, ने कहा कि भारत ने निर्वासित तिब्बतियों को रहने को जगह दी, भोजन दिया है, लेकिन हम चाहते हैं कि वह तिब्बत की स्वतंत्रता के मुद्दे को राजनीतिक तौर पर भी उठाए। उन्होंने बताया कि निर्वासित तिब्बतियों की संख्या एक लाख है जो भारत के अतिरिक्त नेपाल, भूटान आदि देशों में रहते हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि अगर भारत पांच सौ सालों में स्वतंत्र हो सकता है तो हम भी स्वतंत्र होंगे।


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