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भारत और दलाई लामा के उत्तराधिकारी

October 19, 2018

क्लाउडे अर्पि, 9 अक्तूबर, 2018

तिब्बत के आध्यत्मिक धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए हर भारतीय यह उम्मीद भी कर रहा होगा कि हिमालय के इस क्षेत्र में उनके उत्तराधिकारी का ’चयन’ भी हो जाए। क्लाउड अर्पि कहते हैं, ’तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए यह महत्वपूर्ण है ही, लेकिन यह भारत के राजनीतिक हितों में भी है।’

हाल ही में एक भारतीय बेवसाइट पर ‘दलाई लामा ने अपना उत्तराधिकारी चुना’ शीर्षक से एक लेख पोस्ट किया गया है। नजर रखनेवाले तिब्बती लोगों ने इस लेख को गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि इसी लेखक ने पहले दलाई लामा की आसन्न मौत की घोषणा भी की थी।
सिर्फ एक व्यक्ति की नजर इस लेख पर उस समय गई जब दलाई लामा यूरोप की हालिया यात्रा पर थे। व्यक्ति ने लेख से यह समझने को कोशिश की कि तिब्बती नेता का स्वास्थ्य ठीक है, हालांकि कुछ दशकों में उनमें ऊर्जा में कमी हुई है। उनकी उम्र के किस व्यक्ति में यह कम नहीं होगा? अर्थात इस उम्र में ऊर्जा में कमी आएगी ही।

हालांकि, दलाई लामा का उत्तराधिकार एक ऐसा विषय है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि परम पावन मार्च 1959 से ही इस देश में शरण लिए हुए हैं और आज उनके लाख से अधिक अनुयायी भारत में रहते हैं।

दिल्ली और भारत के लोगों के लिए यह निजी और राजनीतिक तौर पर उत्सुकता का विषय है कि क्या दलाई लामा का पुनर्जन्म (जो संदिग्ध है) नहीं होगा, या अपने जीवन में ही वह खुद को एक बच्चे में ’उत्सर्जित’ कर नया शरीर धारण कर लेंगे।

उपरोक्त उद्धृत आलेख केवल इसी अर्थ में प्रासंगिक है।

ऐसी स्थिति में जबकि उनकी ’वापसी’ बिल्कुल अस्पष्ट है, दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की अस्त-व्यस्त दुनिया में शांति, गुण और स्थिरता के मायने में एक चट्टान की तरह बने हुए है।

हाल ही में तिब्बती बौद्ध दुनिया को हिलाकर रख देनेवाले उन घोटालों का जिक्र करना यहां जरूरी नहीं है, जिनमें कुछ तथाकथित बड़े लामाओं पर यौन दुव्र्यवहार और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं।

उत्तराधिकार
’उत्तराधिकार’ संभवतः ऐसा मुद्दा है जिसपर विचार के लिए नवंबर में धर्मशाला में बौद्ध धर्म के विभिन्न पंथों के प्रमुखों की एक बैठक बुलाई गई है (संयोग से, पहली ऐसी बैठक 1966 में धर्मशाला में ही आयोजित की गई थी, भारत के बौद्धों के प्रतिनिधि के तौर पर लद्दाख के कुशोक बाकुला रिन्पोछे उस बैठक में गए थे)। हालांकि, दलाई लामा के अपने येलो पंथ में ही स्थिति उलझन भरी है।

पारंपरिक रूप से तिब्बत में पंचेन लामा दूसरा सबसे प्रमुख धार्मिक व्यक्ति होते हैं। जनवरी 1989 में 10वें पंचेन लामा के निधन के बाद, दलाई लामा ने औपचारिक रूप से 14 मई, 1995 को छह वर्षीय बच्चे गेधुन च्योकेई न्यिमा को औपचारिक रूप से पंचेन लामा का पुनर्जन्म घोषित किया था। लेकिन, तीन दिन बाद ही चीनी सरकार ने उसे गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद वह फिर कभी नहीं देखा गया है।

कम्युनिस्ट शासन द्वारा प्रायोजित एक दूसरा बच्चा-ग्याल्स्तेन नॉरबू वर्तमान में तिब्बत में शिगात्से में पंचेन लामा के आसन पर बैठते है (असल में वह ज्यादातर बीजिंग में रहते है)। हाल ही में विश्वस्त सूत्रों के हवाले से दलाई लामा ने कहा था कि (गेधुन) जीवित है और सामान्य शिक्षा ले रहा है।’

उन्होंने यह भी कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म में दो पंचेन लामा का अस्तित्व असामान्य नहीं हो सकता है। उन्होंने इसके समर्थन में कई ऐतिहासिक उदाहरणों का हवाला भी दिया। लेकिन आम लोगों के लिए इसे समझना आसान नहीं है। दो कर्मापा, दो पंचेन लामा लेकिन भविष्य में कोई भी दो दलाई लामा नहीं देखना चाहता है।

विकल्प क्या है?
दलाई लामा हमेशा अपने अनुयायियों से तर्कसंगत बात सोचने का आग्रह करते हैं।

कारण हमें बताता है कि यह दलाई लामा के पुनर्जन्म नहीं लेने के लिए कोई समझ नहीं बनाता है, तिब्बत के लोगों को उनकी उपस्थिति की इतनी ज्यादा जरूरत है कि वे खुद को ’वापसी’ से रोक नहीं सकते।

इसके अलावा, उनका ‘गैर-पुनर्जन्म’ चीन के लिए एक वरदान होगा जो अपने ‘दलाई लामा’ को खोजने के लिए बाध्य है।
पश्चिम में लौटने का कोई ज्यादा अर्थ नहीं होता है, पश्चिमी नव-बौद्धों के बड़े समूह के बीच होने के अलावा तिब्बती नेता को और क्या फायदा होगा?

वर्तमान परिस्थितियों में तिब्बत लौटना व्यवहार्य नहीं है। इसलिए इसे पुनर्जन्म के स्थान के रूप में त्यागा जा सकता है। किसी भी हालत में कम्युनिस्ट पार्टी अपनी पार्टी नियमों के माध्यम से ‘वापसी’ की योजना पहले से ही बना रखी है।
15वें दलाई लामा को पहले कम्युनिस्ट बनना होगा और फिर वह एक धार्मिक नेता होंगे।

इसके अलावा, उन्हें तिब्बत में रहने की इजाजत नहीं दी जाएगी (यहां तक कि चीनी-मान्यता प्राप्त पंचेन लामा ग्याल्त्सेन नोरबू को तिब्बत में केवल अनियोजित यात्राओं की ही अनुमति है)।

अन्य एशियाई देश भी मुश्किल में लगते हैं क्योंकि तिब्बती नेता का स्वागत एशियाई बौद्ध देशों जैसे थाईलैंड, श्रीलंका, म्यांमार या भूटान भी नहीं करते हैं।

यह चीन से ’राजनीतिक’ दबाव के कारण है, लेकिन एक तथ्य यह भी रहा है कि इनमें से कुछ देश थेरवादी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं।

सबसे अच्छा समाधान
निश्चित रूप से सबसे अच्छी शर्त भारत होगा, जहां उन्हें लोग और सरकार दोनों ही स्वागत करते हैं (भले ही नई दिल्ली चीन को नाराज न करने के लिए खुले तौर पर यह नहीं कहती है)।

दलाई लामा ने बार-बार कहा है कि वह भारत के पुत्र हैं और उसका पसंदीदा भोजन दाल-रोटी है, आगे, उनके लिए भारत आर्यभूमि यानि बुद्ध की भूमि है।

अब पुनर्जन्म और उद्भव के बीच पसंद करना है। उद्भव मानना आधुनिक प्रणाली के प्रशासन के लिए अधिक अनुकूलित लगता है जो नेतृत्व में 20 साल के अंतर को भी स्वीपकार नहीं कर सकता है।

इतिहासकारों का मानना है कि “अवतार द्वारा शासन” तिब्बत की पिछली बात है जो तिब्बत की आजादी की कीमत पर थी क्योंकि रीजेंट देश पर शासन करने में असमर्थ थे। 1947 में तो तिब्बत उस समय गृहयुद्ध के कगार पर आ गया था क्योंकि देश में स्थित दोनों रीजेंट्स आपस में लड़ने पर आमादा हो गए थे।

19वीं शताब्दी के दौरान मंचू शासन ने एक नई चाल सोच ली थी। जब तक नए दलाई लामा बहुमत तक पहुंचते, उससे पहले ही अचानक रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई।

इससे सम्राट के चीनी प्रतिनिधि अंबानों को बर्फ की इस भूमि पर अपनी मनमानी चलाने का मौका मिल गया।

सकारात्मक समाधान क्या होगा?

इस परिस्थिति में तिब्बती नेता के पास बहुत थोड़ा विकल्प बचता है जो अंततः आह्वान करने के लिए होगा।
लेकिन भारत के लिए सबसे अच्छा होगा अगर वह घोषणा करता है कि लद्दाख से या वैकल्पिक रूप से किन्नौर या स्पीति जैसे अन्य हिमालयी क्षेत्र से 15वें दलाई लामा का पुनरावतार आएगा।

यह या तो एक नया जन्म के साथ आ सकता हे या किसी शरणार्थी परिवार में पैदा हुए एक छोटे लड़के में एक उत्थान के रूप में हो सकता है।
एक उत्थान का लाभ यह होगा कि चुने हुए बच्चे को वर्तमान दलाई लामा का ही सानिध्य कई वर्षों तक मिलता रहेगा और वह पूरी तरह से प्रशिक्षित हो जाएगा।

लद्दाख के कई फायदे हैं। वर्तमान दलाई लामा जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्र से गहराई से जुड़े हुए है, जहां वह हर साल जाते हैं।
लद्दाख एक दिलचस्प विकल्प होगा क्योंकि यह एक राजनीतिक संदेश भी होगा।

तथ्य यह है कि बीजिंग अपने पुराने व्यापार मार्गों के प्रति आसक्त होने के बावजूद 1962 से ही तिब्बत और लद्दाख के बीच की सीमा को बंद किए हुए है।

बीजिंग ने लद्दाख में डेमचोक के रास्ते से कैलाश-मानसरोवर के पारंपरिक मार्ग को फिर से खोलने की अनुमति क्यों नहीं दी?

सिर्फ इसलिए कि चीन ने आधिकारिक तौर पर 1947 में भारत में जम्मू- कश्मीर के विलय को स्वीकार नहीं किया था।

आखिरकार, भारत में दलाई लामा की मौजूदगी महत्वपूर्ण है, खासकर सीमावर्ती इलाकों की स्थिरता के लिए।

चीन दलाई लामा के पुनर्जन्म की तैयारी कर रहा है

इस बीच, चीन पहले से ही अपने दलाई लामा की तैयारी कर रहा है।

जुलाई 2007 में, पार्टी-स्टेट ने तिब्बती बौद्ध धर्म में लिविंग बुद्धों के पुनर्जन्म के लिए ’राज्य आदेश संख्या’ या ’प्रबंधन उपाय’ की घोषणा की। विनियमन के 14 अनुच्छेद पुनर्जन्म की प्रणाली को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करते हैं।

उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 7 कहता हैः ’कोई समूह या व्यक्ति प्राधिकरण की अनुमति के बिना पुनर्जन्म वाले जीवित बुद्ध वाले बच्चे को खोजने या पहचानने से संबंधित किसी भी गतिविधि को निष्पादित नहीं कर सकता है।’

इसका मतलब है कि चीन सरकार की ओर से केवल कम्युनिस्ट पार्टी ही बौद्ध एसोसिएशन के माध्यम निर्णय ले सकती है।

जबकि अनुच्छेद 8 ’आवेदक’ को गोल्डन यूरेन प्रणाली के माध्यम से प्रक्रिया में आने के लिए मजबूर करता है। परंपरागत रूप से तिब्बत में इस प्रणाली का उपयोग विरले ही किया जाता है। ’जीवित बौद्ध जिन्हें ऐतिहासिक रूप से सुनहरे कलश के बहुत सारे चित्रों से पहचाना जाता है, अब पुनर्जन्म वाले बच्चों को सुनहरे कलश के बहुत सारे चित्रों से पहचाना जाएगा।’

इसमें वास्तव में कई प्रकार के हेराफेरी करने की गुंजाइश बनी रहेगी।

चीन वर्तमान में ’उत्तराधिकार’ मोर्चे पर बेहद सक्रिय है।

शिन्हुआ ने हाल ही में रिपोर्ट दी कि ग्याल्त्सेन नोरबू ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में लोखा प्रीफेक्चर के ग्यात्सा काउंटी में ल्ह्मोई लहात्सो लेक में पूजा की थी।

आधिकारिक चीनी समाचार एजेंसी ने जोर देकर कहा कि यह पहली बार था जब ग्याल्त्सेन नोरबू इस पवित्र झील का दौरा करने आए जो इस बात के लिए मशहूर है कि एक रीजेंट या एक बड़ा लामा यहां से पैदा हो सकता है।

वर्तमान दलाई लामा इसी तरह से खोजे गए थे
रीजेंट रिटिंग रिन्पोछे 1935 में इस झील में गए और वहां कई दृश्य देखे। उन्होंने युवा दलाई लामा के घर की छतों को देखा जो अम्दो प्रांत (अब किं्वघई) के एक दूरस्थ गांव में पुनर्जन्म ले चुके थे।

शिन्हुआ के अनुसार, अगस्त में पंचेन लामा, 30 से अधिक भिक्षुओं के साथ शांति, समृद्धि और स्थिरता के लिए सूत्रों का जाप करना शुरू कर दिया है।’

’इस अनुष्ठान में अन्य गतिविधियां भी थीं, जिसमें अनाज डालने और झील के बीच में बलिदान के रूप में एक बोतल गाड़ा गया था।’
इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन वर्तमान दलाई लामा के पुनर्जन्म की तैयारी कर रहा है।

वर्तमान ग्रहों की उथल-पुथल में, तिब्बती नेता की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए कोई भारतीय हिमालय में तिब्बती नेता के ’चयन’ की उम्मीद कर सकता है।

तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए यह महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भारत के राजनीतिक हितों में भी है।


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