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भारत कब करेगा दलाईलामा को भारत रत्न से सम्मानित ?

July 16, 2022

प्रो0 श्यामनाथमिश्र पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग / राजकीय महाविद्यालय, तिजारा (राजस्थान)

तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा अपने जीवन के 86 वर्ष पूरे कर चुके। इसी 6 जुलाई, 2022 को विश्वभर में उनका 87 वॉँ जन्मदिन समारोहपूर्वक मनाया गया। भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने फोन करके उन्हें जन्मदिन की बधाई दी तथा ईष्वर से उनके दीर्घजीवन हेतु प्रार्थना की। नरेन्द्र मोदी जी भलीभाँति जानते हैं कि भारत दलाई लामा के लिये ’’गुरुगृह’’ है। दलाई लामा कहते हैं कि भारत हमारे तिब्बत का गुरु है तथा तिब्बत गुरुभूमि भारत का चेला। बौद्ध दर्षन भारत से ही तिब्बत पहुँचा इसलिये भारतभूमि समस्त तिब्बती लोगों की पुण्यभूमि है। साम्राज्यवादी चीन ने 1959 में जब अवैध नियंत्रण किया उस समय तिब्बत के तत्कालीन राजप्रमुख दलाई लामा अपने हजारों सहयोगियों के साथ किसी अन्य देश में जाने की सोच सकते थे। भारत के तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने तिब्बत में चीन की उपनिवेशवादी नीति का विरोध भी नहीं किया था। इस कटु सत्य के बावजूद दलाई लामा ने भारत के साथ तिब्बत के सैकड़ों  वर्षों  से जारी सांस्कृतिक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक संबंधों को महत्व दिया और भारत में शरण ली। यह उनका दूरदर्शीपूर्ण निर्णय था। दलाई लामा के व्यक्तित्व-कृतित्व के विश्लेषण से उनकी चार प्रतिबद्धतायें स्पष्ट हैं जो कि वेश्विक महत्व की हैं।

पहली प्रतिबद्धता है मानवीय मूल्यों का विकास। दलाई लामा कहते हैं कि विष्व के 7 अरब मनुष्य एक समान हैं। मनुष्य के बीच भेदभाव मनुष्य द्वारा ही निर्मित है, जबकि स्वभावतः परस्पर निर्भरता मानवीय विशेषता है। एक मनुष्य का ही विस्तृत रूप परिवार ,गाँव, प्रदेश, देश तथा संसार है। यही ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘‘ और ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः‘‘ का विचार है। इस प्रकार शांति, अहिंसा, करुणा तथा परस्पर सद्भाव एवं सहयोग जैसे मानवीय मूल्यों को सदैव विकसित करना हमारी वैश्विक जिम्मेदारी है।

दूसरी प्रतिबद्धता है विभिन्न रिलिजन अर्थात् पंथ, मजहब या सम्प्रदाय के बीच सद्भाव को बढ़ावा। दलाई लामा की दृष्टि में विश्व के लिये इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भारत है। भारत में विश्व के सभी रिलिजन को मानने वाले एक साथ रहते हैं। सम्प्रदायों के बीच सद्भाव के लिये आवश्यक है कि कोई भी सम्प्रदाय या उसका अनुयायी अपने कार्य एवं व्यवहार से अन्य किसी भी सम्प्रदाय का अपमान मत करे। हम अपने-अपने मजहब के अनुसार पूजापाठ करें लेकिन अन्य मजहबों में प्रचलित पूजापाठ का भी सम्मान करें। यही है ”सर्वपंथ समादर भाव”। सभी पंथों, रिलिजन या मजहब का आपस में एक दूसरे के प्रति समान आदर का भाव। सर्वपंथ समादर भाव को विकसित करके ही मजहबी संघर्ष को रोकना संभव है।

तीसरी प्रतिबद्धता है तिब्बती पहचान का संरक्षण एवं संवर्धन। तिब्बती होने के नाते दलाई लामा इस संकल्प के लिये भी समर्पित हैं। तिब्बत को विष्व का ‘‘तीसरा ध्रुव‘‘ और ‘‘संसार की छत‘‘ कहा जाता है कियोकि यहाँ ग्लेसियर (हिमनद) की भरमार है। तिब्बती ग्लेसियर्स से अनेक नदियाँ निकली हैं जिनमें सिंधु, ब्रह्मपुत्र तथा सतलज भी शामिल  हैं। तिब्बत के पड़ोसी देशो  में जल की आवश्यकता  तिब्बती ग्लेसियर्स से पूरी होती है। चीन की भौतिकवादी साम्राज्यवादी नीति के कारण तिब्बत के ग्लेसियर्स सिकुड़न और समाप्ति के शिकार हैं। तिब्बती संस्कृति पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये प्रेरित करती है। तिब्बती शिक्षा, इतिहास तथा जीवन- शैली  इसके उदाहरण हैं। परतंत्रता के बावजूद तिब्बतियों ने अपनी इस पहचान को बचाये रखा है। बौद्ध दर्शन  में इन्हीं तथ्यों पर जोर दिया गया है। जल, जंगल, जमीन, जानवर तथा सभी प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों के सिर्फ समुचित उपयोग पर जोर। चीन की भोगवादी नीति है प्रकृति से संघर्ष की। इसके विपरीत तिब्बत का योगाधारित दर्शन  है प्रकृति से समन्वय का। यही है तिब्बती पहचान, जो संपूर्ण विश्व के लिये कल्याणकारी है।

चौथी प्रतिबद्धता है प्राचीन भारतीय नालंदा परंपरा को पुनर्जीवित करना। इसी परंपरा ने भारत को ‘‘जगत गुरु‘‘ बनाया। विश्व के कोने-कोने से लोग ज्ञानार्जन के लिये भारतीय शिक्षण संस्थानों में आते थे। भारतीय विश्वविद्यालय में ज्ञान की हर शाखा  में प्रचुर सामग्री उपलब्ध थी। षास्त्रार्थ से इसमें सदैव नयापन रहता था। उत्तम कोटि के ग्रंथ रचे जाते थे। ये शिक्षण  संस्थान मानवीय मूल्यों के विकास के केन्द्र थे। दलाई लामा अपने अधिकांष प्रवचनों में इन तथ्यों पर जोर देते हैं। उनकी प्रेरणा, प्रोत्साहन तथा आशीर्वाद  से भारत स्थित सभी तिब्बती शिक्षण  संस्थान निष्ठापूर्वक इस दिशा  में क्रियाशील हैं। अनेक लुप्तप्राय संस्कृत ग्रंथों का भोटी में तथा लुप्तप्राय भोटी ग्रंथों का संस्कृत में अनुवाद इसी का उदाहरण है।

इस प्रकार प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को प्रकाशित – प्रचारित-प्रसारित करके दलाई लामा भारत की बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं। कोरोना काल के बाद पहली बार अपनी लद्दाख-यात्रा में दलाई लामा ने फिर से अपनी चारो प्रकाशित  प्रतिबद्धताओं को दोहराया है। विभिन्न राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय सम्मानों एवं पुरस्कारों को प्राप्त कर चुके दलाई लामा हम भारतीयों के लिये महत्वपूर्ण प्रेरणास्रोत हैं। राजनीतिक बाध्यताओं से परे होकर हम भी उन्हें ‘‘भारत रत्न‘‘ से सम्मानित करें। चीन सरकार इस प्रकार के किसी भारतीय निर्णय का विरोध जरूर करेगी लेकिन भारत-चीन संबंधों की बनावटी मजबूती के लिये दलाई लामा के योगदान की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये। दलाई लामा का सम्मान भारत का आन्तरिक मामला है। इसी कामना के साथ दलाई लामा जी को उनके जन्मदिन की ‘‘तिब्बत देश‘‘ पत्रिका की ओर से हार्दिक बधाई।


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