
नई दिल्ली। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के सुरक्षा विभाग की कालोन (मंत्री) डोल्मा ग्यारी ने ०६ मई २०२४ को नई दिल्ली स्थित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में भारत-तिब्बत सहयोग मंच (बीटीएसएम) के रजत जयंती समारोह के समापन समारोह में भाग लिया। इस कार्यक्रम में तिब्बती और भारतीय समुदायों की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही और लगभग २०० सदस्य तिब्बती मुद्दे का समर्थन करने के लिए एकत्र हुए।
उपस्थित लोगों में बीटीएसएम के संरक्षक श्री डॉ. इंद्रेश कुमार, कालोन डोल्मा ग्यारी, कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज-इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक श्री रिनचेन खांडू खिरमे, बीटीएसएम के राष्ट्रीय महासचिव श्री पंकज गोयल, सीआरपीएफ के एडीजी श्री सरदार एस.एस. संधू शामिल रहे। निर्वासित तिब्बती संसद के पूर्व उपाध्यक्ष और भारत-तिब्बत सहयोग मंच के वरिष्ठ सलाहकार आचार्य येशी फुंटसोक और दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. गीता सिंह ने अतिथि वक्ता के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।
कलोन ग्यारी डोल्मा ने अपने भाषण में उपस्थित लोगों को यारलुंग राजवंश के प्रथम राजा द्वारा व्यापक रूप से स्वीकृत प्राचीन काल से भारत-तिब्बत संबंधों के सिद्धांत का वर्णन किया। उन्होंने भारत और तिब्बत के बीच भाईचारे के अस्तित्व को दोहराते हुए इस तथ्य को उजागर किया कि तिब्बत में ९९% तिब्बती लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। उन्होने यह भी कहा कि तिब्बती भाषा का मूल संस्कृत भाषा में गहराई से निहित है।
सीटीए कालोन ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जे से पहले अपने पूरे इतिहास में कभी भी चीन के साथ एक इंच भी सीमा साझा नहीं किया। उन्होंने यहां आए लोगों से यह भी अपील की कि वे यहां से जाकर आम लोगों को भी इस तथ्य से अवगत कराएं। चीन द्वारा हाल में अरुणाचल प्रदेश के ३० और स्थानों का नाम बदलने के कृत्य के बारे में पूछे जाने पर सीटीए कालोन ने कहा, ‘अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है।’ उन्होंने तिब्बती लोगों को शरण देने और समुदाय को अपना प्रशासन स्थापित करने देने के लिए भारत के प्रति आभार प्रकट किया। सीटीए कालोन ने भारत सरकार से तिब्बत-चीन संघर्ष को लेकर अपनी पहले की अस्पष्ट नीति में बदलाव करने की भी अपील की।
सीआरपीएफ के एडीजी श्री सरदार एस.एस. संधू ने कार्यक्रम के दौरान अतीत में जाकर उन्नीसवीं सदी के मध्य में डोगरा-तिब्बती युद्ध का जिक्र किया और कहा कि तिब्बत पर अवैध कब्जे से पहले भारत ने कभी चीन के साथ सीमा साझा नहीं की थी।
बीटीएसएम के संरक्षक श्री डॉ. इंद्रेश कुमार ने भारत और तिब्बत के बीच एक दशक पुराने संबंधों के बारे में जानकारी देते हुए ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने उपस्थित लोगों को यह भी आश्वस्त किया कि वे तिब्बत मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र में भी अपील करेंगे।
कार्यक्रम में तिब्बत समर्थकों और तिब्बती क्षेत्रीय संगठन के प्रतिनिधियों को तिब्बती मुद्दे के प्रति उनके अटूट समर्थन के लिए सम्मानित किया गया।
भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय ने उपस्थित सभी लोगों के बीच तिब्बत से संबंधित पुस्तकें और पत्रिकाएं वितरित कीं। कार्यक्रम में युवाओं की बड़ी भागीदारी रही। विद्वान वक्ताओं और साहसी उपस्थित लोगों के माध्यम से यह कार्यक्रम तिब्बत मुद्दे के लिए प्रेरणा और सहयोग का एक उल्लेखनीय संगम साबित हुआ।







