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भारत पर चीनी हमला और भारतीय संसद का प्रस्ताव

October 10, 2010

१४ नवम्बर, १९६२


”इस संसद को इस बात का गहरा दुख है कि चीन की जनवादी सरकार ने भारत के सदाशयतापूर्ण मैत्री व्यवहारों की उपेक्षा करके दोनों देशों के बीच परस्पर स्वाधीनता, तटस्थता और एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत एवं सहअस्तित्व की भावना के समझौते को न मानकर पंचशील के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है ! इसके बाद चीन ने अपनी विशाल सेना लेकर पूरी तैयारी के साथ भारत पर आक्रमण किया है!
यह संसद हमारी सेनाओं के जवानों और अधिकारियों के शोर्यपूर्ण मुकाबले की सराहना करती है, जिन्होंने हमारी सीमाओं की रक्षा की है ! सीमा सुरक्षा में अपने प्राणों की बलिदेने वाले वीरगति प्राप्त शहीदों को हम श्रद्धांजलि देते है और मातृभूमि की रक्षा के लिए दी गई कुर्बानी के लिए नतमस्तक होते है ! यह संसद भारतीय जनता के सक्रिय सहयोग की प्रशंसा करती है, जिसने भारत पर चीनी आक्रमण से उतपन्न संकट तथा आपात स्थिति में भी बडे धैर्य से काम लिया ! संसद हर वर्ग के लोगों के उत्साह और सहयोग की प्रशंसा करती है जिन्होंने आपातकालीन स्थितियों का डट कर मुकाबला किया ! भारत की स्वधीनता की रक्षा के लिए लोगों में एक बार फिर स्वतंत्रता, एकता और त्याग की ज्वाला फूटी है !
विदेशी आक्रमण के प्रतिरोध में हमारे संघर्ष के क्षणों में जिन अनेक मित्र राष्ट्रों की सहायता हमें प्राप्त हुई है, उनकी इन नैतिक एवं सहानुभूतिपूर्ण संवेदनाओं के प्रति यह संसद अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती है !
संसद आशा और विश्र्वास के साथ प्रतिज्ञा करती है कि भारत की पवित्र भूमि से हम आक्रमणकारियों को खदेडकर ही दम लेंगे ! इस कार्य में हमें चाहे कितना ही समय क्यों न लगाना पडे या इसका कितना भी मूल्य चुकाना पडे, हम चुकाने को तैयार है”

कोई भी भारतीय नेता यह नहीं चाहता कि वह बिना कोई ऐतिहासिक समझौता किए या विदेश में सफलता प्राप्त किए बिना घरेलू समस्याओं का सामना करने के लिए घर न लौटे। अधिकारियों और समर्थक पत्रकारों से भरे जहाज में जाने वाले प्रधनमंत्री के लिए यह आसान होता है कि वह अपने दौर की उपलब्ध्यिं का बखान कर सके। कई प्रमुख शक्तियां भारत की इस कमजोरी के साथ सावधानी पूर्वक खेल खेलना चाहती हैं। वे जानते हैं कि जब कोई भारतीय प्रधनमंत्री बुलाने पर आता है तो द्विपक्षीय संबंधें में नया अध्याय शुरू करने की आड़ में कुछ रियायतें हासिल की जा सकती हैं। इस मामले में सबसे ज्यादा सफलता चीन ने पायी है। चीन से पूर्ण राजनयिक रिश्ते की बहाली के बाद हमारे दो प्रधनमंत्री चीन गए थे और भारत लौटने पर दावा किया था कि उन्होंने एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। लेकिन यदि राजीव गांधी की १९८८ की यात्रा और पीवी नरसिंह राव की १९९३ की यात्रा के दौरान हुए समझौतों में कुछ ऐतिहासिक था तो यह भारत के राजनयिक भोलेपन की चरम सीमा थी। १९८१ के बाद से ही वरिष्ठ स्तर की सीमावार्ता जारी है लेकिन राजीव गांधी की चीन यात्रा को ऐतिहासिक स्वरूप देने के लिए वार्ताओं के तरीके को नए ढंग से वर्गीकृत कर उन्हें संयुक्त कार्य समूह का नाम दिया गया जबकि इसमें कुछ भी न तो नया था और न ही संयुक्त।
राजीव गांधी के दौरे की सफलता का भारत में आधिकारिक रूप से प्रचारित इस अहंकार के विपरीत चतुर चीन ने गुप्त रूप से पाकिस्तान को पहली मिसाइल प्रणाली प्रदान कर दी।
to be continued
ड्रैगन की शक्ल से सावधन!
ब्रह्‌म चेलानी
लगभग हर भारतीय प्रधनमंत्री की एक कमजोरी रही है कि वह किसी भी बड़ी विदेश यात्रा को कोई दिशा निर्धरक नहीं बना पाया है।

 ************ 

 कहीं भूल न जाएं हम तुम…..
भारत को दिए गए सभी आश्र्वासनों के बावजूद चीन ने तिब्बत को हथिया लिया और चीनी सेनाएं तिब्बत को लांधकर भारत की सीमा पर आ पहुंची ! बाद में तिब्बत को छावनी की तरह उपयोग करके चीन ने १९६२ में भारत पर हमला कर दिया ! यहां प्रस्तुत है इस चीनी हमले से अपमानित और दुखी भारत की संसद का वह संकल्प जिसे बाद की हर भारत सरकार जान बूझकर भूलने की कोशिश करती आ रही है- सम्पादक (‘तिब्बत देश’ मासिक पत्रिका)
तिब्बत से निर्वासित कवि, हताशा (Poetry)


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