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भारत वैश्विक शांति में योगदान देने में अत्यधिक सक्षम है रू परमपावन दलाई लामा

January 14, 2020

बोधगया, बिहार। बोधगया में भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम बीजी) विश्वविद्यालय में एक वार्ता के दौरान परमपावन दलाई लामा ने आज के विश्व में भारत के प्राचीन ज्ञान और परंपरा की प्रासंगिकता की ओर ध्यान आकृष्ट किया।
सभा को संबोधित करते हुए परम पावन ने आनंद प्राप्ति के बारे में अपने रुख को दोहराया कि यह आनंद की प्राप्ति सभी संवेदनशील प्राणियों का परम लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि स्थायी खुशी केवल करुणा के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
परम पावन ने कहा, ‘आम तौर पर मनुष्य अपने स्वार्थ और अदूरदर्शी सोच के कारण अंधा हो जाता है, जो कई समस्याओं का मुख्य कारण है।‘ उन्होंने कहा, ‘हमारी सहज प्रकृति करुणा है इसलिए हमें उसका पोषण करना चाहिए। इसके अलावा इस ग्रह पर सभी सात अरब मानव एक ही परिवार हैं।‘
20वीं सदी के युद्धों को याद करते हुए परम पावन ने कहा कि पिछली सदी की त्रुटियों को न दोहराकर 21वीं सदी को शांति और करुणा की सदी बनाने का समय आ गया है।
उन्होंने कहा कि अगर मानवता की वास्तविक शांति और सद्भाव की आवश्यकता है और इसे आपा चाहते हैं तो अहिंसा और करुणा के प्राचीन भारतीय ज्ञान की साधना करनी पड़ेगी।
केवल शांति के लिए नारे लगाना व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि शांति के लिए हिंसा और घातक हथियारों को खत्म के लिए पुरजोर प्रयास करना होगा।
उन्होंने आगे कहा कि शत्रुता और असुरक्षा के समय में संवाद की शक्ति से बड़ा कोई और दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकता है।
आज की दुनिया में प्रासंगिक उपकरण के रूप में ‘अहिंसा’ और ‘करुणा’ के महत्व को रेखांकित करते हुए परम पावन ने जोर देकर कहा कि भारत को अपनी प्राचीन परंपरा और विचार को पुनर्जीवित करने का प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘मैं हमेशा इस बात पर जोर देता हूं कि भारत एकमात्र राष्ट्र है जो मन की शांति विकसित करने के लिए आधुनिक शिक्षा को अपने प्राचीन ज्ञान के साथ जोड़ सकता है।‘
परम पावन ने आगे उल्लेख किया कि मन की शांति के लिए घातक नकारात्मक भावनाओं का मुकाबला करने के लिए भारत की एक बिंदु पर ध्यान केंद्रति करने की विधि और विश्लेषणात्मक ध्यान की परंपरा भी रचनात्मक है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्कूल पाठ्यक्रम में भारत के प्राचीन ज्ञान और परंपरा को पुनर्जीवित करने को एक शैक्षणिक विषय के रूप में शामिल करना जरूरी है। परम पावन ने उल्लेख किया कि ऐसा करके भारत कई और महान विचारक पैदा करने की सक्षम हो सकता है।


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