
धर्मशाला। सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) ने वाराणसी और गुजरात के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में दो सप्ताह की तिब्बत जागरुकता वार्ता शृंखला और तिब्बत संग्रहालय प्रदर्शनी का सफलतापूर्वक आयोजन किया। इस अभियान का उद्देश्य छात्रों और शिक्षकों को भारत के साथ तिब्बत के चिरस्थायी संबंधों और चीनी सरकार के दमनकारी शासन और नीतियों के तहत तिब्बत के अंदर की गंभीर वर्तमान स्थिति के बारे में जागरूक करना था। इस अभियान में १३ विश्वविद्यालयों में कुल १३४८ प्रतिभागियों से संपर्क और संवाद किया गया।
वार्ता के दौरान, तेनज़िन कुनखेन और रिनचेन जैसे वक्ताओं ने तिब्बत की वर्तमान मानवाधिकार चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने तिब्बत के वैश्विक महत्व पर जोर दिया और भारतीय छात्रों से अपने शैक्षणिक कार्यों में इन मुद्दों को शामिल करने का आग्रह किया। वक्ताओं ने उपस्थित लोगों को तिब्बत की स्थिति के बारे में जागरुकता बनाए रखने के लिए पत्रिकाओं में लेख लिखकर चल रही बातचीत को उजागर करने और इस क्षेत्र की चिंताओं पर विद्वतापूर्ण बहस चलाकर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के महत्व पर प्रकाश डाला।
वाराणसी में तिब्बत जागरुकता वार्ता
तिब्बत वार्ता का पहला चरण २३ -२४ सितंबर को वाराणसी के तीन अहम संस्थानों में आयोजित किया गया। इनमें केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान में आयोजित वार्ता में २५० छात्रों और संकाय सदस्यों ने भाग लिया, जबकि मालवीय शिक्षा निकेतन इंटर कॉलेज के कार्यक्रम में १०० प्रतिभागियों ने भाग लिया। अभियान का तीसरा स्थल प्रतिष्ठित काशी हिंदू विश्वविद्यालय रहा जहां २० तिब्बती छात्रों के माध्यम से विविध दर्शक वर्ग तक इसका विस्तार हुआ।
गुजरात में तिब्बत जागरुकता वार्ता
गुजरात बीटीएस के राज्य अध्यक्ष श्री भावेश जोशी के नेतृत्व में भारत-तिब्बत संघ (बीटीएस) के जीवंत और स्नेही टीम ने गुजरात में भारत-तिब्बत संघ के सदस्यों ने न केवल वार्ता की व्यवस्था करने में सहायता की, बल्कि राज्य में परिवहन और आवास की सुविधा भी प्रदान की। इस टीम ने राज्य क विभिन्न विश्वविद्यालयों में डीआईआईआर कर्मचारियों के साथ उनकी प्रस्तुतियों के दौरान जागरुकता अभियान के प्रभाव को मजबूत किया। यह साझेदारी भारत में तिब्बती मुद्दों के लिए समर्थन के बढ़ते नेटवर्क को उजागर करती है और अंतर-सांस्कृतिक समझ और संवाद को बढ़ावा देने में स्थानीय संगठनों की प्रभावशीलता को रेखांकित करती है।
वडोदरा (३० सितंबर)
महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा (एमएसयू) (३० सितंबर): यहां पर ‘मिडिल वे पॉलिसी आउटरीच’ कार्यक्रम में २० तिब्बती छात्रों ने हिस्सा लिया।
पारुल यूनिवर्सिटी (०१ अक्तूबर) : ६५ भारतीय छात्र और शिक्षक शामिल हुए।
राजकोट (०३ अक्तूबर):
श्रीमती कंसागर कॉलेज में २३५ छात्राएं और २७ अन्य लोग शामिल।
वीवीपी इंजीनियरिंग कॉलेज: २५० प्रोफेसर, तकनीकी और शैक्षणिक कर्मचारी और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की भागीदारी रही।
सौराष्ट्र विश्वविद्यालय: ६५ छात्र और शिक्षक शामिल हुए।
जूनागढ़ (०४ अक्तूबर):
वाणिज्य और विधि कॉलेज: १२० छात्राएं और २२ संकाय सदस्य आए।
भक्त नरसिंह मेहता विश्वविद्यालय: १५८ छात्र और २० संकाय सदस्य पहुंचे।
जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय: कुलपति के साथ बैठक हुई।
मीडिया कवरेज और प्रभाव की व्यापकता
गुजरात के राजकोट और जूनागढ़ में ‘तिब्बत जागरुकता वार्ता’ शृंखला ने महत्वपूर्ण गुजराती समाचार पत्रों का ध्यान प्रमुखता से आकर्षित किया। इससे अभियान के प्रचार में काफी वृद्धि हुई। अकिला न्यूज और गुजरात समाचार जैसे प्रमुख अखबारों ने इन कार्यक्रमों का व्यापक कवरेज किया, जिससे तिब्बत का मुद्दा क्षेत्र में सार्वजनिक चर्चा में सबसे आगे आ गया। अपने व्यापक पाठक वर्ग और प्रभाव रखने के लिए जाने जाने वाले इन समाचार पत्रों ने गुजरात भर के विशाल पाठक वर्ग तक वार्ता के बारे में जानकारी प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक स्थानीय समाचार पत्र ने भी तिब्बत जागरुकता वार्ता और वाराणसी में तिब्बत संग्रहालय प्रदर्शनी को कवर और प्रकाशित किया। इसमें न केवल अभियान के प्रमुख संदेशों को उजागर किया गया बल्कि तिब्बत की सांस्कृतिक विरासत और वर्तमान चुनौतियों में रुचि जगाने का भी काम किया गया।
इन समाचार पत्रों की लोकप्रियता और व्यापक प्रसार को देखते हुए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मीडिया कवरेज ने तिब्बत जागरुकता संदेश के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि की है, जो विश्वविद्यालय की वार्ता में प्रत्यक्ष प्रतिभागियों से कहीं अधिक है। मीडिया के माध्यम से मुद्दे का यह विस्तारीकरण तिब्बत से संबंधित मुद्दों पर सार्वजनिक बहस को अधिक सूचनात्मक और लोगों के जुड़ाव को बढ़ावा देने में सहायक रहा है।
उत्साहजनक प्रतिक्रिया और जुड़ाव
वाराणसी और गुजरात के विश्वविद्यालयों में तिब्बत जागरुकता वार्ता शृंखला को अत्यधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। इस अभियान की सफलता को इन शब्दों में रेखांकित किया जा सकता है कि यह अपने संदेश को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने में सफल रहा। पूरे सत्र के दौरान भारतीय छात्रों और संकाय सदस्यों ने उल्लेखनीय उत्साह दिखाया और वक्ताओं से विचारोत्तेजक प्रश्न कर उन्हें इसका उत्तर देने के लिए प्रेरित किया। ये प्रश्नोत्तर तिब्बत की संस्कृति, इतिहास और बिगड़ती वर्तमान स्थिति में गहरी रुचि से संबंधित थे। वार्ता ने जीवंत चर्चाओं को जन्म दिया, जिसमें उपस्थित लोगों ने भारत-तिब्बत संबंधों के विभिन्न पहलुओं और तिब्बत के अंदर तिब्बती लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों की गंभीरता के बारे में जिज्ञासा व्यक्त की। वाराणसी के केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान से लेकर गुजरात के सौराष्ट्र विश्वविद्यालय तक अभियान में शामिल किए गए सभी संस्थानों में लगातार उत्साहपूर्ण स्वागत, जागरुकता और भारतीय छात्रों और शिक्षाविदों के बीच एकजुटता की भावना को बढ़ावा देने में वार्ता की प्रभावशीलता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वक्ताओं ने कहा कि यह व्यापक जुड़ाव और समर्थन उनकी अपेक्षाओं से कहीं अधिक है, जो जागरुकता अभियान के महत्व और समयबद्धता को पुष्ट करता है।










