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रेलवे परियोजना निर्माण के लिए तिब्बतियों की जमीनें छीनी जा सकती है

April 15, 2020

freetibet.org

पूर्वी तिब्बत में चल रही एक रेलवे परियोजना के लिए तिब्बतियों को अपनी जमीन से बेदखल किया जा सकता है।

पूर्वी तिब्बत में थुग्रीन काउंटी के राबांग में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा जारी एक नोटिस में कहा गया है कि जिनिंग-चेंग्दू एक्सप्रेस रेलवे के निर्माण के लिए भूमि का अधिग्रहण 10 अप्रैल 2020 से शुरू होगा।

नोटिस में घोषणा की गई है कि भूमि और खेती की जमीन के लिए मुआवजा मौजूदा दिशा- निर्देशों पर आधारित होगा। नोटिस में यह भी चेतावनी दी गई थी कि जो कोई भी अधिसूचित क्षेत्र में खेती या किसी भी निर्माण परियोजनाओं जैसी गतिविधियों में लिप्त पाया जाएगा, उसे मुआवजा नहीं दिया जाएगा।

ऐसा माना जा रहा है कि निरीक्षण समिति ने प्रस्तावित रेल मार्ग का निरीक्षण किया है और परियोजना निर्माण के लिए रूट को चिह्नित भी कर लिया है।

एक्सप्रेस रेलवे के मार्ग के निर्माण की प्रस्तावित योजना किन्हाई प्रांत में शिनिंग से शुरू होकर कई प्रांतों से गुजरते हुए सिचुआन प्रांत तक चलेगी। यह शिनिंग-चेंगदू रेलवे 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से किंघई, गांसु और सिचुआन प्रांतों से होते हुए 836.5 किलोमीटर की दूरी तय करेगी।

चीन रेलवे निर्माण निगम के अनुसार, इस परियोजना के मार्ग में 17 नए स्टेशन बनाए जाएंगे। यह परियोजना बेसिनों, पठारों, नदी घाटियों और पहाड़ी क्षेत्रों से होकर गुजरेगी और इसके मार्ग के चार राष्ट्रीय प्राकृतिक रिजर्व भी आएंगे।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का तिब्बत में भूमि अधिग्रहण का पहले से ही खासा अनुभव रहा है। इसकी प्रतिक्रिया में अक्सर तिब्बतियों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जाता रहा है क्योंकि भूमि अधिग्रहण से सीधा खतरा उनके आवास और आजीविका को पैदा हो जाता है। इन शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों के कारण पिछले वर्षों के दौरान कई तिब्बतियों को गिरफ्तार कर जेल में डाला जा चुका है।

इस आधिकारिक नोटिस में कहा गया है कि इस परियोजना का निर्माण आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। हालांकि, ऐसी निर्माण परियोजनाओं के कारण तिब्बतियों और तिब्बत के प्राकृतिक वातावरण पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

तिब्बत में बांध निर्माण परियोजनाओं, खनन गतिविधियों और रेलवे निर्माण सहित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निर्माण करते समय अक्सर खानाबदोश क्षेत्रों से तिब्बतियों को जबरदस्ती विस्थापित किया जाता रहा है और उन्हें मुआवजे के वादों के साथ कहीं और बसने के लिए मजबूर किया जाता रहा है। हालांकि उनके मुआवजे के ऐसे वादे आमतौर पर कभी पूरे नहीं हुए।

कानूनी ज्ञान की कमी के कारण कई तिब्बती प्रस्तावित मुआवजे के लिए प्रक्रिया चलाने में सक्षम नहीं हैं और कुछ को ही इसका लाभ मिलता रहा है। पुनर्वास और नई जीवनशैली ने कई तिब्बतियों को रोजगारहीन और अव्यवस्थित बना दिया है।


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