
लुधियाना (पंजाब)। भारत के ७९वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में पंजाब के लुधियाना में तिब्बती व्यापारी संघ ने परम पावन १४वें दलाई लामा के ९०वें जन्मदिन पर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा शुरू की गई ‘घोटन: करुणा वर्ष’ के तहत एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। यह कार्यक्रम लुधियाना स्थित किंग पैलेस हॉल में आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय और तिब्बती सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और परम पावन की गतिविधियों से संबंधित फोटो प्रदर्शनियां लगाई गईं।
इस कार्यक्रम में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग पेन्पा शेरिंग, निर्वासित तिब्बती संसद की उपाध्यक्ष डोल्मा शेरिंग तेयखांग, न्यायिक आयुक्त दावा फुनकी, न्यायिक आयुक्त फगपा शेरिंग, निर्वासित तिब्बती संसद के पूर्व डिप्टी स्पीकर आचार्य येशी फुंटसोक, निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्य कर्मा गेलेक, वित्त विभाग के सचिव शेरिंग धोंडुप, दिल्ली के प्रतिनिधि जिग्मे जुंगने और तिब्बती कला प्रदर्शन संस्थान के निदेशक धोंडुप शेरिंग उपस्थित थे। अन्य विशिष्ट अतिथियों में भारत-तिब्बत सहयोग मंच (बीटीएसएम) के राष्ट्रीय महासचिव पंकज गोयल, भारत-तिब्बत संघ के सचिव सुखमिंदरपाल सिंह ग्रेवाल, भारत-तिब्बत संवाद मंच के सचिव कृष्ण भारद्वाज, भारत-तिब्बत मैत्री संघ के अध्यक्ष मनोज कुमार, लाला तिब्बती होजरी एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन सूद, भारत-तिब्बत होजरी एसोसिएशन के अध्यक्ष डीसी कपूर, दिल्ली जाफराबाद व्यापार संघ के अध्यक्ष अशरीफ, तिब्बती व्यापारी संघ की केंद्रीय समिति के पूर्व सदस्य और भारत भर के लगभग २३४ क्षेत्रों के व्यापारी संघों के प्रतिनिधि शामिल थे।
मुख्य कार्यक्रम से पहले दोपहर लगभग २ बजे सिक्योंग पेन्पा शेरिंग ने निर्वासित तिब्बती संसद की डिप्टी स्पीकर डोल्मा शेरिंग तेयखांग और न्यायिक आयुक्त दावा फुनकी और फगपा शेरिंग के साथ लुधियाना में तिब्बती व्यापारी संघ के नए कार्यालय के निर्माण स्थल का निरीक्षण किया।
मुख्य कार्यक्रम दोपहर ३ बजे तिब्बती और भारतीय राष्ट्रगान के साथ शुरू हुआ, जिसके बाद तिब्बती शहीदों के सम्मान में एक मिनट का मौन रखा गया।
इस कार्यक्रम में तिब्बती प्रदर्शन कला संस्थान (टीआईपीए) और निर्वासित समुदाय के विभिन्न गायकों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी गईं। सम्मान स्वरूप, निर्वासित तिब्बती व्यापारी संघ ने केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अधिकारियों और व्यापारी समुदाय के प्रतिनिधियों को औपचारिक खटक भेंट किए।
इस अवसर पर, सिक्योंग पेन्पा शेरिंग ने अपना हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए भाषण दिया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा इस वर्ष को ‘करुणा वर्ष’ घोषित करने का निर्णय तिब्बती समाज तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि परम पावन दलाई लामा के दृष्टिकोण और पहलों को व्यापक रूप से प्रचारित करने का एक माध्यम बनना चाहिए। उन्होंने इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए निर्वासित तिब्बती व्यापारी संघ की भी सराहना की, जिसने परम पावन के जन्मदिन और भारत की स्वतंत्रता की ७९वीं वर्षगांठ- दोनों को सम्मानपूर्वक मनाया।
सिक्योंग पेन्पा शेरिंग ने इस दिन के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जहां भारत अपनी स्वतंत्रता के ७९वां वर्ष मना रहा है, वहीं तिब्बत ने भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के मात्र तीन वर्ष बाद ही अपनी स्वतंत्रता खो दी, जिसके परिणामस्वरूप तिब्बती लोग निर्वासित होकर शरणार्थी बन गए। उन्होंने दशकों से तिब्बती समुदाय को निरंतर और अटूट समर्थन देने के लिए भारत की केंद्र और राज्य सरकारों- दोनों के प्रति गहरा आभार प्रकट किया। इसके अलावा, उन्होंने आत्मनिर्भर भारत (मेक इन इंडिया) की दिशा में प्रयास के महत्व पर जोर दिया और जहां भी संभव हो, आयात के स्थान पर स्वदेशी तकनीक और स्थानीय स्तर पर प्राप्त सामग्री के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
इसके अलावा, उन्होंने परम पावन के जन्मदिन के सम्मान में इस वर्ष को ‘करुणा वर्ष’ के रूप में मनाने की बात कही और परम पावन के दर्शन को वैश्विक स्तर पर फैलाने के महत्व पर बल दिया। अपने भाषण के दौरान, उन्होंने परम पावन की चार प्रमुख प्रतिबद्धताओं पर भी प्रकाश डाला।
अंत में, सिक्योंग ने तिब्बत और भारत के बीच गहरे ऐतिहासिक और प्राकृतिक संबंधों पर प्रकाश डाला, जिसमें उनके स्थायी धार्मिक संबंध भी शामिल हैं। उन्होंने तिब्बती समुदाय के छोटे व्यापारियों को भारतीय व्यापारिक नेताओं से मिले अपार समर्थन के लिए हार्दिक आभार व्यक्त किया, जिससे उनकी आजीविका में काफी सुधार हुआ है। उन्होंने यह भी आशा व्यक्त की कि ये बहुमूल्य संबंध भविष्य में भी फलते-फूलते रहेंगे।
इसके बाद, निर्वासित तिब्बती संसद की डिप्टी स्पीकर डोल्मा शेरिंग ने संबोधित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया गया कि तिब्बती समाज में परम पावन का जन्मदिन मनाना केवल एक समारोह नहीं है, बल्कि तिब्बती पहचान को संरक्षित करने और परम पावन की आकांक्षाओं को पूरा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। उन्होंने उन कठिन परिस्थितियों का वर्णन किया, जब चीनी उत्पीड़न, अपनी मातृभूमि के खोने और कठोर शरणार्थी परिस्थितियों के बीच परम पावन १९५९ में एक शरणार्थी के रूप में पहली बार भारत आए थे। इन चुनौतियों के बावजूद, परम पावन के सच्चे नेतृत्व में भारत सरकार और जनता के सहयोग और समर्थन से धीरे-धीरे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन, शैक्षिक बस्तियां और मठ स्थापित हुए। इन प्रयासों ने आज तक तिब्बती भाषा, संस्कृति और उसके नस्लीय पहचान को सफलतापूर्वक संरक्षित रखा है। इस अवसर पर, उन्होंने भारत सरकार और जनता के निरंतर सहयोग के प्रति गहरा आभार व्यक्त किया।
उन्होंने दलाई लामा परंपरा की निरंतरता की पुष्टि करते हुए परम पावन की हालिया सार्वजनिक घोषणा पर भी प्रकाश डाला, जिसने न केवल तिब्बतियों और उनके अनुयायियों में, बल्कि पूरे विश्व में आशा का संचार किया है। यह देखते हुए कि इस वर्ष केंद्रीय तिब्बती प्रशासन परम पावन के जन्मदिन को ‘करुणा वर्ष’ के रूप में मना रहा है, उन्होंने सभी से परम पावन की करुणामयी गतिविधियों को विश्व स्तर पर सक्रिय रूप से बढ़ावा देने का आग्रह किया।
कार्यक्रम के समापन पर, निर्वासित तिब्बती व्यापारी संघ के उपाध्यक्ष सोनम ढोंडन ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन दिया और कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन किया।