शेवासेल/ लेह (लद्दाख)। शिवात्सेल फोडरंग से सटे कालचक्र शिक्षण स्थल पर आज दूसरे दिन यानी १७ अगस्त को भी लगभग ५०,००० लोग चिलचिलाती धूप में एकत्र हुए। ये यहां पर परम पावन दलाई लामा की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करने आए हैं। परम पावन अपने निवास से मैदान के दूर स्थित शिक्षण मंडप तक गोल्फ कार्ट से गए, उस समय पारंपरिक लद्दाखी ढोल और बैंड बाजा से उनका स्वागत किया। इस समारोह का आयोजन और प्रस्तुतिकरण लद्दाख बौद्ध संघ (एलबीए) और लद्दाख गोंपा संघ (एलजीए) द्वारा किया गया था।

गोल्फ कार्ट से उतरकर मंडप में पहुंच कर परम पावन ने सबसे पहले सिंहासन के पीछे स्थित बुद्ध की प्रतिमा को प्रणाम किया। इसके बाद थिक्से रिनपोछे उनका अभिवादन करने के लिए आगे बढ़े। आसन ग्रहण करने से पहले परम पावन मंच के सामने आए और भीड़ पर एक नजर डाली और उनका अभिवादन किया।
परम पावन की दीर्घायु प्रार्थना की शुरुआत ‘तीन सातत्यों की प्रार्थना’ से हुई। इसके बाद प्रसाद में में खीर और चाय परोसे गए। तत्पश्चात, बुद्ध और बोधिसत्वों का आह्वान किया गया और उन्हें स्नान कराया गया। उनके प्रति एक श्लोक का मंडल अर्पण किया गया।
परम पावन की दीर्घायु-प्रार्थना का अनुष्ठान ‘सोलह अर्हतों की प्रार्थना‘ पर आधारित था, जो बुद्ध के मुक्त अनुयायी हैं, और जिन्होंने उनके प्रवचनों की रक्षा करने का संकल्प लिया है। इसके बाद सप्तांग अर्पण किया गया। सोग अर्पण किया गया और परम पावन ने उसका एक भाग ग्रहण किया।

इसके बाद एलबीए और एलजीए के प्रतिनिधियों ने परम पावन को श्रद्धांजलि अर्पित की। थिक्से रिनपोछे ने एक मंडल अर्पण किया और उन्हें बुद्ध के शरीर, वाणी और मन के प्रतीक, मठवासी वस्त्र, फलों से भरा एक भिक्षापात्र और एक भिक्षु-दंड भेंट किया। परम पावन ने सम्मान के प्रतीक के रूप में प्रत्येक वस्तु को अपने माथे से लगाया। आठ शुभ प्रतीकों, सात राजसी प्रतीकों और आठ शुभ द्रव्यों के प्रतीक थालियां परम पावन के जीवन की दीर्घायु की कामना के साथ अर्पित की गईं।
जब स्थानीय लोगों का एक विशाल जुलूस मंच के सामने से गुजरा, तो परम पावन के दो शिक्षकों द्वारा रचित ‘परम पावन दलाई लामा की अमरता का गीत गाया गया। प्रार्थना इस प्रकार है:
हम अगाध भक्ति के साथ प्रार्थना करते हैं
कि तेनजिन ग्यात्सो, हिम की महान भूमि के रक्षक,
युगों-युगों तक जीवित रहें।
आप उन पर अपना आशीर्वाद बरसाएं
कि उनकी आकांक्षाएं पूरी हों।
इसके बाद परम पावन ने सभा में एकत्रित अनुयायियों को संबोधित किया:
‘मेरे प्रिय धर्मबंधुओं और बहनों, मैं यह कहना चाहता हूं कि लद्दाख के स्थानीय और दूसरी जगहों से आए, मठवासी और सामान्य लोग मेरी दीर्घायु के लिए प्रार्थना करने हेतु उत्कट भक्ति के साथ यहां एकत्रित हुए हैं। तिब्बती बौद्ध परंपरा का पालन करनेवाले तिब्बती और हिमालयी क्षेत्र के लोग यहां विशेष रूप से मेरी दीर्घायु के लिए प्रार्थना करने हेतु एकत्रित हुए हैं।
‘जहां तक मेरा मामला है, मेरा जन्म तिब्बत के अमदो प्रांत के धोमे में हुआ और इसके बाद मैं मध्य तिब्बत में आ गया। तिब्बत के सभी लोगों और देवताओं ने मुझ पर दृढ़ विश्वास किया है। इसलिए, मैं तिब्बत के लोगों और देवताओं की सेवा करने का दायित्व निभा रहा हूं। मैंने कठिन परिस्थितियों में भी अपना जीवन जिया है और इस दौरान कई चुनौतियों का सामना भी किया है।’
इसी समय, अर्पण जुलूस के अंत में पहुंचे एक बुजुर्ग आशीर्वाद लेने के लिए आये तो परम पावन जोर से हंस पड़े, क्योंकि उन्होंने एक के ऊपर एक दो टोपियां पहन रखी थीं। उस बुजुर्ग व्यक्ति के पीछे एक तिब्बती व्यक्ति और थे, जो तिब्बती ध्वज लिए हुए थे, जिसे उन्होंने परम पावन को भेंट किया।

परम पावन ने आगे कहा, ‘तिब्बती रक्षक देवता नेचुंग चोग्याल जैसे महान धर्म राजा तिब्बती मुद्दे की सेवा के लिए कृत संकल्प हैं, वे हमेशा मेरे साथ हैं। तिब्बत के रक्षक देवताओं ने नेचुंग के नेतृत्व में लोगों के साथ मिलकर काम किया है। तिब्बत में मैं मुख्य रूप से पोटाला पैलेस और ग्रीष्मकालीन पैलेस नोरबुलिंगका में रहा, जहां से मैंने तिब्बती लोगों और तिब्बती परंपरा की सेवा की। मैंने तिब्बत और तिब्बती धर्म की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई है। पिछले वर्षों में मैंने तिब्बती मुद्दे का समर्थन करने के लिए अलौकिक और सांसारिक देवताओं का भी आह्वान किया है।
जहां तक मेरी बात है, मैंने बचपन से ही अपने शिक्षकों के साथ बौद्ध धर्म का अध्ययन किया है। मैंने संग्रहित विषयों से शुरुआत की और फिर मन और जागरूकता, तर्कशास्त्र, प्रज्ञा-सिद्धि, मध्यम मार्ग और उच्च ज्ञान (अभिधम्म) का अध्ययन किया, हालांकि कुछ पहलुओं को लेकर मैं संशय में हूं। खैर, मैंने मध्यम मार्ग के दर्शन के साथ-साथ तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा, ज्ञान की प्रकृति का भी अध्ययन किया है, जो हमारी परंपरा के उत्कृष्ट अंग हैं।
‘फिर मन के आंतरिक विज्ञान, हमारे मन और भावनाओं की कार्यप्रणाली को समझने के संबंध में आज आधुनिक वैज्ञानिक भी हमारी परंपरा से सीखने के लिए उत्सुक हैं।’
‘मैं दो दशकों से अधिक समय तक तिब्बत में रहा और कई चुनौतियों का सामना किया। बीजिंग में मेरी मुलाकात चेयरमैन माओत्से तुंग से हुई, जहां मुझे पता चला कि हमारी विचारधाराएं और दार्शनिक दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। तिब्बत में हुई उथल-पुथल के कारण, मुझे अपनी मातृभूमि से भागना पड़ा और तब से मैं भारत में निर्वासन में आराम से रह रहा हूं। मैं बुद्ध के उपदेशों के संरक्षण में योगदान दे पाया हूं और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से सलाह के लिए मुझसे संपर्क करने वाले लोगों की सेवा कर पाया हूं। मैंने एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में ख्याति अर्जित की है। चाहे वे धर्म का पालन करते हों या नहीं, कई लोगों ने मेरे काम की प्रशंसा की है।’

‘मेरे इतने वर्षों के जीवन में कई लोगों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुझ पर विश्वास किया है और मैंने उनके लिए लाभकारी होने की प्रार्थना की है। इसलिए, मैं आप सभी का ताशी देलेक / अभिवादन करना चाहता हूं।
‘मैं सांसारिक गतिविधियों या आध्यात्मिक शिक्षाओं के संदर्भ में जो कुछ भी कर पाया हूं, आप सभी मेरी दीर्घायु के लिए ये प्रार्थनाएं करने यहां एकत्रित हुए हैं। जिस प्रकार आपने मेरे दीर्घायु होने की प्रार्थना की है, उसी प्रकार मैं भी आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होने की प्रार्थना करूंगा। मैं आप सभी का इन प्रार्थनाओं और अर्पण के लिए धन्यवाद करना चाहता हूं और मैं प्रार्थना करता हूं कि आपकी प्रार्थनाएं सहजता से पूरी हों। धन्यवाद / ताशी देलेक।’
‘ध्यान देने योग्य बात यह है कि आज मुख्य भूमि चीन, जो दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है, में बौद्ध धर्म के प्रति रुचि बढ़ रही है। अतीत में वे मुझे प्रतिक्रियावादी आदि कहते थे, लेकिन मैं कभी किसी के प्रति द्वेष या दुर्भावनापूर्ण विचार नहीं रखता।’
ऐतिहासिक रूप से, सोंगसेन गम्पो के समय से ही चीन के साथ हमारे मजबूत संबंध रहे हैं। जैसे-जैसे चीनी लोग बौद्ध धर्म में रुचि लेते रहेंगे, यह स्वाभाविक रूप से फैलेगा और मुझे इस विकास में यथासंभव योगदान देने में खुशी होगी।

… इसके बाद एक संगीतमय कार्यक्रम हुआ। इसमें पहले लद्दाखी गायकों और संगीतकारों के एक समूह ने और फिर स्थानीय तिब्बती बाल ग्राम (टीसीवी) के एक समूह ने परम पावन के ९०वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में गीत प्रस्तुत किए और उनके दीर्घायु होने की प्रार्थना की। टीसीवी समूह ने परम पावन के प्रति अपनी कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में एक सौहार्दपूर्ण भाव विकसित करने की प्रतिज्ञा लेकर अपने प्रदर्शन की शुरुआत की।
जैसे ही प्रार्थनाएं समाप्त हुईं, सोलह वरिष्ठों और चारों दिशाओं के राजाओं का एक बार फिर आह्वान किया गया और उनसे प्रार्थना की गई कि लामा दीर्घायु हों और उनके उपदेश फलते-फूलते रहें। गादेन त्रिपा, जेत्सुन लोबसांग दोरजे रिनपोछे द्वारा परम पावन के दीर्घायु होने के अनुरोध को उनके द्वारा स्वीकार करने पर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अंतिम धन्यवाद मंडल अर्पण की गई। इसके साथ ही कई शुभ प्रार्थनाएं की गईं, जिनका समापन एक ही छंद में परम पावन की दीर्घायु-प्रार्थना के साथ हुआ।
तिब्बत के दिव्य लोक में, बर्फीले पर्वतों की शृंखला से घिरे,
प्राणियों के लिए समस्त सुख और सहायता का स्रोत
साक्षात् तेनजिन ग्यात्सो-चेनरेजिग हैं –
उनका जीवन युगों-युगों तक सुरक्षित रहे।