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विस्तारवादी चीन की तिब्बत नीति की चौतरफा आलोचना

January 30, 2019

प्रो0 श्यामनाथ मिश्र
पत्रकार एवं तिब्बत देश पत्रिका का संपादक 

प्रो0 श्यामनाथ मिश्र

हमारी लोकप्रिय मासिक पत्रिका ‘‘तिब्बत देश’’ की ओर से नववर्ष 2019 की शुभकामनायें। भारत के राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस 26 जनवरी की शुभकामनायें। हम सभी नये वर्ष में प्रसन्न रहें तथा अपने अच्छे कार्यों में हमें सफलता मिलती रहे, यही मंगलकामना है। इसके साथ ही हमारे लिए एक बात दिल दुखाने वाली भी है। जबर्दस्त जुझारू नेता जॉर्ज फर्नांडीस जी का इसी 29 जनवरी, 2019 को निधन हो गया। तिब्बतियों एवं तिब्बत समर्थकों को इससे अपूरणीय क्षति हुई है। जॉर्ज साहब अंतिम समय तक तिब्बत आंदोलन को भरपूर सहयोग तथा मार्गदर्शन देते रहे। उनका स्पष्ट मत था कि चीन द्वारा तिब्बत पर अवैध कब्जे से मानवीय मूल्यों, अंतरराष्ट्रीय कानून तथा लोकतांत्रिक मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है। वे सम्पूर्ण हिमालय की सुरक्षा के लिए तिब्बत की सुरक्षा को आवश्यक मानते थे। वे मानते थे कि तिब्बत की आजादी से ही भारत सुरक्षित रहेगा। ‘‘तिब्बत देश’’ पत्रिका अपने इस संघर्षशील मार्गदर्शक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सदैव प्रेरणा, प्रोत्साहन और मार्गदर्शन  प्राप्त करती रहेगी।

चीन ने सन् 1959 में तिब्बत पर अवैध नियन्त्रण कर लिया था। तिब्बत के पड़ोसी भारत समेत सभी तिब्बत समर्थकदेश कूटनीतिक स्तर पर चाहते हैं कि चीन सरकार तिब्बत की निर्वासित सरकार के साथ वार्ता करके तिब्बत को सिर्फ ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ प्रदान करे। चीन के संविधान एवं राष्ट्रीयता संबंधी कानून के अनुरूप वह अपने पास वैदेशिक तथा प्रतिरक्षा मामले रख ले और शेष विषयों पर कानून बनाने का अधिकार तिब्बतियों को सौंप दे। इससे चीन की संप्रभुता एवं अखंडता की सुरक्षा के साथ ही तिब्बतियों को भी स्वशसन का अधिकार मिल जायेगा। यही ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ है।

विश्व जनमत तिब्बती आंदोलन के साथ है। वर्ष 2018-19 को तिब्बती समुदाय धन्यवाद वर्ष के रूप में मना रहा है। विभिन्न देशों में तिब्बत समर्थकों के प्रति उनके सहयोग एवं समर्थन के लिए हार्दिक कृतज्ञता प्रकट की जा रही है। भारत, स्विट्रलैंड एवं जापान समेत कई देशों में ऐसे आयोजन विस्तृत पैमाने पर हो रहे हैं। इसी जनवरी 2019 में निर्वासित सरकार के सिक्योंग डॉ. लोबजंग संग्ये ने अपने जापान प्रवास के दौरान वहाँ के तिब्बत समर्थक सांसदों को संबोधित करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया है। उन सांसदों ने एक स्वर में चीन की तिब्बत संबंधी विस्तारवादी नीति की आलोचना की है तथा इस संकट से निपटने के लिए चीन पर दबाव डालने का संकल्प लिया है।

यूरोपीय संसद भी तिब्बत की खराब आंतरिक स्थिति से क्षुब्ध है। धार्मिक आजादी के संबंध में विचार करते हुए तिब्बत एवं चीन में धार्मिक अधिकारों को हनन पर अप्रसन्नता जारी की है। यूरोपीय संसद का स्पष्ट मत है कि चीन के धर्म संबंधी नियम कानून धर्मविरोधी हैं और इसलिए इनकी आलोचना की जाये। ज्ञातव्य है कि चीन सरकार की गलत नीति के कारण तिब्बती पूजा-पाठ नहीं कर सकते। वे अपने धर्मगुरू दलाई लामा की तस्वीरें नहीं रख सकते। उनके आध्यात्मिक-सांस्कृतिक स्थल नष्ट किये जा रहे हैं।

विश्व के कई कुख्यात आतंककारियों का समर्थक चीन धर्मगुरू दलाई लामा को ही आतंककारी-विघटनकारी बता रहा है। भारत के खिलाफ सक्रिय पाकिस्तान एवं वहाँ रह रहे आतंककारियों का मददगार चीन दलाई लामा को समझने में भूल कर रहा है, जबकि दलाई लामा के दिल में चीन के लोगों के लिए भी करूणा है। चीन सरकार हर समय भारत को अपमानित करने, चारो तरफ से घेरने तथा असुरक्षित करने एवं कमजोर करने की नीति पर चल रही है। पाकिस्तान के साथ उसकी भारत विरोधी मित्रता इसी का प्रमाण है। वह पाकिस्तान में अपनी ‘‘वन बेल्ट-वन रोड नीति’’ के अंतर्गत सड़क एवं बंदरगाह बना रहा है। उसने भारतीय सीमा तक सड़क और रेलवे का विस्तार कर लिया है। चीन सरकार की इस विस्तारवादी नीति से उसके सभी पड़ोसी सशंकित हैं। इससे भारतीय राष्ट्रीय हित को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।

चीन की उपनिवेशवादी  तिब्बत नीति से भारत के लिए उत्पन्न खतरे की तथ्यपूर्ण चर्चा अभी मुंबई में हुई। भारत में तिब्बत समर्थक संगठनों केपश्चिम क्षेत्र का सम्मेलन जनवरी में मुंबई में संपन्न हुआ। इसमें भारत-तिब्बत के सांस्कृतिक संबंधों पर विचार करते हुए समस्या के हल हेतु भारत सरकार से मांग की गई कि वह विश्व जनमत के अनुरूप चीन सरकार एवं निर्वासित तिब्बत सरकार के मध्य सार्थक वार्ता शुरू कराये। तिब्बत में पर्यावरण-संकट भारतीय पर्यावरण के लिए भी संकट है। कैलाश -मानसरोवर की यात्रा हम भारतीय नहीं कर पाते, क्योंकि कैलाश -मानसरोवर चीन के कब्जे में है। पवित्र कैलाश -मानसरोवर की यात्रा के बदले चीन सरकार मोटी राशि वसूलती है। तिब्बत समस्या का हल होते ही हम भारतीय पहले की भाँति कैलाश-मानसरोवर की निःशुल्क यात्रा बेरोकटोक कर सकेंगे।

परमपावन दलाई लामा भी यही चाहते हैं कि भारत एवं तिब्बत के संबंध हमेशा मजबूत रहें। भारत में हर जगह अपने प्रवचनों में बौद्ध दर्शन  की नालंदा परंपरा का विश्लेषण करते हुए भारत को गुरू तथा तिब्बत को भारत का चेला बताते हैं। उनका स्पष्ट मत है कि बौद्ध दर्शन मानवीय मूल्यों तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भरपूर है। वे कहते हैं कि लोकतांत्रिक मानवीय मूल्य तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण चीन के भी हित में हैं।


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