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संयुक्त राष्ट्र विश्व अंतर धार्मिक सद्भाव सप्ताह में तिब्बत ब्यूरो के अधिकारी ने कहा- चीन की नास्तिकता तिब्बतियों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है

February 5, 2020

तिनले चुक्की, प्रवक्ता तिब्बत ब्यूरो जिनेवा

tibet.net

जेनेवा। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संयुक्त राष्ट्र विश्व अंतरधार्मिक सद्भाव सप्ताह को मनाने के संकल्प संख्या ए/आरईएस/65/5 को क्रियान्वति करते हुए संयुक्त राष्ट्र भवन में 4 फरवरी 2020 को एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम का आयोजन फाउंडेशन फॉर जीएआईए ने एनजीओ एलायंस ऑन ग्लोबल कंसर्न और तीन अन्य गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर किया था। इसका विषय था-  ‘बिल्डिंग ब्रिज फॉर चेंज-इंस्पायरिंग कलेक्टिव एक्शन।‘

धार्मिक स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करते हुए तिब्बत ब्यूरो जिनेवा की कर्मचारी थिनले चुक्की और इस कार्यक्रम में एक अन्य वक्ता ने कहा कि ष्धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा में निहित सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है। क्योंकि यह धर्म या विश्वास का पालन करने के अधिकार की रक्षा से बहुत ऊपर की चीज है। साथ ही विविधता, समानता, सहिष्णुता और सद्भाव की भी वकालत करता है। एक एकल विचारधारा को आबादी पर थोपना केवल इस अधिकार का हनन मात्र या एक बुनियादी मानवीय अधिकार का उल्लंघन नहीं है। बल्क ि यह विनाशकारी समाज का एक नुस्खा है, जिनमें से कुछ की झलक तिब्बत में दिख रही है।‘

तिब्बत में गंभीर स्थिति पर प्रकाश डालते हुए थिनले चुक्की ने कहा कि‘तिब्बती स्कूल के बच्चों को छुट्टी के दौरान किसी भी धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाता है। बुजुर्ग सेवानिवृत्त तिब्बतियों को पवित्र धार्मिक स्थलों की परिक्रमा के लिए एक धार्मिक गतिविधि ‘कोरा’ करने से प्रतिबंधित किया जाता है। इसके अलावा नए भिक्षुओं और भिक्षुणियों को मठों में प्रवेश पर भी अंकुश लगाया जाता है। कुल मिलाकर स्थिित यह है कि चीन के नास्तिक विश्वास तिब्बतियों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।‘

अंतर धार्मिक सद्भाव की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने परमपावन दलाई लामा द्वारा शुरू किए गए विभिन्न कार्यों का उल्लेख किया जो बौद्ध धर्म और विज्ञान और एसईई (सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक) शिक्षण के बीच की खाई को पाटता है। उन्होंने दलाई लामा द्वारा मन और जीवन जैसे सम्मेलनों के आयोजन का जिक्र किया जो बौद्ध और विज्ञान और एसईई के बीच पुलों का निर्माण करता है। इस तरह की पहल धर्मनिरपेक्षता क भावना को मजबूत करती है और युवा पीढ़ी के बीच नैतिकता को पल्लवित पुष्पति करती है।

चुक्की ने कहा कि ‘इन कार्यक्रमों को जमीनी स्तर पर भी क्रियान्वयन किया जा रहा है जो समाज में बदलाव के लिए पुलों के निर्माण में मदद करेगा।‘

इस कार्यक्रम के माध्यम से आयोजकों का उद्देश्य गैर-सरकारी संगठनों और धर्म आधारित संगठनों द्वारा पारस्परिक सद्भाव की व्यावहारिक पहल को उभारना है, जो धार्मिक मुद्दों से जुड़े संघर्षों को कम करने में सार्थक योगदान दे सकते हैं।


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