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स्‍पीकर खेनपो सोनम तेनफेल ने छात्रों को तिब्बती लोकतांत्रिक व्यवस्था के विकास के बारे में बताया

December 22, 2022

धर्मशाला। आज २२ दिसंबर की सुबह १७वीं निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष खेनपो सोनम तेनफेल ने केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के शिक्षा विभाग द्वारा धर्मशाला के पास के प्रशासनिक प्रशिक्षण केंद्र में दसवीं कक्षा के छात्रों के लिए आयोजित नेतृत्व कार्यशाला में तिब्बती लोकतांत्रिक राजनीति के विकास के बारे में जानकारी दी।

भारत और नेपाल के २७ तिब्बती स्कूलों के कुल ११४ छात्रों की कार्यशाला में बोलते हुएस्‍पीकर ने लोकतंत्र शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए अपने व्‍याख्‍यान की शुरुआत की। उन्‍होंने बताया कि लोकतंत्र का अंग्रेजी मूल डेमोक्रेसी शब्‍द ग्रीक शब्द ‘डेमोस’ और ‘क्रेटोस’ के मिलने से वियुत्‍पन्‍न हुआ है। ‘डेमोस’ का अर्थ है लोग और ‘क्रेटोस’ काअर्थ शक्ति होता है। इसी तरह, उन्होंने तिब्बती में सबसे उपयुक्त शब्द की ओर इशारा किया जो अंग्रेजी में लोकतंत्र शब्द के सबसे करीब आता है। इसके बाद उन्‍होंने प्रत्यक्ष लोकतंत्र और प्रतिनिधि लोकतंत्र सहित विभिन्न प्रकार के लोकतंत्र की व्याख्या की। आगे उन्‍होंने आज की तारीख में लोकतंत्र के सामने उत्‍पन्‍न चुनौति‍यों को रेखांकित किया।

उन्होंने परम पावन दलाई लामा द्वारा तिब्बत में प्रशासनिक और भूमि सुधार शुरू करने के लिए सुधार समिति के गठन से तिब्बती समाज में लोकतंत्र के विकास पर भी प्रकाश डाला। यह पहल लोकतंत्र की दिशा में एक कदम के रूप में थाजो आगामी वर्षों में तिब्बत पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के अवैध कब्जे के कारण बाधित हो गया।

अध्यक्ष ने परम पावन दलाई लामा द्वारा १९५६में अपनी भारत यात्रा के दौरान भारतीय संसद के कामकाज पर और १९५४में अपनी चीन यात्रा के दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कांग्रेस पर की गई परस्‍पर विरोधी टिप्पणियों के बारे में बात की, जिसमें से लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले भारत ने परम पावन को एक न्यायपूर्ण समाज के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाने के लिए बहुत प्रेरित किया।

इसी क्रम मेंअध्यक्ष ने १९६० में बोधगया के पवित्र स्थान पर एक शपथ वक्तव्य पर तिब्बत के तीन पारंपरिक प्रांतों और बौद्ध धर्म के चार धार्मिक संप्रदाय के प्रतिनिधियों द्वारा परम पावन दलाई लामा का सीधे-सीधे अनुसरण करने की शपथ लेने के बारे में बताया। उस समयपरम पावन ने तिब्बतियों को सलाह दी कि वे अपने-अपने प्रांतों से तीन प्रतिनिधियों का चुनाव करें और बौद्ध धर्म के चार संप्रदायों में से प्रत्येक से एक प्रतिनिधि चुनें। उन निर्वाचित प्रतिनिधियों ने उस वर्ष के २ सितंबर को निर्वासित तिब्बती संसद (तब इसका नाम कमीशन ऑफ तिब्‍बतन पीपुल्‍स डेप्‍युटीज रखा गया) के पहले निर्वाचित सदस्यों के रूप में शपथ ली और उस दिन के बाद से इसी तारीख को तिब्बती लोकतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।

निर्वासि‍त तिब्बती संसद की संरचना, अवधि और कामकाज में बदलाव की व्याख्या करते हुए, अध्यक्ष ने १९९१में निर्वासित तिब्बतियों के चार्टर को अपनाने की प्रक्रिया और निर्वासन में तिब्बती संसद की वर्तमान संरचना की व्याख्या की।निर्वासि‍त तिब्बती संसद में वर्तमान में तिब्बत के तीन पारंपरिक प्रांतों यानी यू-त्सांग, धोतोए और धोमे में से प्रत्येक के १०-१०प्रतिनिधियों सहित कुल ४५सदस्य हैं। इनमेंतिब्बती बौद्ध धर्म और पूर्व-बौद्ध बॉन धर्म के चार स्कूलों में से प्रत्येक से दो, उत्तरी अमेरिका और यूरोप से दो-दो, ऑस्ट्रेलिया से एक और एशिया से (भारत, नेपाल और भूटान को छोड़कर) एक सदस्‍य प्रत्येक तिब्बती समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।

निर्वासित तिब्बतियों के लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया में एक मील का पत्थर तब बना जब २००१ मेंकैबिनेट के पहले प्रमुख (कालोन त्रिपा) को सीधे तिब्बती लोगों द्वारा चुना गया। इसके बाद तिब्बत के इतिहास में सबसे बड़ा मील का पत्थर तब बना जब परम पावन ने दीर्घावधि में तिब्बतियों को लाभान्वित करने और तिब्बतियों के लिए पूर्ण लोकतंत्रीकरण प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करने के लिए २०११ में अपने सभी राजनीतिक अधिकारों को निर्वाचित नेताओं (सिक्योंग) को सौंप दि‍या।

अध्यक्ष ने तीन स्तंभों यानी तिब्बती लोकतांत्रिक प्रणाली की संरचना की व्याख्या  की। इनमें कार्यपालिका (कशाग), विधायी (तिब्बती संसद-निर्वासित) और न्यायपालिका (सर्वोच्च न्याय आयोग) को व्यवस्था पर नियंत्रण और संतुलन बनाने के लिए अलग-अलग शक्ति और उत्तरदायित्वों के साथ अधिकार दिया गया है। इसी तरह, स्वतंत्र और निष्‍पक्ष कामकाज के लिएतीन स्वायत्त निकायों- चुनाव आयोग, लोक सेवा आयोग और महालेखा परीक्षक के कार्यालय की भी स्थापना की गई है।

अंत में, छात्रों द्वारा उठाए गए सवालों और शंकाओं का जवाब देने से पहलेअध्यक्ष ने छात्रों से लोकतंत्र के वास्तविक पहलू को समझने के लिए कहा, जो कि दूसरों की स्वतंत्रता को बाधित किए बिना खुद के लिए स्वतंत्रता का अधिकार है। साथ ही उन्हें निर्वासन में मि‍ले लोकतंत्र के इस अनमोल अधिकार का उपयोग करने में मेहनती होने की सलाह दी।


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