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हाल की सजाओं ने तिब्बती बुद्धिजीवियों और लेखकों पर चीन के निरंतर दमन को साबित कर दिया

June 21, 2022

तिब्बती बुद्धिजीवियों और लेखकों पर चीन के निरंतर दमन पर चिंतन।

tibet.net

तिब्बती बुद्धिजीवियों और लेखकों को चीनी सरकार द्वारा लगातार निशाना बनाया जा रहा है। चीनी सरकार गि‍रफ्तार करने के बाद महीनों गुप्त हिरासत में रखती है फि‍र उन्‍हें लंबी जेल की सजा से दंडित किया जाता है। तिब्बतियों को केवल अपनी राष्ट्रीय पहचान उजागर करने और तिब्बती भाषा और संस्कृति की रक्षा के अपने मौलिक अधिकारों का उपयोग करने के लिए ही गिरफ्तार कर लिया जाता है और लंबी जेल की सजा सुनाई जाती है। सरकार द्वारा दावा किया जाता है कि उन्होंने ‘अलगाववाद का काम’ किया है।

तिब्बत के लेखक चीनी पुलिस की निरंतर निगरानी के साथ-साथ इंटरनेट आधारित सेंसरशिप में रहते हैं। चीनी अधिकारी उनकी हर चीज  की बारीकी से जांच करते हैं और चीनी सरकार द्वारा परिभाषित ‘अवैध’ या ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालनेवाली’ किसी भी सामग्री के लिए उन्‍हें गिरफ्‍तार कर लिया जाता है। चीनी अधिकारियों के अनुसार, ‘अवैध’ माने जाने वाले लेखन की परिभाषा बहुत व्यापक और अस्पष्ट है। इससे उनके लिए उन तिब्बतियों को गिरफ्तार करना आसान हो जाता है, जिन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए खतरा माना जाता हो।

अधिकांश तिब्बती लेखकों की गिरफ्तारी के मामलों में इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है कि उनके लेखन के किस हिस्से में ‘अलगाववाद का कार्य’ और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने’ वाली बात है। चीनी सरकार का हमेशा से यह विशेषाधिकार रहा है कि वह तिब्बती अदालतो द्वारा दी गई सजाओं को आसानी से नजरअंदाज कर कैदियों को असाधारण सजा भुगतने को मजबूर कर दे।

कुछ उदाहरण के रूप में दिए जा सकनेवाले हालिया मामलों में प्रसिद्ध कवि और लेखक रोंगवो गेंडुन ल्हुंडुप, प्रशंसित लेखक थुप्टन लोडो (जिसे सबुचे के नाम से भी जाना जाता है)और रोंगवो गंगकर को दी गई सजाओं को लिया जा सकता है। इनमें पहले के दो को क्रमशः चार साल और साढ़े चार साल की सजा मिली है, जबकि गंगकर को चीनी हिरासत में रखे जाने की पुष्टि की गई है। अधिकांश मामलों में आरोपों, सजा की तारीखों और उनकी वर्तमान स्‍थ‍ितियों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई हैं।

टीसीएचआरडी ने विश्वसनीय स्रोतों के हवाले से बताया है कि प्रसिद्ध तिब्बती लेखक रोंगवो गेंडुन ल्हुंडुपको दिसंबर २०२०से नहीं देखा गया है उनको ‘अलगाववाद उकसाने’ के लिए चार साल जेल की सजा सुनाई गई है। ४८ वर्षीय रोंगवो गेंडुन ल्हुंडुप को ०१दिसंबर २०२१को ज़िनिंग इंटरमीडिएट पीपुल्स कोर्ट द्वारा चार साल के कारावास और दो साल तक राजनीतिक अधिकारों से वंचित करने की सजा सुनाई गई थी। चीनी सुरक्षा अधिकारियों ने ११नवंबर २०२०को रोंगवो गेंडुन ल्हुंडुप को किंघई प्रांत के माल्हो (चीनी: हुआंगनान) तिब्बती स्वायत्त प्रि‍फेक्‍च्‍र के रेबगोंग (चीनी: टोंगरेन) शहर स्थित रोंगवो मठ से हिरासत में लिया था।

मई में यह भी बताया गया था कि गेंडुन ल्हुंडुप को सिलिंग (चीनी: झि‍निंग) में एक हिरासत केंद्र में रखा जा रहा है। उन्हें ‘राजनीतिक पुन:शिक्षा कार्यक्रम’ में भेजा गया है, जहां उन्हें तिब्बती बौद्ध ग्रंथों का मंदारिन-चीनी में अनुवाद करने का काम दिया गया है।

‘खोरवा’ (संसार की बौद्ध अवधारणा, जो जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र का वर्णन करती है) नामक कविताओं के अपने नवीनतम संग्रह को प्रकाशित करने के बादउन्हें हिरासत में लिया गया और सजा सुनाई गई। पूर्व में कई बार गिरफ्तार होने के साथ-साथ उनकी गिरफ्तारी के दौरान उन पर कड़ी निगरानी और पाबंदियां भी लगाई गई थीं।

३४ वर्षीय प्रशंसित तिब्बती लेखक थुप्टेन लोडो को १४ जून २०२२ के आसपास ‘अलगाववाद भड़काने’के झूठे आरोपों में चीनी सरकार द्वारा साढ़े चार साल की सजा सुनाई गई थी। पिछले साल गिरफ्तारी के बाद आठ महीनों से वह अज्ञात स्थान पर बंद हैं।

मीडिया में आ रही रिपोर्ट में कहा गया है कि, थुप्टन लोडो उर्फ ​​​​सबुचे को शुरू में पिछले साल अक्तूबर में ‘देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाली’ और ‘जातीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाली’ सामग्री लिखने और प्रकाशित करने के संदेह में हिरासत में लिया गया था। ‘अलगाववाद भड़काना’चीनी सरकार द्वारा तिब्बतियों, विशेष रूप से बुद्धिजीवियों और लेखकों, मानवाधिकार रक्षकों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ सबसे आम आरोपों में से एक है। पिछले साल प्रमुख तिब्बती लेखकों और विद्वानों के खिलाफ भी यही आरोप लगाया गया था, जिनमें गो शेरब ग्यात्सो, रिनचेन त्सुल्ट्रिम, धी ल्हादेन और रोंगवो गेंडुन ल्हुंडुप शामिल हैं।

तिब्बती सेंटर फॉर ह्यूमन राइट़स एंड डेमोक्रेसी (टीसीएचआरडी) की रिपोर्ट के अनुसार, सबुचे की गिरफ्तारी पर अधिक जानकारी हासिल करने के लिए किए जानेवाले किसी भी प्रयास और छानबीन को चीनी सरकार के डर के कारण छोड़ दिया गया था। असल में चीनी सरकार ने सूचनाओं के आदान-प्रदान पर प्रतिबंध लगा दिया है धमकी दी है कि अगर परिवार और रिश्तेदारों ने कोई जानकारी इधर-उधर सार्वजनिक की तो उनपर भी ये प्रतिबंध लगाए जाएंगे।

हालांकि उन्‍हें सजा सुनाई गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उन्‍हें कहां रखा गया है और वह किस स्थिति में हैं। एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार, उनके परिवार को वर्तमान में स्थानीय अधिकारियों द्वारा धमकाया जा रहा है और चेतावनी दी जा रही है। साथ ही उनके बच्चों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं है।

रोंगवो गंगकर

एक हालिया रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि तिब्बती लेखक और विद्वान रोंगवो गंगकर को २०२१ की शुरुआत से एक साल से अधिक समय तक लापता रहने के बाद चीनी सरकार ने हिरासत में लिया है।

रेडियो फ्री एशिया (आरएफए) की रिपोर्ट के अनुसार, ४८ वर्षीय लेखक को २०२१ की शुरुआत में चीनी अधिकारियों ने अचानक गिरफ्तार कर लिया था और उनका वर्तमान ठिकाना और स्वास्थ्य के बारे में जानकारी अज्ञात है। उनकी गिरफ्तारी के बाद, चीनी पुलिस ने कथित तौर पर उन्हें हिरासत में ले लिया।

चीनी सरकार की ओर से न तो उन पर लगे आरोपों और न ही उनके मुकदमे की तारीख का खुलासा किया गया है।

रोंगवो गंगकर की एक प्रसिद्ध लेखक के रूप में ख्‍याति प्राप्‍त है, जिनके नाम के प्रकाशन बड़ी संख्या में हैं। मूल रूप से मल्हो (हुआंगनान) तिब्बती स्वायत्त प्रि‍फेक्‍चर  में रेबगोंग (चीनी: टोंगरेन) काउंटी के रहने वाले गंगकर रोंगवो मठ से संबंधित है। उनकी लोकप्रिय रचनाओं में ‘द नॉट’ और ‘एन इंटरव्यू विद गेंडुन चोफेल’ प्रमुख हैं।

हाल में दी गई इन सजाओं से यह स्पष्ट है कि चीनी सरकार तिब्बती बुद्धिजीवियों और विद्वानों को तिब्बती भाषा के संरक्षण की हिमायत करने की उनकी क्षमता को कमजोर करने के लिए व्यवस्थित रूप से अभियान चला रही है। उन तिब्बती लेखकों और विद्वानों की एक लंबी सूची है जिन्‍हें चीनी सरकार द्वारा केवल अपनी राष्ट्रीय पहचान का दावा करने और मौलिक अधिकारों का उपयोग करने के लिए गिरफ्तार किया गया  या सजा सुनाई गई है। इनमें गो शेरब ग्यात्सो, धी ल्हादेन, रोंगवो गेंडुन ल्हुंडुप, पेमा त्सो, सेयनम, रिनचेन त्सुल्ट्रिम और कुनसांग ग्यालत्सेन शामिल हैं। उनमें से कुछ को लंबी कारावास की सजा भी दी गई हैं।

चीनी कम्युनिस्‍ट पार्टी और सरकार को अपनी सांस्कृतिक अस्मिता नीति को रोकना चाहिए और सभी तिब्बती लेखकों, बुद्धिजीवियों और सांस्कृतिक नेताओं को तुरंत और बिना शर्त रिहा करके मानवाधिकारों और संवैधानिक अधिकारों की गारंटी देनी चाहिए और उनकी विचार, विवेक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को फिर से स्थापित करना चाहिए।


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