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पिघलते ग्लेशियरों से तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर बड़े पैमाने पर बांध बनाने की चीन की योजना को खतरा : रिपोर्ट

April 28, 2021

ब्रह्मपुत्र पर बड़े पैमाने पर बांध बनाने की योजना।

News18
एक मीडिया रिपोर्ट में बुधवार को कहा गया है कि पिघलते ग्लेशियर और बाधा झीलें अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध बनाने की चीन की योजना को खतरे में डाल सकती हैं। प्रस्तावित बांध मेडोग काउंटी में बनाया जाएगा, जहां ब्रह्मपुत्र ग्रांड कैन्यन स्थित है। मेडोग तिब्बत का आखिरी प्रांत है जो अरुणाचल प्रदेश की सीमा के करीब स्थित है। इस बांध के बारे में एक चीनी अधिकारी का कहना है कि ‘इसके समान दूसरा बांध इतिहास में नहीं बनाया जाएगा।’

मेगा-डैम इस साल से शुरू होने वाली चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना का हिस्सा है। इस डैम निर्माण का अनुमोदन इस साल मार्च में चीन की संसद, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस द्वारा किया गया था। लेकिन हांगकांग से प्रकाशित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, इंजीनियर भूस्खलन और बांध के लिए बाधा झीलों से उत्पन्न खतरों के बारे में चिंतित हैं।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एक बर्फीला तूफान बहुत सारी योजनाओं को रोक सकती है। 2018 में पिघलते ग्लेशियर के कारण हुए भूस्खलन ने ब्रह्मपुत्र नदी की ऊपरी धारा- यारलुंग त्संगपो की धारा को मिलिन काउंटी के सेदोंगपु बेसिन में ही अवरुद्ध कर दिया था। इसने लगभग 60 करोड़ घनमीटर पानी वाली एक झील बनाई। इसमें कहा गया है कि वर्तमान में नदी के ऊपर से बहने के कारण बांध कभी भी ध्वस्त हो सकता है।

सेदोंगपु झील सुपर हाइड्रोपावर प्लांट के नियोजित निर्माण स्थल से कुछ किलोमीटर ऊपर की ओर अवस्थित है। इतना पानी ऊपर अटकने के कारण कोई भी निर्माण श्रमिक जमीन को साफ करने के लिए अंदर नहीं जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़ा बांध बनाने के लिए पहले उन्हें भू- स्खलन से बने छोटे बांध से छुटकारा पाना होगा।

भारत और बांग्लादेश जैसे निचले तटवर्ती राष्ट्रों ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बड़े पैमाने पर बांध बनाने की चीन की योजना पर चिंता जताई है। लेकिन चीन ने ऐसी चिंताओं को कम करके आंका है कि वह उनके हितों को ध्यान में रखेगा। सीमा पार नदियों के पानी के उपयोग के प्राकृतिक अधिकार वाले निचले देश के रूप में स्थापित भारत की सरकार ने चीनी अधिकारियों को अपने विचारों और चिंताओं से लगातार अवगत कराया है और उनसे यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि ऊपरी क्षेत्रों में किसी तरह की गतिविधि के कारण नीचे के देशों के हितों को नुकसान न पहुंचे।

तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी को यारलुंग जांगबो के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मपुत्र तिब्बत की सबसे लंबी नदी है और दक्षिणी तिब्बत में इसकी घाटी दुनिया की सबसे गहरी है। इस घाटी की गहराई सबसे ऊंची पर्वत चोटी से सबसे गहरे बेसिन तक 7000 मीटर (23,000 फुट)  है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन घाटी में एक जलविद्युत संयंत्र बनाने की योजना बना रहा है, जिसमें बिजली उत्पादन क्षमता 70 गीगावाट तक पहुंच जाएगी, और जो थ्री गोरजेस डैम से लगभग तीन गुना बड़ा है। थ्री गोरजेस डैम वर्तमान में चीन द्वारा निर्मित दुनिया का सबसे बड़ा बांध है। हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की कई टीमों ने सेदोंगपु के लिए उड़ान भरी है। इनमें सिविल इंजीनियरिंग, ग्लेशियर अध्ययन और भूस्खलन की रोकथाम के लिए देश के कुछ शीर्ष विशेषज्ञ शामिल हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने ड्रोन और अन्य उन्नत उपकरणों का उपयोग करके स्थल से बड़ी मात्रा में आंकड़े एकत्र किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने उनसे अपना मूल्यांकन पूरा करने के बाद समाधान योजना बताने के लिए कहा है।

एक अध्ययन में शामिल शंघाई जिओ टोंग विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर जिंग ऐगुओ ने इस अखबार को बताया कि स्थिति बहुत विकट है। अभी तक कोई तत्काल समाधान नहीं है। विशेषज्ञ भूस्खलन वाले बांध को मजबूत करने या इसे सुरक्षित रूप से हटाने का कोई तरीका नहीं खोज सके हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि उन्होंने पाया कि इसी तरह की आपदाएं उसी क्षेत्र में फिर से होने की आशंका है। जलवायु परिवर्तन को धन्यवाद।

जिंग ने कहा कि यह क्षेत्र विशाल है और यहां कई ग्लेशियर हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई तरीका है तो भी, इंजीनियरिंग के तरीकों से इस तरह के कठोर प्राकृतिक परिदृश्य का इलाज तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण और महंगा हो सकता है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल के एक अनुमान का हवाला देते हुए कहा है कि तिब्बती पठार पर एक चौथाई ग्लेशियर 1970 के दशक के बाद से गायब हो गए हैं और शेष दो-तिहाई सदी के अंत तक पिघल जाएंगे।

अध्ययनों से पता चलता है कि बढ़े हुए पिघले पानी और बढ़ते तापमान से दुनिया की छत अधिक फसल की पैदावार और पेड़ों की बढ़ती संख्या के साथ रहने योग्य हो सकती है, लेकिन बाढ़ और भूस्खलन सहित प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ सकता है। इसके साथ ही बर्फ भूस्खलन का कारण हो सकती है और यह विनाशकारी गतिविधि में बदल सकती है। उदाहरण के लिए, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के भूवैज्ञानिक पर्यावरण निगरानी स्टेशन के एक अनुमान के अनुसार सेदोंगपु में बर्फीला मलबा 72 किलोमीटर / प्रतिघंटा की शीर्ष गति के साथ 10 किलोमीटर से अधिक दूरी तक पहुंच चुका है।

बर्फीले मलबे ने भूस्खलन बांध को भी ढीला कर दिया और इससे इसके ढहने की संभावना बढ़ गई है। इसमें कहा गया है कि ऊंचाई से भारी गिरावट का मतलब है कि पानी की अपेक्षाकृत कम मात्रा भी गंभीर विनाश का कारण बन सकती है। बीजिंग में प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय के तहत जियो-हेजार्ड मिटिगेशन के सलाहकार केंद्र के एक सरकारी शोधकर्ता लियू चुआनझेंग ने कहा कि सेदोंगपु क्षेत्र में मानव गतिविधि को पूरी तरह से टाला जाना चाहिए।

उन्होंने 2019 में चीन में भूविज्ञान पत्रिका में प्रकाशित भूस्खलन के बारे में एक आधिकारिक रिपोर्ट में कहा कि यारलुंग त्सांगपो नदी में प्राकृतिक संसाधनों और ऊर्जा के विकास और उपयोग के कारण सेदोंगपु घाटी में हिमस्खलन और मलबे के प्रवाह की स्थिति पर पूरी तरह से विचार करना चाहिए। कुछ चीनी वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया है कि एक विशाल बांध बनाने के बजाय, यारलुंग त्सांगपो घाटी में ऊंचे पहाड़ों में से एक में 16 किलोमीटर लंबी सुरंग खोदी जा सकती है।

बिजली पैदा करने वाले टर्बाइनों में उपयोग के लिए पानी की धारा को सुरंग की ओर मोड़ा जा सकता है। यह योजना बिजली उत्पादन को 50 गीगावाट या थ्री गोरजेस डैम से लगभग दोगुना कर देगी। साथ ही यह भूस्खलन या अन्य प्राकृतिक आपदाओं से होनवाले नुकसान के जोखिम को कम कर देगी।

 


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