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‘फ्री तिब्बत- ए वॉइस फ्रॉम असम’ के नेतृत्व में ‘सांगपो- सियांग- ब्रह्मपुत्र बचाओ’ अभियान का मुद्दा नई दिल्ली में उठा

December 2, 2022

गुवाहाटी, ०१ दिसंबर। असम के पर्यावरण कार्यकर्ताओं की एक टीम ने विश्व युवक केंद्र, नई दिल्ली में २८- २९ नवंबर २०२२ को आयोजित सातवें अखिल भारतीय तिब्बत समर्थक समूह सम्मेलन में ‘फ्री तिब्बत- ए वॉयस फ्रॉम असम’ द्वारा शुरू ‘सांगपो- सियांग- ब्रह्मपुत्र बचाओ’ अभियान के बारे में जानकारी दी और इसपर चर्चा की।

नोवनीता शर्मा (समन्वयक, फ्री तिब्बत-ए वॉइस फ्रॉम असम), कृपा लोचन दास और जुगल हांडिक के नेतृत्व में इस टीम ने दो दिनों तक चलने वाले सम्‍मेलन में भाग लिया। इस सम्‍मेलन में भारत के विभिन्न हिस्सों से १७ तिब्बत समर्थक समूहों ने हि‍स्‍सा लिया।

कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज-इंडिया द्वारा आयोजित और भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय (आईटीसीओ) द्वारा प्रायोजित सम्मेलन में देश भर से २०० से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

फ्री तिब्बत-ए वॉइस फ्रॉम असम की नोवनीता शर्मा ने तिब्बत मुक्‍त‍ि साधना के लिए अन्य महत्वपूर्ण आयामों के साथ-साथ ‘सांगपो-सियांग-ब्रह्मपुत्र बचाओ’ का मुद्दा भी उठाया।

उन्होंने इस अभियान के महत्व पर जोर देते हुए कहा, ‘ब्रह्मपुत्र नदी के सामने आने वाले खतरे राष्ट्रीय महत्व के हैं जो तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े हैं। ब्रह्मपुत्र और सियांग नदी की तबाही राष्ट्रीय संकट होगा।’

उन्होंने आगे कहा, ‘माननीय सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने अपने भाषण में अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी के गंदे पानी का उल्लेख किया, जिसे उन्होंने हाल ही में पूर्वोत्तर भारत की अपनी यात्रा के दौरान देखा था।इसलिए, इस हिमालयी नदी को शोषण और पारिस्थितिक क्षति के हानिकारक चीनी मॉडल से बचाने के लिए प्रत्येक तिब्बत समर्थक को तिब्बत को मुक्त कराने के अभियान के साथ ‘सांगपो-सियांग-ब्रह्मपुत्र बचाओ’ अभियान चलाना चाहिए।

ट्रांस हिमालयी नदी यारलुंग त्सांगपो तिब्बत से निकलती है और अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी और असम में ब्रह्मपुत्र नदी के नाम से भारत के लंबे क्षेत्र में बहती है। ‘फ्री तिब्बत- ए वॉयस फ्रॉम असम’ ने इस नदी के साथ चीन द्वारा छेड़छाड़ और शोषण का सदियों पुराना मुद्दाराष्ट्रीय स्तर पर पहली बार सामने लाया है।

यह अंतरराष्ट्रीय नदी अंततः बांग्लादेश में बंगाल की खाड़ी में गिरती है।एशिया के जिस क्षेत्र से होकर यह नदी बहती है, वह सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है और यहां के लाखों लोगों की भोजन और आजीविका सुरक्षा इस नदी पर निर्भर करती है। कम्‍युनिस्‍ट चीन द्वारा यारलुंग त्सांगपो पर बनाए जा रहे वि‍शालकाय बांधों और दक्षिण से उत्तर की ओर जलधारा मोड़ने की विवादास्पद परियोजना का पहली बार इस ‘त्‍सांगपो -सियांग-ब्रह्मपुत्र बचाओ’अभियान द्वारा विरोध किया जा रहा है।

‘फ्री तिब्बत- ए वॉयस फ्रॉम असम’ तिब्बत पठार में कम्‍युनिस्‍ट चीन के दमनकारी शासन से तिब्बत की आजादी के लिए असम में एक जन आंदोलन खड़ा कर रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी असम की आर्थिक, पारिस्थितिक और सांस्कृतिक जीवन रेखा है जो अरुणाचल प्रदेश के तूतिंग से भारत में प्रवेश करती है।

यह नदी तिब्बत में यारलुंग घाटी, अरुणाचल प्रदेश में सियांग घाटी और असम में ब्रह्मपुत्र घाटी के लोगों को एशिया की सबसे समृद्ध समग्र सभ्यताओं में से एक के साथ जोड़ती है। यह क्षेत्र आश्चर्यजनक जातीय, भौगोलिक, पारिस्थितिक विविधता से भरा पड़ा है।

यह विविधता इस सभ्यता के अनूठे सांस्कृतिक ताने-बाने में झलकती है। तिब्बत में शोषक कम्युनिस्ट चीनी शासन इस सभ्यता के भविष्य के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करता है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की रणनीति में यारलुंग त्सांगपो पर विनाशकारी बड़े बांध समेत राक्षसी जल- विद्युत परियोजना शामिल हैं, जो थ्री गोरजेस डैम के आकार और उसकी विशालता से खत्‍म करने की कल्पना की गई है। यारलुंग त्सांगपो पर बड़ी संख्‍या बांध और इसके साथ बने विशालकाय जलाशयजब पूरी तरह से तैयार हो जाएंगे, तो नीचे के इलाके के देशों के लाखों लोगों के लिए जल बम के रूप में कार्य करेंगे।

रिपोर्ट और उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि चीनी सरकार दक्षिण से उत्तर की ओर जल प्रवाह को मोड़ने की विवादास्पद परियोजना को लागू करने के बहुत करीब है।इसके तहत चीन के औद्योगिक परिक्षेत्रों में आपूति के लिए यारलुंग त्सांगपो से जल को मुख्य भूमि चीन में बहने वाली उत्तरी नदियों में स्थानांतरित करने की योजना है। कम्‍युनिस्‍ट चीन की ये जल-विद्युत रणनीतियां तिब्बत और भारत के खतरों से अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा के लिए पीआरसी की एक महत्वपूर्ण सुरक्षा रणनीति है। कम्‍युनिस्‍ट चीन का यह हाइड्रोलॉजिकल मॉडल अरुणाचल प्रदेश और असम जैसे तटीय राज्यों के लिए सबसे बड़ी पारिस्थितिकीय तबाही का कारण बन सकता है।

यह इस दुनिया के सबसे विकट मानवीय संकटों के लिए जिम्मेदार है। यारलुंग त्सांगपो पर इस शैतानी मॉडल को लागू करने से इस दुनिया की कोई भी ताकत  पीआरसी को नहीं रोक सकती है।एकमात्र उम्मीद यही है कि चीनी शासन से तिब्बत की आजादी मिले, तभी यह संकट रुक सकता है। तिब्बत की आजादी यारलुंग सांगपो जैसी हिमालयी नदियों को आजादी देगी। चीनी शासन के तहत तिब्बत में हो रही पारिस्थितिकीय आपदा समाप्त होनी चाहिए, यारलुंग घाटी का संरक्षण यारलुंग त्सांगपो नदी के संरक्षण से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

फ्री तिब्बत-ए वॉइस फ्रॉम असम द्वारा ‘त्सांगपो-सियांग-ब्रह्मपुत्र बचाओ’अभियान तिब्बती पर्यावरण और यारलुंग त्सांगपो जैसी तिब्बती नदियों के संरक्षण के लिए पारिस्थितिकीय आंदोलन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए उठना चाहिए और प्रत्येक भारतीय को नदी पर आधिपत्य की आड़ में पानी और पारिस्थितिकीय शोषण के कम्युनिस्ट चीनी गेम प्लान के विनाशकारी प्रभाव से समृद्ध ब्रह्मपुत्र सभ्यता को बचाने के लिए इस अभियान में भाग लेना चाहिए।

 


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