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भारत पर चीनी अक्रमण के 50 वर्षगांठ पर अन्तर्राष्ट्रीय भारत तिब्बत सहयोग समिति, मेरठ का प्रेस बयान

October 22, 2012

20 अक्टूबर, 2012

अन्तर्राष्ट्रीय भारत तिब्बत सहयोग समिति, मेरठ द्वारा भारत पर चीनी अक्रमण की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक गोष्ठी एवं मौन यात्रा का आयोजन किया गया, जिसमें पं0 दीन दयल उपाध्याय मैनेजमैंट कॉलिज, मेरठ के शिक्षकों, विधार्थियों एवं कुछ आम नागरिकों ने भाग लिया। गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए श्री कुल भूषण बख्शी, समिति के अध्यक्ष द्वारा स्व0 सरदार वल्लभ भार्इ पाटेल, तत्कालीन उप प्रधान मंत्री, भारत सरकार द्वारा स्व0 पं0 जवाहर लाल नेहरू, प्रधानमंत्री को लिखे गये पत्र का उल्लेख किया, जिसमें सरदार वल्लभ भार्इ पटेल ने भारत पर चीनी अक्रमण 1962 से लगभग 12 वर्ष पूर्व चीन की भारत के विरूद्ध नीतियों एवं सोच का विस्तृत उल्लेख किया है। साथ ही भारतीय संसद द्वारा 14 नवम्बर 1962 को सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव का भी विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया।

इस अवसर पर समिति द्वारा देश के प्रधानमंत्री माननीय डा0 मनमोहन सिंह जी को जो पत्र लिखा गया है, उसकी प्रतिलिपि एवं गोष्ठी व शांति यात्रा से सम्बन्धित चित्र श्री संलग्न कियो जा रहे हैं। उपरोक्त पत्र में अन्य विषयों के साथ निम्नानुसार बिन्दुओं का विशेष उल्लेख किया गया है:

साठ साल से जारी चीन की दमनकारी नीतियों और सुरक्षा बलों की भारी और क्रूर सख्ती ने अधिकृत तिब्बत में संकट पैदा कर दिया है, जिससे तिब्बती भिक्षुओं, भिक्षुणियों और आम जनता द्वारा आत्मदाह की अभूतपूर्व लहर चल पडी है। अब तक आत्मदाह के द्वारा विरोध प्रदर्शन करने की 55 पुष्ट घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें से 42 जो जनवरी, 2012 से ही अब तक हुर्इ हैं। इनसे कम से कम 45 लोगों की मौत हो चुकी है।

मानवाधिकारों पर हाल की एक रिपोर्ट कहती है, नए प्रतिबंधों की गुंजाइश से यह लगता है कि तिब्बतियों में अशांति के बारे में आधिकारिक नजारिए में भारी बदलाव आया है, चीनी अधिकारी जहां पहले यह कहते थे कि यह अशांति बहुत कम लोगों या कुछ ही तिब्बतियों द्वारा फैलार्इ जा रही हैं। लेकिन इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2008 में समूचे तिब्बती पठार में हुऐ विरोध प्रदर्शनों के बाद अब नेताओं ने, कम से कम घरेलू मीडिया में, यह स्वीकार कर लिया है कि तिब्बतियों में दलार्इ लामा का प्रभाव व्यापक रूप से बढ़ रहा है, ग्रामीण क्षेत्रों में भी जहां 85 फीसदी तिब्बती रहते हैं।

मानवाधिकारों के प्रति चीन के खुले असम्मान और तिब्बती जनता पर व्यवस्थित रूप से हमलों की पूरी दुनिया के नेताओं को निंदा करनी चाहिए। इस संकट की गम्भीरता और चीन की अनिच्छा को देखते हुए इस पर एक मजबूत अन्र्तराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की जरूरत है।

 


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