ABP न्यूज़ ३ दिसम्बर २०१२
नई दिल्ली: निर्वासन में तिब्बती लोकतांत्रिक प्रयोग की सफलता का श्रेय भारतीय मूल्यों व परम्पराओं को देते हुए निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगय ने सोमवार को कहा कि तिब्बत अपने धर्म के लिए भारत का ऋणी है.
सांगय ने कहा, “तिब्बत अपने धर्म के लिए भारत का ऋणी है और भौतिक व आध्यात्मिक रूप से भारत के साथ निकटता के कारण तिब्बती संघर्ष में अहिंसा, बातचीत और सुलह के सिद्धांत शामिल हैं.” सांगय यहां जामिया मिलिया इस्लामिया में आयोजित डॉ. के.आर. नारायणन स्मृति छठे व्याख्यान में ‘डेमोक्रेसी इन एक्जाइल : द केस ऑफ तिब्बत’ विषय पर बोल रहे थे.
हारवर्ड शिक्षित सांगय ने कहा कि तिब्बती लोकतंत्र सबसे पहले अपने परम पावन दलाई लामा के दृष्टिकोण का ऋणी हैं. तिब्बत के जल और पारस्थितिकी के महत्व पर सांगय ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का अनवरत क्षरण, विकास के नाम पर मूर्खतापूर्ण विस्तार और अत्यधिक सैन्यीकरण से वैश्विक जलवायु की चिंताएं बढ़ेंगी.
दलाई लामा 1959 में तिब्बत से भागने के बाद से भारत में निवास कर रहे है. निर्वासित तिब्बती प्रशासन का मुख्यालय हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में है