
टोक्यो (जापान), ०३ जून २०२५। तिब्बत पर विश्व सांसदों का सम्मेलन (डब्ल्यूपीसीटी) आज ०३ जून को जापानी संसद के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हॉल में शुरू हुआ, जिसमें २९ देशों के १४२ प्रतिभागी शामिल हुए। यह सम्मेलन निर्वासित तिब्बती संसद द्वारा जैपनिज पार्लियामेंटरी सपोर्ट ग्रुप फॉर तिब्बत के सहयोग से आयोजित किया गया।
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि जापानी हाउस ऑफ काउंसिलर्स के पूर्व स्पीकर और वर्तमान सदस्य अकीको सैंटो, विशेष अतिथि जापान की पूर्व प्रथम महिला मैडम अकी अबे और हिगाशी होंगवानजी मंदिर के २५वें मुख्य महंथ भिक्षु चोजुन ओहतानी ने अपने संबोधन दिए। सत्र में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर एमेरिटा नैन्सी पेलोसी और कांग्रेसमैन माइकल मैककॉल के वीडियो संदेश, निर्वासित तिब्बती संसद के स्पीकर खेन्पो सोनम तेनफेल और जैपनिज पार्लियामेंटरी सपोर्ट ग्रुप फॉर तिब्बत की अध्यक्ष एरिको यामातानी के संबोधन भी शामिल थे। विशेष आकर्षण परम पावन दलाई लामा का संदेश था, जिसके बाद वृत्तचित्र डेमोक्रेसी : द गिफ्ट ऑफ हिज होलीनेस १४र्थ दलाई लामा टु तिब्बत’ दिखाया गया।
मुख्य अतिथि अकीको सैंटो ने चीन-तिब्बत संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान खोजने में परम पावन दलाई लामा के अथक प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक आजस्वी भाषण दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनके इन प्रयासों के बावजूद चीनी कम्युनिस्ट सरकार तिब्बती संस्कृति और भाषा को दबाना जारी रखे हुए है, जिससे उनके समूल संहार का खतरा उत्पन्न हो गया है। एकता और एकजुटता के महत्व पर जोर देते उन्होंने तिब्बती मुद्दे का समर्थन करने तथा तिब्बत-चीन संघर्ष के समाधान में योगदान देने में पश्चिमी देशों के सांसदों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
विशेष अतिथि अकी अबे ने भावपूर्ण टिप्पणियां व्यक्त कीं। उन्होंने बताया कि कैसे उनके पति के निधन के बाद परम पावन दलाई लामा ने बुद्ध की एक प्रतिमा के साथ शोक संदेश भेजा था। वह प्रतिमा को अपने दिवंगत पति की तस्वीर के सामने रखती हैं और नियमित रूप से प्रार्थना करती हैं। परम पावन की जापान यात्रा और उनकी मुलाकात के बारे में स्मरण करते हुए उन्होंने उस समय चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा डाले गए दबाव का उल्लेख किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनके दिवंगत पति मानवाधिकारों के कट्टर समर्थक थे और तिब्बत की स्थिति को लेकर बेहद चिंतित थे। उन्होंने तिब्बती मुद्दे के लिए अपने निरंतर और मजबूत समर्थन का वचन दिया।
भिक्षु चोजुन ओहतानी ने भी सभा को संबोधित किया। उन्होंने ०९ नवंबर, २०१६ को होंगवानजी मंदिर की अपनी यात्रा के दौरान परम पावन दलाई लामा के साथ अपनी मुलाकात के बारे में बात की। अपने भाषण में भिक्षु ओहतानी ने इस बात पर जोर दिया कि खुशी की तलाश मानव जीवन की एक मौलिक आकांक्षा है और इसे प्राप्त करने के लिए अपने दिल में करुणा और प्रेम-दया की भावना विकसित करना आवश्यक है।
इस अवसर पर स्पीकर खेन्पो सोनम तेनफेल, सिक्योंग पेन्पा शेरिंग, डिप्टी स्पीकर डोल्मा शेरिंग तेखांग, डीआईआईआर कलोन नोरज़िन डोल्मा, निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्य और डीआईआईआर के सचिव और अतिरिक्त सचिव समेत केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अधिकारी और परम पावन दलाई लामा के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
जापानी सांसद उरानो यासुतो की अध्यक्षता में आयोजित दूसरे सत्र में सिक्योंग पेन्पा शेरिंग का मुख्य भाषण, इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत के अध्यक्ष रिचर्ड गेरे का वीडियो संदेश और पूर्व तिब्बती राजनीतिक कैदी नामकी की ओजपूर्ण गवाही शामिल थी। इसके बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की गलत सूचनाओं का मुकाबला करने और चीनी अधिनायकवाद की चुनौतियों का समाधान करने को लेकर एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता नेशनल चुंग ह्सिंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और ताइवान फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेसी के उपाध्यक्ष डॉ. मुमिन चेन ने की।
वक्ताओं में पूर्व भारतीय राजनयिक और ‘इंपीरियल गेम्स इन तिब्बत’ के लेखक श्री दिलीप सिन्हा और जापान के वासेदा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर इशिहामा युमिको शामिल थे।
तीसरे सत्र का विषय था- पीआरसी का अधिनायकवादी शासन: लोकतांत्रिक संस्थाओं और मानवाधिकारों के लिए चुनौतियां। इस सत्र की अध्यक्षता जापान इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल फंडामेंटल्स के अध्यक्ष योशिको सकुराई ने की। वक्ताओं में अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व विशेष दूत फर्नांड डी वेरेन्स; ह्यूमन राइट्स वॉच जापान के टेपेई कसाई और अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के अध्यक्ष स्टीफन श्नेक (वीडियो के माध्यम से) शामिल थे।
‘राजनयिक समाधानों को तरजीह : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दमन को खत्म करने के लिए बहुपक्षीय दृष्टिकोण’ विषयक सत्र की अध्यक्षता डीआईआईआर कलोन नोरजिन डोल्मा ने की। इसमें तिब्बती सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी के कार्यकारी निदेशक तेनज़िन दावा और एमनेस्टी इंटरनेशनल जापान में चीन मामलों के समन्वयक किताई डेसुके के भावपूर्ण विचार शामिल थे। सत्र के दौरान लिथुआनिया के सांसद डेनियस ज़ालिमास, अर्जेंटीना के डिप्टी एस्टेबन पॉलोन, जर्मनी के सांसद माइकल ब्रांड और इतालवी सीनेटर एंड्रिया डी प्रियमो, मालवसी इलेनिया और गिउलिओ टेरज़ी डी सैंट अगाटा के वीडियो संदेश सुनाए गए।
छठे सत्र में तिब्बत के पर्यावरणीय महत्व और तिब्बती पठार के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर चीन की नीतियों के प्रभाव पर चर्चा हुई। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चीनी अध्ययन के विशेषज्ञ प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र में तिब्बत नीति संस्थान के उप निदेशक टेम्पा ग्यालत्सेन ज़मल्हा और नई दिल्ली के नीति अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर एमेरिटस प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी ने प्रस्तुतियां दीं।
गहन चर्चा और प्रस्तुति के लिए कार्य समूहों के गठन के साथ सम्मेलन के पहले दिन का समापन हुआ। निर्वासित तिब्बती संसद द्वारा आयोजित इस डब्ल्यूपीसीटी के सम्मेलन का पहला आयोजन नई दिल्ली (१९९४) में हुआ था, जिसमें कब्जे के बाद तिब्बती पहचान को संरक्षित करने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता दी गई थी। इसके बाद के सम्मेलन विल्नियस (१९९५), वाशिंगटन डी.सी. (१९९७), एडिनबर्ग (२००५), रोम (२००९), ओटावा (२०१२), रीगा (२०१९) और फिर वाशिंगटन डी.सी. (२०२२) में आयोजित किए गए। सम्मेलन का उद्देश्य सांसदों को तिब्बती पहचान और संस्कृति के अस्तित्व की वकालत करने, तिब्बत में मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और परम पावन दलाई लामा और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत के जरिए समाधान निकालने के लिए नए सिरे से बातचीत करने का आग्रह करने में अग्रणी अंतरराष्ट्रीय भूमिका निभाने के लिए विश्व की संसदों को प्रोत्साहित करना है।
–तिब्बती संसदीय सचिवालय की रिपोर्ट