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भारत-अमेरिकी तिब्बत नीति विकसित हो रही है, ब्लिंकेन की बैठक इसका सबूत है

August 4, 2021

०४ अगस्त, २०२१

तेनज़िन त्सुल्त्रिम*

दलाई लामा के जन्मदिन पर मोदी के शुभकामना फोन कॉल को भी कई लोगों ने उनके पहले की नीति में बदलाव के रूप में देखा।

हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन की परम पावन दलाई लामा के  नई दिल्ली ब्यूरो के प्रतिनिधि न्गोदुप डोंगचुंग और तिब्बत हाउस, दिल्ली के निदेशक गेशे दोरजी दामदुल के साथ ऐतिहासिक बैठक हुई। इस बैठक ने तिब्बत के प्रति अमेरिका से निरंतर मिल रहे समर्थन के तिब्बतियों के विश्वास को और मजबूत किया है। कहा जाता है कि गेशे को तो अमेरिकी दूतावास के प्रभारी एंबेसेडर डी ‘अफेयर्स अतुल केशप की अध्यक्षता में हुई एक अलग बैठक में भी आमंत्रित किया गया था।

अतीत में तिब्बती राजनीतिक मुद्दों के समर्थन में अमेरिका द्वारा पहला और खुला आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय समर्थन १९८७ में किया गया था, जब अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों ने तिब्बत में मानवाधिकारों के अपमानजनक उल्लंघन की निंदा करते हुए ‘स्टेट डिपार्टमेंट ऑथराइजेशन बिल’ के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था। इसे बाद में १८ जून, १९८७ को हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव द्वारा पारित किया गया।

इसके बाद अमेरिकी कांग्रेस ने २०२० में ‘तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम’ पारित किया, जिसने तिब्बत के मुद्दे के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया है। इन बैठकों ने चीन को लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता और दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए तिब्बतियों के अधिकारों के प्रति उसके समर्थन के बारे में एक कड़ा संदेश दिया है। अमेरिका और भारत की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में दोनों देशों के मंत्रियों के बीच सौहार्द साफ नजर आया। प्रेस कॉन्फ्रेंस के अलावा भी, २००५ में ‘नेक्स्ट स्टेप्स इन स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप (एनएसएसपी)’ के पूर्ण होने के बाद से भारत और अमेरिका के बीच संबंध मजबूत हो रहे हैं। कुल मिलाकर पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका और भारत के बीच संबंध मजबूत हो रहे हैं।

महामारी के बीच चीनी अतिक्रमण

यह सब ऐसे समय में हुआ जब दुनिया कोविड-१९ महामारी से जूझ रही है। यह संकट एक संक्रामक बीमारी के बढ़कर विश्वव्यापी महामारी हो जाने की कहानी है, क्योंकि चीन ने कोरोना वायरस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी को रोक लिया और देश के भीतर सूचना के स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रवाह पर लौह शिकंजा कस दिया था। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, ब्लिंकन ने महामारी के प्रसार और मजबूत वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा की आवश्यकता को लेकर अमेरिका और भारत के बीच सहयोग के महत्व पर भी प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच संबंधों की जीवंतता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। तिब्बत के हित के लिए दोनों की ओर से मिल रहा समर्थन भी उनके साझा मूल्यों की पुष्टि करता है।

कोविड-१९ महामारी के बीच जब दुनिया का ध्यान वायरस पर लगाम लगाने पर केंद्रित था, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों ने तिब्बत पर अपने कब्जे वाले क्षेत्र से भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण करना शुरू कर दिया। सदियों से तिब्बत भारत का एक आदर्श और प्राकृतिक पड़ोसी रहा है और हिमालय ने नालंदा, ओदंतपुरी और विक्रमशिला के महान भारतीय विहारों का दौरा करने वाले तिब्बती विद्वानों, पंडितों और योगियों के निरंतर आवागमन को देखा है। हालांकि इस मित्रवत पड़ोसी पर चीन के जबरन कब्जा कर लेने  के साथ तिब्बत की धरती पर पहले के व्यापारियों और विद्वानों के विपरीत अब बंदूकधारी पीएलए ने जगह ले ली है। इन दिनों, तिब्बत में भारत से लगती सीमाओं पर सैन्यीकरण तेज हो गया है और तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्रों में नए गांवों, कस्बों और हवाई अड्डों का निर्माण कर इसके हर गली- नुक्कड़ को जोड़ने का प्रयास चीन द्वारा किया जा रहा है।

पिछले दिनों, डोकलाम और गालवान- दोनों में आए संकटों ने चीन के वास्तविक इरादों और उसके अक्सर टूटते हुए वादों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है।

इस साल ०६ जुलाई को दलाई लामा के जन्मदिन पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें शुभकामना देने के लिए किए गए फोन कॉल को कई विश्लेषकों द्वारा तिब्बत के प्रति उनके पहले के दृष्टिकोण से स्पष्ट रूप से पलटने के तौर पर देखा गया है। कुछ हफ्ते बाद, २१ जुलाई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा और अरुणाचल प्रदेश के निकट तिब्बत के एक शहर निंगची का औचक दौरा किया। शी ने चीन में सुरक्षा और स्थिरता के लिए तिब्बत के महत्व पर जोर दिया। २०१५ में आयोजित छठे तिब्बत कार्य मंच के दौरान शी ने टिप्पणी की थी कि ‘किसी देश पर शासन करने के लिए उसके सीमावर्ती क्षेत्रों पर शासन करना महत्वपूर्ण है और तिब्बत की स्थिरता के लिए इसके सीमावर्ती क्षेत्रों पर नियंत्रण करना जरूरी है।’

तिब्बत में स्थिरता को बढ़ावा

शोधकर्ता एड्रियन ज़ेनज़ ने २०१८ में एक लेख में कहा है कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के सभी प्रांतों और क्षेत्रों में २००८ के बाद से प्रति व्यक्ति घरेलू सुरक्षा व्यय सबसे अधिक हो रहा है। लेख में कहा गया है, ‘२०१६ में सिचुआन के तिब्बती क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति घरेलू सुरक्षा खर्च पूरे सिचुआन प्रांत की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक था।’ इस तरह तिब्बत में स्थिरता चीन द्वारा वहां घरेलू सुरक्षा खर्च में वृद्धि पर निर्भर करता है। इसलिए शी द्वारा व्यक्तिगत रूप से तैयार किए गए १४वीं पंचवर्षीय योजना में भी तिब्बत में व्यापक परिवहन कॉरिडोर में सुधार करने की योजना है। इसलिए भारत को भी बीजिंग द्वारा शुरू किए गए इस आक्रामक विकास के बारे में सतर्क रहने की जरूरत है।

अतीत में कमजोर अंतरराष्ट्रीय समर्थन के कारण तिब्बत पर आक्रमण हुआ और भारत ने एक शांतिपूर्ण पड़ोसी को खो दिया। तिब्बत के अंदर लगातार नुकसान पहुंचाने, आक्रामक सैन्यीकरण और वहां दमनकारी नीतियों के दूरगामी प्रभाव होंगे। एक स्वतंत्र शोधकर्ता और तिब्बत नीति संस्थान के पूर्व निदेशक थुब्टेन सम्फेल ने कहा, ‘एशिया के लिए तिब्बती पठार का महत्व तीन स्तरीय- भू-राजनीतिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय है। तिब्बत में चीन जो करता है या नहीं करता है, उसके शेष एशिया के लिए भू-राजनीतिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय परिणाम होते हैं।’ इसलिए, भविष्य में दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच सहयोग एशिया और दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों और सुरक्षा की स्थिति को परिभाषित कर सकता है।

*डॉ. तेनज़िन त्सुल्त्रिम तिब्बत नीति संस्थान के विजिटिंग फेलो हैं। जरूरी नहीं कि यहां व्यक्त किए गए उनके विचार तिब्बत नीति संस्थान के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। यह लेख मूल रूप से ०३ अगस्त २०२१ को क्विंट में प्रकाशित हुआ था।


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