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ल्हासा में तिब्बती गायक के आत्मदाह से चीनी उत्पीड़न के बारे में पता चलता है

March 29, 2022

छेवांग नोरबू १५८वें तिब्बती हैं जिन्होंने चीनी उत्पीड़न के विरोध में तिब्बत में आत्मदाह कर लिया था।

rfa.org, दोरजीवांग्मो

ल्हासा में ऐतिहासिक पोटाला पैलेस के सामने एक तिब्बती द्वारा आत्मदाह की खबर बाहरी दुनिया तक पहुंचने में एक महीने से थोड़ा अधिक समय लग गया है।

०५ मार्च तक निर्वासन में तिब्बती मीडिया के पास उस अकेले प्रदर्शनकारी द्वारा आत्मदाह किये जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ०४ मार्च को रेडियो फ्री एशिया ने बताया कि पोटाला पैलेस के सामने जिस तिब्बती ने आत्मदाह किया था वह और कोई नहीं लोकप्रिय तिब्बती संगीतकार २५ वर्षीय छेवांग नोरबू थे।

निर्वासन में रह रहे तिब्बती कह रहे हैं कि तिब्बत के भीतर स्वतंत्रता की कमी और सेंसरशिप जैसी कठोर नीतियां तिब्बतियों को छेवांग नोरबू जैसे कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर कर रही हैं। इसी कारण से वे अपने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर रहे हैं।

निर्वासित तिब्बतियों का कहना है कि छेवांग नोरबू के बारे में समाचार की पुष्टि करने में आई कठिनाई से ही चीनी अत्याचारों और तिब्बत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कमी को प्रमाणित किया जा सकता है। वे तिब्बत में चीनी सरकार की दमनकारी नीतियों को समाप्त करने की मांग करते हैं।

तिब्बती युवा कांग्रेस के अध्यक्ष गोंपो धुंडुप ने कहा कि नोरबू ने अपने शरीर को ज्वलनशील मिट्टी के तेल से भिगोया और ‘तिब्बत पर चीनियों द्वारा थोपी गई निरोधात्मक और दमनकारी नीतियों का विरोध करते हुए’ शरीर को आग के हवाले कर दिया।

नोरबू तिब्बत के भीतर १५८वें तिब्बती हैं, जिन्होंने विरोध के तौर पर आत्मदाह कर लिया है। निर्वासन में १० तिब्बतियों ने भी पिछले दो दशकों में आत्मदाह किया है।

१९५० के दशक से तिब्बत में रह रहे तिब्बती और निर्वासित तिब्बती दुनिया भर में शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के माध्यम से तिब्बत पर कब्जे और मानवाधिकारों के उल्लंघन का विरोध कर रहे हैं।

तिब्बती युवा कांग्रेस (टीवाईसी) कई तिब्बती अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों में से एक है, जो चीन से तिब्बत की स्वतंत्रता की वकालत करता है। टीवाईसी अपनी मांग के समर्थन में पिछले ६० वर्षों में धरना, उपवास, अभियान, शांतिपूर्ण प्रदर्शन आदि का आयोजन कर रहा है। धोंडुप ने कहा मूक बना दिए गए तिब्बतियों की आवाज सीसीपी द्वारा लगाए गए गंभीर सेंसरशिप के कारण दबी हुई है।

नोरबू के एक करीबी रिश्तेदार और १६वीं निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्य नवांग थारपा वॉयस ऑफ अमेरिका पर देखे गए समाचार को याद करते हुए कहते हैं, ‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा था’।

थारपा ने तिब्बत में अपने रिश्तेदारों को यह जानने के लिए फोन की कि निर्वासन में वे जो सुन रहे हैं, क्या वे इस बात की पुष्टि कर सकते हैं। लेकिन रिश्तेदारों ने उससे कहा कि ‘स्पष्ट जानकारी प्राप्त करना मुश्किल है’। हालांकि, बाद में उन्होंने इस बात की पुष्टि करने के लिए एक और स्रोत खोज लिया। उन्हें पुष्टि हो गई कि आत्मदाह करने वाले छेवांग नोरबू थे जिसकी मृत्यु आत्मदाह करने के बाद चोट खाने से हुई है। थारपा तिब्बती समाचार आउटलेट ‘भोडकी बांगचेन’ में तिब्बती पत्रकार हुआ करते थे और अपने पूर्व तिब्बती पत्रकार सहयोगियों से उन्हें समाचारों का आदान- प्रदान हो जाता है।

थारपा के अनुसार, छेवांग नोरबू अपने संगीतकार पिता की संगीत की धुनों को सुनते हुए बड़े हुए। उनकी मां तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के नाग्चू जिले में पहले स्वर्ण पदक विजेता गायकों में से एक थीं। चीन के राष्ट्रीय संगीत मंचों पर प्रतियोगिताओं और तिब्बत में शांति के गीत गाते हुए वे लाखों तिब्बतियों के लिए आशा के प्रतीक बन गए थे।

२०२० के एक संगीत वीडियो ‘रिटर्निंग होम’ में वह खाम क्षेत्र का पारंपरिक तिब्बती चुपा पहने हुए अपनी मातृभूमि नागछू के बारे में गीत गाते हुए दिखाई दे रहे हैं। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं- ‘घास का मैदान विशाल है, पशुधन कई हैं, आपके लिए मेरी लालसा पहले से अधिक मजबूत है। तुम मेरे सपनों का दायरा हो, कोई और विकल्प नहीं है कि मैं तुम्हें भूल जाऊं।’

एक अन्य वीडियो में वह एक राष्ट्रीय चीनी प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं और अपना गीत ‘त्सम्पा’ गा रहे हैं जो एक पारंपरिक तिब्बती प्रधान भोजन के बारे में है। गीत का सार हैं- ‘मैं आपकी स्तुति करता हूं, आपने मुझे अपना सारा जीवन दिया है, आप हमारी जिंदगी हैं, आपने मेरी सभी आकांक्षाएं और आशाएं प्रदान की जाती हैं।’

लेकिन अब, उनके पास उनके वेबो अकाउंट (एक लोकप्रिय चीनी माइक्रोब्लॉगिंग साइट) पर मुस्कुराते हुए और अपने प्रशंसकों का अभिवादन करते हुए उनके पुराने वीडियो हैं। इंटरनेट पर चीनी सेंसरशिप के बावजूद उन्होंने काफी लोकप्रियता हासिल की थी और अब भी वायरल हो रहे हैं।

थारपा ने कहा, ‘नोरबू बचपन से ही एक अच्छे बच्चा रहे हैं। वह कभी कसम नहीं खाते और शाकाहारी थे। ड्रिरू काउंटी के उनके गृहनगर नागछू जिले में मजाक में कहा जाता है कि शाकाहारी होने का मतलब है कि आप एक दयालु व्यक्ति हैं। छेवांग नोरबू के बारे में यह सच था।’

नोरबू गीतों के एक अच्छे लेखक और संगीतकार के रूप में जाने जाते थे। थारपा ने कहा कि वह एक वादक भी थे। थारपा ने कहा, ‘वह तिब्बती साहित्य में पारंगत थे और विशेष रूप से अपनी शब्दावली और गीतों के लिए जाने जाते थे।’

थारपा की तरह अन्य तिब्बती संगठन भी नोरबू के विरोध और उसके बाद की घटनाओं के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं।

सोनम तोबग्याल तिब्बत वॉच में एक शोधकर्ता हैं जो तिब्बत में मानवाधिकारों की निगरानी, शोध और वकालत करने वाली संस्था है। उनका संगठन आज तक स्वतंत्र रूप से यह सत्यापित नहीं कर पाया है कि उनके विरोध के बाद नोरबू के साथ क्या हुआ था।

उन्होंने कहा, ‘हम उनकी वर्तमान स्थिति की पुष्टि करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमने अभी भी यह पता नहीं लगाया है कि वह जीवित हैं या अस्पताल में भर्ती हैं या उसका निधन हो गया है।’

हालांकि, निर्वासन में अधिकांश तिब्बती मीडिया संगठनों ने ०२ मार्च को ल्हासा में तिब्बत के पीपुल्स अस्पताल में नोरबू की मृत्यु की सूचना दी है।

थारपा का दावा है कि तिब्बत में सूचनाओं को दबाने और उन्हें बाहर न निकलने देने की सीसीपी की रणनीति से निर्वासित तिब्बतियों में भ्रम पैदा हो गया है। इससे तिब्बती मीडिया में अधूरी खबरें आ रही हैं और आम जनता के बीच भ्रम की स्थिति बताई जा रही है। उन्होंने कहा, ‘अब भी आबादी के एक खास वर्ग के बीच इस बात को लेकर संदेह है कि उनकी मृत्यु हो गई है या नहीं।

तिब्बत वॉच से जुड़ी पेमा ग्याल ने नोरबू के बारे में स्पष्ट जानकारी की कमी के लिए तिब्बत में सीसीपी की २०१७ की इंटरनेट सेंसरशिप नीति को जिम्मेदार ठहराया।

उन्होंने कहा, ‘सीसीपी तिब्बतियों के मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन करके झूठ तंत्र का दुष्प्रचार और गलत तरीके से निगरानी कर रही है।’ ग्याल ने कहा कि उनका दावा है कि यह ‘राज्य की गोपनीयता की रक्षा करने और तिब्बतियों सहित देश में विभिन्न जातियों के बीच तथाकथित अलगाववाद से बचने के लिए’ है।

०६ नवंबर २०१७ को नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने लोगों को ‘समाजवादी व्यवस्था को उलटने, अलगाववाद को उकसाने’ या ‘राष्ट्रीय एकता को तोड़ने’ से रोकने के लिए एक साइबर सुरक्षा कानून लागू किया। लेकिन नीति विशेषज्ञ चेतावनी देते रहे हैं कि यह तिब्बत के अंदर लोगों की आवाज़ को सेंसर करने का एक और प्रयास है।

दशकों से चीन ने परम पावन दलाई लामा और निर्वासन में रह रहें तिब्बतियों को ‘अलगाववादी’ के रूप में प्रचारित किया है। वे कहते हैं कि यह ‘चीनी मातृभूमि’ को नस्लीय रूप से विभाजित कर रहे है।

ग्याल ने कहा कि, ‘तिब्बत में तिब्बतियों को बीमार तथा मृत लोगों के प्रति प्रार्थना करने की भी अनुमति नहीं है। ये प्रार्थनाएं मुख्य रूप से दलाई लामा द्वारा दी जाती हैं।

नोरबू के चाचा सुंगखर लोडोह ग्यामत्सो तिब्बत में सबसे लंबे समय तक सजा काटने वाले राजनीतिक कैदियों में से एक हैं। थारपा के अनुसार, २१ साल जेल की सजा काटने के बाद २०१५ में ड्रिरू काउंटी में सीसीपी द्वारा जानवरों की खाल की पोशाक पहनना लागू करने के विरोध में ग्यामस्तो को गिरफ्तार किया गया था। थारपा ने कहा, ‘पिछले साल उन्हें चीनी कम्यूनिस्ट द्वारा तिब्बती भाषा को नष्ट किये जाने के विरोध करने के लिए फिर से गिरफ्तार किया गया था।’

कहा जाता है कि नोरबू ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा के प्रसिद्ध पोटाला पैलेस में खुद को आग के हवाले कर लिया था। आश्चर्य की बात यह है कि हजारों की संख्या में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवानों की मौजूदगी के बावजूद घटना की कोई फिल्म या तस्वीरें जारी नहीं की गई है।

थारपा ने कहा कि तिब्बत के अंदर के उनके सूत्रों ने बताया कि नोरबू अपनी गाड़ी से पोटाला महल की ओर नारे लगाते हुए जा रहे थे। थारपा के सूत्रों अनुसार, नोरबू ने गाड़ी  की छत पर चढ़ कर नारेबाजी लगाई थी। उन्होंने नारे लगाते हुए ही अपने शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल लिया और चीनी शासन के खिलाफ जोर से नारे लगाते हुए अपने शरीर में आग लगा ली। उस समय हजारों लोग उनकी तस्वीरें तथा वीडियो बना रहे थे, लेकिन कोई बचाने को आगे नहीं आया।

थारपा ने कहा कि पूरे ल्हासा में कई निगरानी कैमरे लगे हैं। उन्हें यहां तक बताया कि सड़क पर चल रहे कई लोगों ने आत्मादाह की विरोध को देखा है और इसे अपने फोन में फिल्म बनाया था। हालांकि, थारपा ने कहा, ‘इन तस्वीरों को साझा करने पर गवाहों की जान को खतरा है।’

ग्याल के अनुसार, हर बार जब तिब्बती आत्मदाह या शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं तो सीसीपी तिब्बत में सुरक्षा कड़ी कर देती है, जिसमें हजारों सशस्त्र पीएलए सैनिक प्रत्येक काउंटी के अंदर इस तरह से मार्च करते हैं कि ‘हवा का बहना भी लगभग मुश्किल हो जाता है।’

पहले के विपरीत अब आत्मदाह करने वाले शहीद के परिवार के साथ-साथ पूरे मोहल्ले में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया जाता है और उनकी जासूसी की जा रही है। ग्याल ने कहा, ‘आत्मदाह करने वाले के परिवार को आजीवन नजरबंद रखा जाता है और अगर परिवार भागने का फैसला करता है तो सीसीपी यह कहते हुए कहानी को पलट देती है कि उस व्यक्ति ने आत्मदाह किया है क्योंकि वह मानसिक रूप से अस्थिर था या उसे पारिवारिक परेशानियां थी। इसके अलावा भी वह तरह-तरह की झूठी कहानियां गढ़ी जाती हैं।

इसके अलावा यदि आत्मदाह करने वाले व्यक्ति की मौत नहीं होती है तो यह उसके लिए और भी बुरा हो सकता है।

ग्याल ने कहा, ‘सीसीपी उस पीड़ित व्यक्ति को यह बयान देने के लिए धमकी देगी कि उसने यह कार्य व्यक्तिगत कारणों से किया था, अन्यथा उसके परिवार को परेशान किया जाएगा।’

एक तरफ जहां दुनिया के सबसे कम स्वतंत्र देशों की श्रेणी में आनेवाले सीरिया के समाचारों को दुनिया के बाकी हिस्सों तक पहुंचने में लगभग एक दिन का समय लगता है, वहीं थारपा का दावा है कि तिब्बत के अंदर की स्थितियों के बारे में जानकारियों को चीन की बाहरी सीमाओं तक पहुंचने में महीनों या वर्षों का समय लग जाता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फ्रीडम हाउस के २०२१ के राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता संबंधी अध्ययन ‘विश्व की स्वतंत्रता’ में तिब्बत को ‘स्वतंत्र नही’ का दर्जा दिया गया है।

उदाहरण के लिए, १७ सितंबर २०१५ को स्थानीय समयानुसार दोपहर १ बजे २६ वर्षीय शुरमो ने ड्रिरू काउंटी के शगछुखा गांव में एक बस स्टेशन के पास खुद को आग लगा ली। लेकिन इस खबर को तिब्बत से बाहर आने में पांच साल लग गए, २०२० में यह जानकारी बाहर आई, वह भी बिना किसी स्पष्ट जानकारी के।

थारपा ने कहा, ‘तिब्बत एक बंद दरवाजा बन गया है।’

ऐसी परिस्थितियों में निर्वासन में रह रहे तिब्बती समुदाय, तिब्बत में अपने परिवार के सदस्यों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं।

बेंगलुरु विश्वविद्यालय के अंर्तगत दलाई लामा इंस्टीट्यूट फॉर हायर स्टडीज की छात्रा डोलकर त्सो के माता-पिता तिब्बत के अमदो क्षेत्र में रहते हैं। हालांकि पहले वह नियमित रूप से वीचैट के माध्यम से उनसे बात करती थी, लेकिन अब उसने कहा कि, ‘नोरबू के बलिदान के बाद मैं अपने परिजानों से बात नहीं कर पा रहा हूं। और भारत में मेरे चाचा ने मुझे सचेत किया कि मैं अपने माता-पिता से संपर्क न करे, क्योंकि इससे उनकी जान को खतरा है। हालांकि यह घटना हमारे इलाके में नहीं हुई, लेकिन पूरे तिब्बत में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।’

व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि चीन में प्रतिबंधित हो जाने के बाद से तिब्बत में परिवार के सदस्यों से जुड़ने के लिए त्सो भारत में प्रतिबंधित एक चीनी ऐप ‘वीचैट’ का वीपीएन पते बदलकर उपयोग कर रही है।

उसने कहा, ‘सामान्य दिनों में भी हम राजनीति, दलाई लामा और तिब्बत के अंदर की स्थितियों के बारे में बात नहीं कर सकते हैं और जब हम ऐसा करते हैं तो मेरी मां हमेशा मुझे कोड वर्ड या पालतू नामों का उपयोग करने के लिए कहती हैं।’ उसने उस समय को याद किया जब उसके माता-पिता एक वीडियो कॉल के दौरान उसकी प्रोफ़ाइल नहीं देख पा रहे थे और यह काला दिखाई देता रहा, क्योंकि उसने अपनी प्रोफ़ाइल में दलाई लामा की एक तस्वीर लगाई थी।

तिब्बत के अंदर की स्थितियों के बारे में खोजी शोधकर्ता होने और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए काम करने वाले ग्याल ने कहा, ‘२०१८ के बाद से सीसीपी ने मेरे परिवार और मेरे बीच संचार को अवरुद्ध कर दिया है और मैं उनसे संपर्क करने में सक्षम नहीं हूं। यहां तक कि ‘वीबो’ और ‘वीचैट’ पर मेरे दोस्तों को भी मुझे ब्लॉक करना पड़ता है। फिर भी, कुछ तिब्बती मेरे संपर्क में आने के कारण जेल में हैं।’

ड्रिरू काउंटी के नागछू नोरबू का गृहनगर है जहां आठ तिब्बतियों ने आत्म-बलिदान दिया था इसलिए यह क्षेत्र पूरे तिब्बत में सबसे नियंत्रण वालें इलाकों में माना जाता है। तिब्बत के नागछू क्षेत्र में चीनी शासन द्वारा तिब्बती मठों की विनाश, तिब्बती भाषा की हशियाकारण, मठों में पितृसत्तात्मक पुनर्शिक्षा तथा अन्य कई विषयों के खिलाफ तिब्बतियों द्वारा विरोध करने के लिए अधिक निगरानी बड़ा दिया है। सोकतोह क्षेत्र इससे भी बदतर है। थारपा ने कहा, ‘यहां २०१७ से इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जब क्षेत्र में पर्यावरण संबंधी खनन के खिलाफ विशाल प्रदर्शन हुआ था।’

अंत में, छेवांग नोरबू का आत्मदाह कोई अकेली घटना नहीं है। यह चीनी दमन और तिब्बत में सेंसरशिप को बेनकाब करने के प्रयासों के खिलाफ चल रही एक बड़ी लड़ाई का हिस्सा है। तिब्बत के भीतर स्वतंत्रता के लिए खुद को आग लगाने वाले तिब्बतियों की लंबी कतार को समाप्त करने के लिए चीन को तिब्बत में ‘अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता’ के खिलाफ प्रतिबंधों और अत्याचार को बंद करना चाहिए।

लेखक चेन्नई के एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म के छात्र हैं। यहां व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं।


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